धर्म एवं ज्योतिष
पहाड़ी पर स्थित है देवी जीवदानी का मंदिर, यहीं पर पांडव ने भी की थी माता की अराधना
24 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नयगांव के अलावा विरार में भी एक मंदिर है. जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मां जीवदानी का मंदिर विरार में जीवदानी नामक पहाड़ी पर स्थित है. यह पहाड़ विरार का सबसे महत्वपूर्ण स्थल है. यह देवी जीवदानी के अपने एकमात्र मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हैं, यहां माता के दर्शन के लिए जो लगभग 1300 से भी अधिक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. विरार के पूर्वी हिस्से में एक बड़े से पहाड़ी पर यह मंदिर है. यहां से पूरा मुंबई और नवी ठाणे दिखता है.
Local 18 से बात करते हुए चंडिका मंदिर के पुजारी पवन पाठक ने बताया कि चंद्रपाड़ा में स्थित चंडिका मंदिर में भी पांडव पधारे थे, हालांकि ठाणे में यह इकलौता मंदिर नहीं है. जहां पांडवों ने देवी के दर्शन किए. इसके अलावा जीवदानी पहाड़ी पर भी पांडवों ने जीवदानी माता की स्थापना की. इस मंदिर को पांडवों ने अपने वनवास के समय में बनाया था. इस मंदिर पहले से बहुत ऋषि आते जाते रहे हैं. आज भी यहां अनेकों ऋषि और योगी मंदिर दौरे के समय यहां रहते हैं. इस मंदिर को लेकर और भी बहुत सी कहानियां हैं.
17वीं सदी से है मंदिर का इतिहास
मंदिर कि सीढ़ियों पर दुकान लगाने वाले दुकानदारों के मुताबिक इस क्षेत्र में 17वीं सदी में जीवदानी किले का निर्माण किया गया था. उस समय किले में अनेकों पानी के कुंड हुआ करते थे. वर्तमान में अधिकतम कुंड अभी सुख गए है. मान्यता कुछ ऐसी है की अपनी मनोकामनाए पूरी करने के लिए भक्त माता की मंदिर की चढ़ाई नंगे पैर करते हैं. शुक्रवार और रविवार इस मंदिर में भक्तों की भरी भीड़ लगती है. अब इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लिफ्ट भी लगा दिया गया है.
आस्था और इतिहास का संगम है भारेश्वर मंदिर, महाभारत काल में भीम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
24 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत एक ऐसा देश है जिसका इतिहास, संस्कृति और कथाएं वैश्विक स्तर पर चर्चा का केंद्र बनी रहती हैं. ऐसी ही एक प्राचीन कथा है जो पांडवों की आस्था से जुड़ी हुई है. चंबल घाटी में स्थित भारेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी. यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां हजारों श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं.
डाकुओं का आतंक और श्रद्धालुओं की आस्था
एक समय ऐसा था जब चंबल घाटी कुख्यात डाकुओं के आतंक के लिए जानी जाती थी. इसके बावजूद, शिव भक्त कभी भी पूजा अर्चना से पीछे नहीं हटे. डाकुओं का आतंक भी शिव भक्तों को डरा नहीं सका और वो लगातार इस मंदिर में आते रहे. चंबल नदी के किनारे बना ये मंदिर, जमीन से 444 फीट की ऊंचाई पर बना है. यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 108 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर की बनावट द्वापर युगीन है और इसकी पंचायतन शैली की मोटी दीवारें इसकी भव्यता का बखान करती हैं.
व्यापारिक केंद्र और मंदिर का जीर्णोद्धार
मुगलकाल में जब व्यापार नदियों के जरिए होता था, तब भरेह कस्बा उत्तर भारत का प्रमुख व्यापार केंद्र था. प्रसिद्ध कहानी के मुताबिक, एक बार राजस्थान के व्यापारी मदनलाल की नाव यमुना के भंवर में फंस गई थी. उन्होंने महादेव से प्रार्थना की और नाव सुरक्षित किनारे आ गई. इसके बाद व्यापारी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया.20वीं शताब्दी में यहां से डाकुओं का पूरी तरह सफाया हो गया था. लेकिन एक समय था जब डाकू भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते थे. निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, अरविंद गुर्जर जैसे कुख्यात डाकू भी इस मंदिर में पूजा करने आते थे.
क्या कहना है इतिहासकारों का?
इस मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना भीम ने अज्ञातवास के दौरान की थी. मंदिर की बनावट और इसकी भव्यता इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल बनाती है.
ऐसे हुई श्राद्ध पक्ष की शुरुआत, सबसे पहले महाराज युधिष्ठिर ने किया, अग्नि देव से भी है इसका संबंध
24 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है. पितृपक्ष इस बार 17 सितंबर से शुरू हो चुके हैं और 2 अक्तूबर तक चलेंगे. पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म की शुरुआत कहां और कैसे हुई थी? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध की परंपरा महाभारत काल से हुई थी.
पितृ पक्ष का सीधा संबंध महाभारत से है :
गरुड़ पुराण में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था. भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था, महर्षि निमि संभवत: जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे. इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे. दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था. इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है. चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था.उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है. इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे. कुछ मान्यताएं बताती हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका भी श्राद्ध किया था, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हें कर्ण का भी श्राद्ध करना चाहिए, युधिष्ठिर ने कहा कि वह तो हमारे कुल का नहीं है तो मैं कैसे उसका श्राद्ध कर सकता हूं? उसका श्राद्ध तो उसके कुल के लोगों को ही करना चाहिए. इस उत्तर के बाद पहली बार भगवान श्रीकृष्ण ने यह राज खोला था कि कर्ण तुम्हारा ही बड़ा भाई है.
श्राद्ध का अग्नि देव से भी है संबंध:
जब सभी ऋषि-मुनि देवताओं और पितरों को श्राद्ध में इतना अधिक भोजन कराने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि इसमें अग्नि देव आपकी मदद कर पाएंगे. इसके बाद अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा. इसलिए हमेशा पितरों को भोजन कराने के लिए श्राद्ध का भोजन कंडे और अग्नि को चढ़ाया जाता है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (24 सितंबर 2024)
24 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - शुभ कार्यों में समय बीतेगा, विरोधी साथ देंगे, कार्य में प्रगति होगी, समय पर कार्य पूर्ण करें।
वृष राशि - मित्रों का सहयोग मिलेगा, भाग्य की उन्नति होगी, प्रयत्न एवं मेल-मिलाप से कार्य पूर्ण होंगे।
मिथुन राशि - मित्रों का सहयोग मिलेगा, भाग्य की उन्नति होगी, पारिवारिक उत्तर दायित्व की प्राप्ति होगी।
कर्क राशि - स्त्री-संतान सुख मिलेगा, नौकरी वालों की पदोन्नति के योग बनेंगे, भाग्योदय होगा।
सिंह राशि - पत्नी के स्वास्थ्य की चिन्ता तथा भोग-ऐश्वर्य में धन व्यय होगा, पारिवारिक कार्यों पर ध्यान दें।
कन्या राशि - कार्य-व्यवसाय में अर्थ लाभ होगा, आलस्य से कार्यों में विलम्ब होगा, समय स्थिति को देखकर आगे बढ़ें।
तुला राशि - आर्थिक सामाजिक-राजनैतिक विकास लाभ होगा, स्त्री पक्ष से सुख प्राप्त होगा, सुख-साधन की वृद्धि होगी।
वृश्चिक राशि - पत्नी-संतान का सुख मिलेगा, आकस्मिक धन लाभ के अवसर प्राप्त होंगे, विवाद अवश्य निपटा लें।
धनु राशि - पुरानी व्यवस्थाओं का लाभ मिलेगा, समस्याओं का समाधान मिलेगा, अच्छे लोगों से सहयोग मिलेगा।
मकर राशि - इष्ट मित्रों से इच्छानुकूल सहयोग की प्राप्ति होगी, दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा, समय सुख में बीतेगा।
कुंभ राशि - विरोध की स्थिति बनेगी, गृह कलह से मन अशांत रहेगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
मीन राशि - व्यर्थ विवाद होने का भय रहेगा, सामान्य व्यवहार का वातावरण रहेगा, अनुकूल समय का लाभ लें।
भगवान की मूर्ति का गिरना, खंडित होना किस बात का संकेत? क्या होने वाला है कोई अपशकुन
23 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है. यहां घर-घर में एक पूजा घर या पूजा करने का खास स्थान जरूर होता है. कुछ लोग हर दिन अपनी श्रद्धा भक्ति के अनुसार पूजा करते हैं तो कुछ लोग सुबह या शाम के समय दीपक जरूर जलाते हैं. हर पर्व-त्योहार में लोग अपने घर के मंदिर को सुंदर तरीके से सजाते हैं. उसकी साफ-सफाई करते हैं. हर भगवान की प्रतिमा रखते हैं. नियमित रूप से पूजा-पाठ करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं. कई बार पूजा घर की सफाई करने के दौरान भगवान की मूर्ति हाथों से लगकर गिर जाती है. टूट जाती है. कई बार अचानक नजर पड़ती है कि प्रतिमा खंडित हो गई है. क्या इस तरह अचानक देवी-देवता की मूर्ति का खंडित होना या टूट कर गिर जाना किसी अशुभ संकेत की तरफ इशारा है?
क्या भगवान की मूर्ति का टूटना है अपशकुन?
सनातन धर्म में पूजा पाठ का विशेष महत्व है. पूजा पाठ के लिए एक विशेष पूजा पद्धति भी है, जिसके अनुसार हमें पूजा करनी चाहिए. बहुत बार देखा गया है कि पूजा करते समय मूर्ति हाथ से छूट कर गिर जाती है. बच्चों के खेलने से गिर जाती है. ऐसे में यह अशुभ संकेत है. आप कुछ उपाय तुरंत करके अपने ऊपर आने वाली परेशानियों को दूर कर सकते हैं.
-वास्तु और हिन्दू धर्म के मुताबिक, घर में रखी भगवान की मूर्ति टूट जाने पर उसे घर से हटा देना चाहिए. खंडित मूर्ति को विधि-विधान से विसर्जित करना चाहिए. उसकी पूजा करना गलत होता है. इससे शुभ फल नहीं मिलते हैं.
-अगर अचानक आपके हाथ से मूर्ति गिर कर टूट जाए तो घर में नकारात्मकता बढ़ सकती है. मूर्ति टूटने का मतलब यह भी हो सकता है कि घर पर आने वाली कोई विपदा को मूर्ति ने अपने ऊपर ले लिया है. जिसकी वजह से वह मूर्ति टूट गयी और आपके ऊपर आए संकट से आप बच गए. फिर भी भविष्य में आपको बचकर रहना चाहिए.
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-टूटी हुई मूर्ति को घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा घर के अंदर आ सकती है. खंडित मूर्ति को घर में रखने से अनिष्ट हो सकता है. लड़ाई-झगड़े शुरू हो सकते हैं.
– पूजा की अलमारी दीवार पर भी कुछ लोग टांगते हैं. ऐसा भी होता है कि अचानक से मूर्ति गिर कर या हाथ से छूट कर टूट जाती है. ये भविष्य में होने वाली किसी अनहोनी की तरफ इशारा हो सकता है. वास्तु दोष से बचने के लिए खंडित मूर्ति को बदलकर नई प्रतिमा घर लाएं और उसे पूजा स्थल पर रखें. खंडित मूर्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए. खंडित मूर्ति पूजा स्थान पर रखी हुई है तो पूजा करने में मन नहीं लगता. मन विचलित होता है. इसमें बाधा उत्पन्न हो सकती है.
खंडित प्रतिमा का क्या करें?
टूटी हुई मूर्तियों को गली, सड़क, पेड़ के नीचे या कूड़ेदान में फेंकने की गलती ना करें. इसे पानी में विसर्जित कर दें. फोटो फ्रेम टूट जाए तो भगवान की तस्वीर को उसमें से हटा दें और उस टूटी कांच और फ्रेम को हटा दें. कांच के बॉक्स में मूर्ति है या फोटो फ्रेम में तस्वीर है तो उसे भी विसर्जित कर दें. टूटे हुए कांच के फ्रेम में देवी-देवता की तस्वीर को पूजा घर में रखना अशुभ माना जाता है.
400 नदियों का पानी और 7 देशों का पत्थर... भारत में नहीं, यहां है दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर
23 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर भारत में नहीं है, बल्कि अमेरिका के न्यू जर्सी शहर में स्थित है. न्यू जर्सी शहर न्यूयॉर्क सिटी के पास है. यह दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर जैसा बनाया गया है. सबसे खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए 7 देशों के पत्तथरों का इस्तेमाल किया गया है. आइए जानते हैं इसके कुछ रोचक तथ्य…
पिछले साल 8 अक्टूबर को न्यू जर्सी में स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन किया गया था. यह मंदिर 191 फुट ऊंचा है. यहां स्वामीनारयण जी की पूजा होती है. इस मंदिर के निर्माण में लगे पत्थरों को बुल्गारिया, इटली, यूनान, तुर्की और भारत समेत 7 देशों से मंगाया गया है. ब्रह्मकुंड या बावड़ी में दुनियाभर की 400 अलग-अलग नदियों और झीलों का पानी है. इसमें भारत की गंगा और यमुना नदी का भी पानी है.
कौन हैं भगवान स्वामीनारायण?
स्वामीनारायण को घनश्याम पांडे भी कहा जाता है. 1781 को भगवान श्रीराम की जन्मभूमि कही जाने वाली अयोध्या के पास छपिया नाम के गांव में उनका जन्म हुआ था. ज्योतिषों ने इन्हें देखकर कहा कि यह बालक दुनियाभर के लोगों को सही दिशा दिखाने का काम करेगा. 8 साल की उम्र में उनका जनेऊ संस्कार हुआ, 11 साल की उम्र में उन्होंने सभी शास्त्रों को पढ़ लिया, जब माता-पिता का देहांत हुआ तो वह अपना घर त्याग दिएं और सन्यासी के रूप में जीवन जीने लगें. भारत के कई देशों में भ्रमण करने के बाद वह गुजरात में रुकें. वहां उनके कई फॉलोअर्स बन गएं. उन्होंने देश में कई कुरीतियों को खत्म करने के लिए काम किया और वह पुरुषोत्म नारायण कहलाने लगें.
पितृपक्ष में भूलकर न करें ये गलतियां, वरना भुगतने होंगे गंभीर परिणाम
23 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का बहुत बड़ा महत्व है और श्राद्ध पक्ष 15 दिन यानी कि एक पखवाड़े तक मनाया जाता है, मानता है कि इस दौरान पितृपक्ष और पूर्वज परिवार के बीच 15 दिन तक रहते हैं और इस पखवाड़े में तमाम प्रकार के जतन करते हुए पितृपक्ष को खुश किया जाता है. वही श्राद्ध पक्ष में दान पुण्य करने का बहुत बड़ा महत्व है, जिससे पितृपक्ष खुश हो जाते हैं लेकिन इस दौरान कुछ ऐसी बातों का ध्यान रखना विशेष जरूरी है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान ऐसी गलती नहीं करें जिससे पितृपक्ष नाराज हो सकते हैं.
नगर व्यास पंडित कमलेश व्यास ने लोकल 18 को बताया कि हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का बहुत महत्व है यह 15 दिन तक चलता है और अमावस पर इसकी समाप्ति हो जाती है, इस दौरान तिथि के हिसाब से पूर्वजों श्रद्धा मनाया जाता हैं. यह जो 15 दिन होते हैं विशेष रूप से पूर्वजो पितरों को समर्पित है.इस दौरान मान्यता है कि पूर्वज 15 दिन तक अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं. श्राद्ध पक्ष में पुण्य का बहुत बड़ा महत्व है इस दौरान पशुओं को भोजन करना, ब्राह्मण भोज और पुण्य दान किया जाता है और पितृपक्ष खुश होने के बाद परिवार को आशीर्वाद देते हैं.
पितरों को खुश करने के लिए करें यह काम –
श्राद्ध पक्ष के दौरान जितना हो सके उतना अपने पितरों और पूर्वजों के नाम दान पुण्य करना चाहिए. गौ माता को घास खिलाना , कबूतर को दाना खिलाना, कौवे को खाना खिलाना. इसके अलावा किसी गरीब व्यक्ति को भी भोजन कराया जा सकता है. जिससे पुण्य मिलता है वहीं वृद्ध आश्रम में जाकर भी भोजन करवा सकते हैं
भूलकर भी नहीं करें यह काम
श्राद्ध पक्ष के दौरान कई ऐसी बातें हैं जो अनजाने में हमसे हो जाती है लेकिन इससे कई बार पितृपक्ष नाराज हो सकते हैं तो कई ऐसी गलतियां है भूलकर भी श्राद्ध पक्ष के दौरान नहीं करनी चाहिए. जैसे किसी पशु या फिर गरीब व्यक्ति को परेशान नहीं करना चाहिए. घर में गंदगी नहीं रखनी चाहिए और इसके अलावा ऐसा कोई पाप या काम नहीं करना चाहिए जिससे इसका बुरा दुष्ट प्रभाव पर है. पितृदोष तब उत्पन्न होता है जब परिवार में किसी ने पितरों के प्रति अपने कर्तव्यों का सही पालन नहीं किया होता है. यह कर्तव्य तर्पण, श्राद्ध, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से पितरों को संतुष्ट करना है. अगर ये अनुष्ठान ठीक से नहीं किए जाते, तो पितर नाराज हो सकते हैं जिससे पितृदोष उत्पन्न होता है.
पितृदोष का ऐसे करे दूर –
नगर विकास पंडित कमलेश व्यास ने कहा कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करना, जिसमें पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और भोजन का आयोजन करना शामिल है ब्राह्मणों को भोजन कराना, जरूरतमंदों की सहायता करना और गो-दान करना भी पितरों की शांति के लिए लाभकारी होता है. जिससे पितरों की आत्मा को शांति मिले और दोष का निवारण हो सके.
घर में चाहिए बरकत तो लगा लें ये पौधा, दो गुना रफ्तार से आने लगेगा पैसा!
23 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वास्तु शास्त्र में कुछ पौधों को विशेष रूप से धन और समृद्धि का प्रतीक माना गया है. मनी प्लांट सबसे प्रसिद्ध पौधा है, जिसे घर में लगाने से आर्थिक समृद्धि और खुशहाली आती है. इसे घर के उत्तर-पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है. वहीं लोग सकारात्मक ऊर्जा और धन की वृद्धि के लिए तुलसी का पौधा भी लगाते हैं. वहीं हम आपको एक ऐसे पौधे के बारे में बताने जा रहे है जिसे सजावट के लिए घर में लगभग सभी जानते हैं. लेकिन इसके फायदों के बारे में कुछ ही लोगों को पता होता है. इस पौधे का नाम है क्रासुला.
लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि क्रासुला प्लांट, जिसे “जेड प्लांट” या “मनी ट्री” भी कहा जाता है. इसे वास्तु शास्त्र और फेंगशुई में धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इसकी मोटी, गोल पत्तियां सिक्कों की तरह दिखती हैं, जो इसे आर्थिक लाभ से जोड़ती हैं. इसे घर या दफ्तर के प्रवेश द्वार पर रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और धन की वृद्धि होती है. क्रासुला प्लांट कम देखभाल की आवश्यकता वाला पौधा है, जो सूखे को सहन कर सकता है और लंबे समय तक हरा-भरा रहता है. इसे उत्तर या दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है.
क्रासुला के फायदे
वास्तु शास्त्र और फेंगशुई के अनुसार, क्रासुला का पौधा धन और समृद्धि लाने के लिए घर या कार्यालय की उत्तर या दक्षिण-पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है. उत्तर दिशा को कुबेर, धन के देवता की दिशा मानी जाती है. जबकि दक्षिण-पूर्व दिशा को लक्ष्मी, समृद्धि की देवी से जोड़ा जाता है. इन दिशाओं में क्रासुला का पौधा लगाने से आर्थिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है. यह पौधा देखभाल में आसान है और लंबे समय तक हरा-भरा रहता है. इसलिए, क्रासुला का पौधा घर या कार्यालय में लगाने से सुख और समृद्धि का वास होता है.
घर में रखने से बढ़ता है पॉजिटिव ऊर्जा का प्रवाह
क्रासुला रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जिससे मानसिक तनाव और चिंता में कमी आती है. यह पौधा वातावरण को सुखद और ताजगी भरा बनाता है. इसके अलावा, इसकी सुंदरता और आकार इसे घर या ऑफिस की सजावट के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं. इन सभी फायदों के कारण, क्रासुला का पौधा न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक और भौतिक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
23 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष- व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि, किसी शुभ समाचार के मिलने का योग बन जायेगा।
वृष- आकस्मिक बेचैनी, स्वभाव में खिन्नता, थकावट असमंजस की स्थिति बन जायेगी।
मिथुन- बेचैनी से स्वभाव में खिन्नता, मन भ्रमित, मान प्रतिष्ठा में अपमान कमी होगी।
कर्क- दैनिक कार्य वृद्धि में सुधार, योजनाएं फलीभूत होगी, कार्य बनेंगे, ध्यान रखे।
सिंह- विसंगति से हानि, आशानुकूल सफलता से हर्ष, बिगड़े काम बन ही जायेगे।
कन्या- स्त्रीवर्ग से हर्ष उल्लास, सामाजिक कार्यों में मान प्रतिष्ठा नवीन होवेगी, ध्यान दें।
तुला- मान प्रतिष्ठा पर आंच आने का डर, विवाद ग्रस्त होने से बचिएं, ध्यान रखे।
वृश्चिक- सामाजिक कार्यों में प्रभुत्व वृद्धि, संवृद्धि संवर्धन के योग बनेंगे, कार्य करें।
धनु- शुभ समाचार से संतोष, दैनिक कार्य गति अनुकूल, मनोकामना पूर्ण होगी, ध्यान दें।
मकर- विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, अचानक यात्रा के प्रसंग अवश्य ही बनेगें।
कुंभ- स्वभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी, परिश्रम से व्यवसाय अनुकूल बनेगा।
मीन- समृद्धि के साधन जुटायें, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होवेगा, कार्य बनेंगे।
16 दीपक का यह उपाय करेगा पितरों को खुश, बनने लग जाएंगे बिगड़े हुए काम!
22 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हरिद्वार: पितृ पक्ष चल रहा है. ऐसे में पितरों को खुश करने के लिए लोग कई उपाय अपना सकते हैं. इससे न केवल आपकी पूजा सफल होगी, बल्कि पितरों की कृपा से आपके बिगड़े काम भी आराम से सफल हो जाएंगे. शास्त्रों के अनुसार पितृ विसर्जन अमावस्या पर यदी एक खास उपाय किया जाए तो पितृ प्रसन्न होकर धरती लोक से अपने लोक चले जाते हैं और परिजनों पर सदैव कृपा बनाए रखते हैं.
हरिद्वार के ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि इस साल पितृ विसर्जन अमावस्या 2 अक्टूबर को होगा. इस दिन लोग अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान आदि पूरे विधि विधान से करते हैं. पितृ विसर्जन अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात, जिन पितरों का श्राद्ध छूट गया हो, ऐसे सभी पितरों का श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान करके उन्हें धरती लोक से विदा किया जाता है.
शास्त्रों के अनुसार पितृ विसर्जन अमावस्या पर शाम के समय 16 दीपक सरसो के तेल से जलाने पर पितृ प्रसन्न होकर अपने परिजनों को आशीर्वाद देते हैं. 16 दीपक पितृ विसर्जन के दिन अमावस्या पर शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे या फिर गंगा किनारे जलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं. यदि आप अपने किसी पितृ का श्राद्ध करना भूल गए हैं या अनजाने में आपको अपने किसी ऐसे पितृ का श्राद्ध करना याद नहीं रहा, उनके उद्धार के लिए पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन शाम के समय गंगा किनारे या पीपल के पेड़ के नीचे 16 दीपक जलाकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करें. ऐसा करने से पितरों को शांति मिलती हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होने का शुभ फल मिलता है.
यहां 4,02,960 घंटे जल चुका अखंड दीप, सालों से ज्योति प्रज्वलित, इस देवी मंदिर की अनोखी महिमा
22 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
झारखंड के पलामू में दक्षिणेश्वर काली का प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां 4 लाख से भी ज्यादा घंटे से अखंड दीप जल रहा है. सालों से जल रहा यह दीपक लोगों की आस्था का प्रतीक है. मुराद पूरी होने पर लोग यहां घी का दान करते हैं, ताकि दीया अखंड रूप से जलता रहे.
पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर के रेड़मा चौक समीप स्थित भगवती भवन में मां दक्षिण काली का दरबार है. मान्यता है कि यहां श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है. यहां पान, कसैली और नारियल से पूजा की जाती है. नारियल की बलि देकर श्रद्धालु अपनी मनोकामना मांगते हैं. वहीं, मनोकामना पूर्ण होने पर मां का श्रृंगार कराते हैं और घी दान करते हैं.
मंदिर के पुजारी शिबुल बाबा ने लोकल 18 को बताया कि यह मंदिर करीब 60 साल पुराना है, जहां 1965 में मां दक्षिणेश्वर काली की स्थापना कराई गई थी. धीरे-धीरे श्रद्धालुओं का लगाव मंदिर से बढ़ता गया. 1978 में स्थानीय निवासी पप्पू सहानी द्वारा मंदिर को विस्तार करते हुए यहां द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना कराई गई. साथ में राधा-कृष्ण दरबार, शीतला माता दरबार, भगवान शंकर माता पार्वती दरबार और हनुमानजी की स्थापना कराई गई. मंदिर में अखंड दीप प्रज्वलित किया गया जो आज तक जल रहा है.
पुजारी ने आगे बताया कि इस मंदिर में सभी देवताओं का दरबार है. यहां आने पर मां से मांगी हुई हर मुराद श्रद्धालुओं की पूरी होती है. मंदिर परिसर में 1978 से अखंड दीप जल रहा है. कार्तिक मास के शुल्क पक्ष के दिन अखंड दीप को प्रज्वलित किया गया था, जो अब तक 4,02,960 घंटे जल चुका है. कोई भी श्रद्धालु अखंड दीप जलाना चाहता है तो 24 घंटे या 48 घंटे का दीप जला सकता है.
इस दिन नहाय खाय से शुरू होगा जीवित्पुत्रिका व्रत, इन बातों का रखें ध्यान, जानिए शुभ समय और महत्व
22 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
संतानों की लंबी उम्र और सभी विपदाओं से बचाने के लिए माताएं अपने बच्चों के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करती है. छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला औद्योगिक नगरी है इस लिहाज से यहां सभी प्रान्त के लोग निवास करते है, इसलिए इसे मिनी भारत भी कहा जाता है. इस साल यह व्रत 24 सितंबर 2024 को पड़ रहा है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह व्रत विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है. इस व्रत को जितिया व्रत भी कहा जाता है. इस साल माताएं अपने संतानों के लिए 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को निर्जला व्रत रखेंगी.व्रत और मुहूर्त को लेकर लोकल 18 ने कोरबा जिले में निवासरत काशी विश्वविद्यालय से आचार्य और ज्योतिष शास्त्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले आचार्य दशरथ नंदन द्विवेदी से बातचीत की…
ज्योतिष आचार्य दशरथ नंदन द्विवेदी ने बताया कि जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस बार 24 सितंबर को शाम 5:45 बजे प्रारंभ हो जाएगी. ऐसे में माताएं 24 तारीख की शाम से व्रत प्रारंभ करेंगे और 25 सितंबर को पूरे दिन और रात निर्जला व्रत रखेंगी और अगले दिन यानी कि 26 सितंबर को व्रत का पारण करेंगी. इसका पारण सुबह 4 बजकर 35 मिनट से सुबह 5 बजकर 23 मिनट तक किया जाएगा, इसलिए सूर्योदय के पहले पारण करना उचित होगा.
24 तारीख को नहाए खाए के साथ माताएं इस निर्जला व्रत की शुरुआत करेंगी. नहाए खाए के दिन मड़वें के आटा की रोटी, नोनी का साग और तरोई की सब्जी खाने के बाद इस व्रत की शुरुवात माताएं करती हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
22 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष- तनाव व क्लेश से अशान्ति, मानसिक विभ्रम, किसी घटना के शिकार से बचें।
वृष- असमंजस की स्थिति क्लेशप्रद होगी, विरोधी तत्व परेशान करेंगे, ध्यान रखें।
मिथुन- समय की अनुकूलता से लाभान्वित होंगे, विरोधी तत्व परेशान अवश्य करेंगे।
कर्क- इष्ट मित्र सुख वर्धक होंगे, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल बनी ही रहेगी, ध्यान दें।
सिंह- कुटुम्ब की समस्याएं सुलझेगी, स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास होगा, कार्य में ध्यान दें।
कन्या- अर्थलाभ कुटुम्ब की समस्याएं सुलझेगी, स्त्रीवर्ग से हर्ष उल्लास होगा।
तुला- विवाद ग्रस्त होने से बचे, अन्यथा संकट में फंस सकते हैं, ध्यान रखे।
वृश्चिक- अधिकारी वर्ग सहायक बनेंगे, कार्यवृत्ति में सुधार हो सफलता मिलेगी।
धनु- वृथा विवाद अनावश्यक, विभ्रम धन का व्यय, स्थिति कष्टप्रद बन जायेंगी।
मकर- योजनाएं फलीभूत होगी, कार्यकुशलता से संतोष समृद्धि के साधन जुटायें।
कुंभ- विरोधी तत्वों पर प्रबलता रहे, वृथा विभ्रम मानसिक बेचैनी बढ़ेगी।
मीन- समय पर सोचे हुए काम पूरे होंगे, किन्तु अधिक ढ़ीलापन से परेशानी बनेगी।
महादेव और चंद्रमा का क्या है संबंध? कैसे दूर होगा चंद्र दोष का कष्ट
21 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महर्षि वेदव्यास द्वार रचित शिव पुराण के श्रीरूद्र संहिता में चतुर्थ खंड के तेरहवें अध्याय में दक्ष प्रजापति की 60 पुत्रियों का विवाह वर्णन किया गया है. दरअसल भगवान शिव की पत्नी माता सती थीं, जो की राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. राजा दक्ष की कुल 60 पुत्रियां और थीं. जिसमें से राजा दक्ष ने अपनी 10 पुत्रियों का विवाह धर्म से, 13 पुत्रियों का विवाह कश्यप मुनि, 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से किया था. दो का भूतागिरस और कृशाश्व, और चार का ताक्ष्य से किया था. इसके अनुसार पूर्ण रूप से भगवान शिव और चंद्रमा के बीच का संबंध स्पष्ट होता है.
भगवान शिव के शीश पर विराजे चंद्रमा
भगवान शिव के शीश पर चंद्रमा के विराजमान होने को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो सृष्टि की रक्षा हो इसका पान स्वयं शिव ने किया. यह विष उनके कंठ में जमा हो गया थे, जिसकी वजह से वो नीलकंठ कहलाए.
कथा के अनुसार विषपान के प्रभाव से शंकर जी का शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा था. तब चंद्र सहित अन्य देवताओं ने प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे. श्वेत चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है, जो पूरी सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं. देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया.
राजा दक्ष की 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से
राजा दक्ष की 60 पुत्रियों में से 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था, लेकिन रोहिणी उनके सबसे समीप थीं. इससे दुखी चंद्रमा की बाकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी. तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया. इसकी वजह से चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं,
चंद्रमा की परेशानी देखकर नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा. चंद्रमा ने अपनी भक्ति और घोर तपस्या से शिवजी को जल्द प्रसन्न कर लिया. शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णिमा पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली, तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया था.
चंद्र दोष का उपाय
कर्क राशि चन्द्रमा की अपनी राशि है, वृषभ राशि में चन्द्रमा उच्च का होता है एवं वृश्चिक राशि में चन्द्रमा को नीच का माना जाता है. इसके साथ ही यदि चन्द्रमा शनि, राहु, केतु जैसे ग्रहों के साथ बैठा हो या दृष्टि सम्बन्ध बना रहा हो तब वह और भी पीड़ित हो जाता है. ऐसे जातक को शिव जी की पूजा करनी चाहिए. शिव पूजा से कुंडली का चंद्र दोष दूर होता है.
बेटे ही क्यों करते हैं अंतिम संस्कार? शास्त्रों में बताई गई है वजह, आचार्य से जानें
21 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े कई नियम हैं.मृत्यु जीवन का अंतिम और अटल सत्य है. जिसे कोई टाल नहीं सकता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, जिसने भी इस संसार में जन्म लिया है. उसकी मृत्यु होना निश्चित है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है. जिससे जुड़ें कई नियम हैं. उन्हीं में से एक बेटे द्वारा मुखाग्नि देना. इसके पीछे भी पुराणों मे महत्व बताया गया है. उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से जानते है. बेटे ही क्यों मुखाग्नि देते है?.
शास्त्रों मे पुत्र का अर्थ विस्तार से बताया गया है. पुत्र शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है. ‘पु’ यानी नरक और ‘त्र’ यानी की त्राण. इस हिसाब से पुत्र का अर्थ हुआ नकर से तारने वाले यानी कि नरक से निकाल कर, पिता या मृतक को उच्च स्थान पर पहुंचाने वाला. इसी वजह से ही पुत्र को अंतिम संस्कार की सभी प्रक्रिया को करने का प्रथम अधिकार दिया गया है. हिन्दू धर्म मे जैसे बेटी को लक्ष्मी स्वरूप पूजा जाता है. वैसे ही पुत्र को विष्णु तत्व माना जाता है. विष्णु तत्व से यहां अर्थ है पालन पोषण करने वाला, यानी घर का वो सदस्य जो पूरे घर को संभालता है. घर के सदस्यों का भरण पोषण करता है. हालांकि अब इस जिम्मेदारी को लड़कियां भी उठाने में पूरी तरह सक्षम हैं.
जानिए कितने प्रकार के पुत्र दे सकते है मुखाग्नि
बहुत से लोगों के मन में भी कभी ना कभी यह प्रश्न भी जरूर उठा होगा. जिस व्यक्ति को पुत्र नहीं है तो क्या उसे जीवन में मोक्ष नहीं मिल सकता?. ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि हिंदू परंपराओं में महिलाओं को श्मशान घाट जाने तक की आजादी नहीं होती है. अगर किसी व्यक्ति को पुत्र नहीं है तो ऐसा नहीं है. वह अपनी पुत्री के हाथों मुखाग्नि ले सकता है. उसे उसकी पुत्री के हाथों मुखाग्नि दिया जा सकता है. इसके लिए भी हिंदू शास्त्रों में उपाय बताए गए हैं. इंसान के अपने पुत्र के अलावा और मानस पुत्र, गोद लिया हुआ पुत्र, पुत्री का पुत्र, खरीदा हुआ पुत्र, भाई का पुत्र सहित 12 प्रकार के पुत्र होते हैं. इनमें से किसी के द्वारा भी मुखाग्नि देने पर इंसान को मोक्ष मिल सकता है.