धर्म एवं ज्योतिष
घर में शांति और बरकत चाहिए? आईने से बदलें दिशा की ऊर्जा, जानिए मिरर से वर्चुअल एंट्रेंस बनाने का तरीका
16 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Vastu Tips for Mirror : घर की मुख्य एंट्रेंस केवल आने-जाने का रास्ता नहीं होती, बल्कि यह ऊर्जा के प्रवेश का सबसे बड़ा स्रोत होती है. वास्तु शास्त्र के अनुसार, जिस दिशा में घर की एंट्रेंस होती है, उसका सीधा असर वहां रहने वालों की सेहत, धन और कामयाबी पर पड़ता है. कुछ दिशाएं ऐसी होती हैं जो घर में नकारात्मकता लाती हैं, जबकि कुछ दिशा की एंट्रेंस पॉजिटिव ऊर्जा को खींचती है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं इंदौर निवासी ज्योतिषी, वास्तु विशेषज्ञ एवं न्यूमेरोलॉजिस्ट हिमाचल सिंह. अगर आपका घर W1 या W2 दिशा में खुलता है, तो यह एक नकारात्मक एंट्रेंस मानी जाती है. इसके मुकाबले W3 और W4 जैसी दिशाएं बहुत शुभ मानी जाती हैं और ये घर में बरकत और खुशहाली लाती हैं. लेकिन सवाल ये है कि अगर आपके घर की एंट्रेंस गलत दिशा में बनी हुई है, तो क्या आप कुछ कर सकते हैं?
आईना यानी मिरर से बदली जा सकती है दिशा की ऊर्जा
वास्तु में आईने का इस्तेमाल केवल सजावट के लिए नहीं होता, बल्कि यह दिशा और ऊर्जा को सुधारने का एक असरदार ज़रिया भी होता है. अगर आपके घर की एंट्रेंस W1 या W2 में है और आप उसमें बदलाव नहीं कर सकते, तो वर्चुअल एंट्रेंस बनाना एक आसान और असरदार उपाय हो सकता है.
इसका तरीका यह है कि आप ऐसी जगह पर मिरर लगाएं जहां W3 या W4 की दिशा का आभास हो सके. उदाहरण के लिए, अगर आपके घर की दीवार या कोई कोना W3 की ओर है, तो वहां एक बड़ा मिरर इस तरह लगाएं कि वो दरवाज़े के ठीक सामने दिखाई दे. इससे वर्चुअली ऐसा प्रतीत होगा जैसे आपके घर की एंट्रेंस शुभ दिशा में है.
मिरर लगाते समय रखें ये सावधानियां
आईना लगाना जितना आसान लगता है, उससे कहीं ज़्यादा ध्यान देने वाला काम है. अगर मिरर गलत दिशा में या गलत एंगल पर लगाया गया, तो इसका असर उल्टा भी हो सकता है. जिस एंट्रेंस को पॉजिटिव करना चाह रहे थे, वह और ज़्यादा नेगेटिव असर देने लगती है.
इसलिए मिरर लगाते समय कुछ बातें ज़रूर ध्यान में रखें-
-मिरर हमेशा साफ-सुथरा और बिना दरार वाला होना चाहिए.
-अगर दीवार नहीं है, तो आप स्टैंडिंग मिरर का इस्तेमाल कर सकते हैं.
-मिरर का फ्रेम हल्का और सादा रखें, ताकि फोकस ऊर्जा पर रहे.
-मिरर की पोजिशन इस तरह हो कि वो बाहर की पॉजिटिव दिशा को दिखाए, न कि कोई बिखरी हुई या भारी चीज़ों को.
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16 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हरिद्वार. कहा जाता है कि ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य की सभी समस्याओं का समाधान है. ग्रह संबंधित दोष हो या पितृ दोष सभी समस्याओं का निवारण ज्योतिष शास्त्र में विस्तार से बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से सभी नवग्रहों का एक रत्न और उनके उपरत्न धारण करने से व्यक्ति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अगर किसी जातक की कुंडली में कोई ग्रह नकारात्मक भाव में विराजमान है और जातक की कुंडली पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा तो उस ग्रह संबंधित रत्न को विधि अनुसार धारण करने की सलाह दी जाती है. सभी रत्नों में पुखराज रत्न ऐसा है जिसे धारण करने के बाद सोई हुई किस्मत जाग जाती है और धारक मालामाल हो जाता है.
धारण करने के कई लाभ
ज्योतिष शास्त्र के जानकार पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि सभी नवग्रहों के अलग-अलग रत्न होते हैं, जिनको धारण करने पर ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव खत्म हो जाता है. बृहस्पति ग्रह सभी ग्रहों के गुरु और सर्व शक्तिशाली है. अपार धन की प्राप्ति सभी कार्यों में सफलता और जीवन में सुख समृद्धि खुशहाली के लिए पुखराज रत्न को धारण किया जाता है. गुरु बृहस्पति ग्रह पुखराज रत्न, गुरु बृहस्पति ग्रह का रतन है जिसे सभी 12 राशियों के जातक धारण कर सकते हैं. जिसके जीवन में धन का अभाव है, पुखराज रत्न को विधि अनुसार धारण कर ले तो वो मालामाल हो जाता है.
कैसे करें पहचान
ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि पुखराज रत्न को धारण करने से पहले अपनी कुंडली ज्योतिष के जानकार को जरूर दिखाएं. सभी रत्नों में पुखराज रत्न धन की प्राप्ति, सभी कार्यों में सफलता और गुरु बृहस्पति के लिए पहना जाता है. इस रत्न को धारण करने से पूर्व अभिमंत्रित करना बेहद जरूरी होता है. पुखराज को धारण करने के लिए एक दिन पहले यानी बुधवार के दिन शाम को गंगाजल, दूध, शहद, दही, मिश्री आदि में डालकर रख दें और साफ करके बाहर निकल लें. उसके बाद गुरु बृहस्पति के बीज मंत्र का जाप करें और प्रार्थना करें कि यह रत्न आपके लिए अनुकूल है. रात को सोने से पहले इसे पीले वस्त्र में बांधकर अपने तकिए के नीचे रखें और सुबह पवित्र होकर इस रत्न को हाथ की उंगली में धारण कर लें.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन ( 16 जून 2025)
16 Jun, 2025 12:03 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- धन लाभ एवं योजनाएं फलीभूत हों, कार्य कुशलता से पूर्ण संतोष अवश्य होगा, ध्यान रखें।
वृष :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, समय स्थिति का ध्यान रखें।
मिथुन :- मनोबल उत्साह वर्धक रहे, व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि होगी, कार्यकुशलता से संतोष होगा।
कर्क :- मनोबल संवेदनशील रहे, भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुए कार्य अवश्य ही बनेंगे।
सिंह :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य कुशलता से संतोष व्यावसाय अनुकूल होगा।
कन्या :- इष्ट मित्रों से मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, समय पर सोचे कार्य पूर्ण हो जायेंगे
तुला :- कुटुम्ब की समस्याओं में धन व्यय होगा तथा भ्रमणशील स्थिति बनी रहेगी।
वृश्चिक :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी, सफलता के साधन बने, इष्ट मित्र सुख वर्धक होंगे, कार्य बनेंगे।
धनु :- धन लाभ, अधिकारियों से मेल मिलाप होगा, कार्य कुशलता स्थिति अच्छी सुलभ हो जायेगी।
मकर :- कार्यवृत्ति में सुधार, स्थिति में नियंत्रण रखें, स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास अवश्य ही होगा।
कुम्भ :- विशेष कार्य स्थिगित रखें, मानसिक उद्विघ्नता बनेगी, कार्य अवरोध संभव होगा।
मीन :- प्रयास सफल हों, इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, दैनिक कार्य उत्तम, सफलता अवश्य मिलेगी।
बिना गोत्र के अधूरी है पूजा! जानें कैसे करें अपने गोत्र की पहचान
15 Jun, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
किसी की पहचान सिर्फ उसके नाम या गांव से नहीं होती बल्कि हमारे पुरखों की परंपरा और ऋषियों की स्मृति भी उसमें जुड़ी होती है, यही संबंध गोत्र कहलाता है. यह सिर्फ एक पारिवारिक नाम नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों से जुड़ी हुई एक पवित्र परंपरा है, जो आज भी विवाह, उपनयन संस्कार और पूजा-पाठ जैसे कई धार्मिक कार्यों में अनिवार्य रूप से पूछी जाती है. गोत्र व्यक्ति के आध्यात्मिक वंश को बताता है, जैसे सरनेम से सामाजिक पहचान होती है, वैसे ही गोत्र से ऋषि परंपरा की. लेकिन कई बार पूजा अर्चना के समय पंडितजी गोत्र पूछते हैं, कुछ लोगों को गोत्र के बारे में जानकारी होती है तो कुछ लोगों को नहीं. ऐसे में आप इस आर्टिकल के माध्यम से अपने गोत्र के बारे में जान सकते हैं और पूजा अर्चना में यह नाम ले सकते हैं…
क्यों जरूरी है गोत्र?
हिंदू धर्म में समान गोत्र में विवाह वर्जित होता है, इसे सगोत्र विवाह निषेध कहा जाता है. इसका उद्देश्य रक्त संबंधी विवाह से बचना है, जिससे आनुवंशिक दोष न बढ़ें. गोत्र का उपयोग पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते समय आवश्यक होता है, जिससे वे सही आत्मा तक पहुंच सकें. साथ ही गोत्र का उच्चारण पूजा, संकल्प और हवन आदि में किया जाता है, जैसे ‘मम गोत्र फलाने ऋषेः…’ यह बताता है कि हम किस ऋषि परंपरा से हैं और उसी के अनुसार अनुष्ठान किया जाता है. हिंदू धर्म में माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी सप्तर्षि या उनके वंशज से उत्पन्न है। उसी ऋषि का नाम व्यक्ति के गोत्र के रूप में चलता है. उदाहरण के लिए भारद्वाज गोत्र, वशिष्ठ गोत्र, कश्यप गोत्र, अत्रि गोत्र आदि.
ब्रह्माजी के 10 मानस पुत्र
ब्रह्माजी ने सृष्टि के निर्माण से पहले 10 मानस पुत्र उत्पन्न किए, जिनके नाम हैं: ऋषि मरीचि, ऋषि अत्रि, ऋषि अंगिरा, ऋषि पुलस्त्य, ऋषि पुलह, ऋषि क्रतु, ऋषि भृगु, गुरु वशिष्ठ, दक्ष और नारद. इन 10 मानस पुत्रों के अलावा, सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार को भी ब्रह्माजी का मानस पुत्र माना जाता है. ये सभी मानस पुत्र ब्रह्माजी की इच्छा से उनके मन से उत्पन्न हुए थे इसलिए इनको मानस पुत्र कहा जाता है.
ऋषि कश्यप की 13 पत्नियां
ऋषि मरीचि के पुत्र हुए ऋषि कश्यप थे और इनको सृष्टि के रचयिता के रूप में भी जाना जाता है. वहीं पुराणों में, प्रजापति दक्ष की 60 पुत्रियों का उल्लेख है, जिनका विवाह विभिन्न देवताओं और ऋषियों से हुआ था. जिनमें 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से, 10 पुत्रियों का विवाह धर्म से और 13 पुत्रियों का विवाह ऋषि कश्यप हुआ. सति का विवाह भगवान शिव और बाकी की पुत्रियों के विवाह अलग अलग ऋषि-मुनि और देवताओं से हुए. यही संबंध सृष्टि की रचना के आधार बने. इन्हीं विवाहों से ही संसार के सभी प्राणी उत्पन्न हुए, जिनमें देवता, असुर और मनुष्य शामिल हैं.
पूरी सृष्टि का हुआ निर्माण
ऋषि कश्यप की 13 पत्नियां थीं, जिनमें अदिती और दिति प्रमुख थीं. अदिती से देवताओं यानी आदित्यों का जन्म हुआ, जिनमें से सूर्यदेव ब्रह्मांड की ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत बने और इंद्र, देवताओं के राजा बने. वहीं दिति से असुरों का जन्म हुआ, जिनमें सबसे बड़े हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप थे. अदिति से आदित्य (सूर्य, इंद्र, जल, अग्नि, धर्म सहित 12 पुत्र), दिति से दैत्य (असुर), दनु से दानव, कद्रू से नागों, विनता से गरुड़ और वरुण, अरिष्टा से गंधर्व, मुनि से अप्सराएं, इला से वृक्ष, लताएं आदि वनस्पतियों का जन्म, सुरासा से नागों के दूसरे वंश, काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु, सुराभि से गौ माताएं, भैंस, क्रोधवशा से विष वाले जीव अर्थात बिच्छू जैसे, इरा से रेंगने वाले जीवों को जन्म दिया, ताम्रा से बाज, गिद्ध आदि शिकारी पंक्षी.
मनु की वजह से कहलाए मनुष्य
ऋषि कश्यप के पुत्र विस्वान से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ, जो हिंदू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे और इनसे ही मनुष्य का जन्म हुआ. मनु की संतान होने की वजह से ही मनुष्य कहा जाता है. जितने भी देवता, पशु, पक्षी, असुर, मनुष्य हैं, ये सभी आपस में भाई बहन ही हैं. एक ऋषि कश्यप की ही हम सभी संतान हैं. इसलिए अगर आप पूजा पाठ करवा रहे हों और गोत्र पता ना हो तो आप कश्यप गोत्र कहकर भी पूजा अर्चना कर सकते हैं. वहीं अगर आपको अपना गोत्र पता है तो यह और भी अच्छी बात है.
भारत में प्रचलित प्रमुख गोत्र
कश्यप गोत्र
भारद्वाजगोत्र
वशिष्ठगोत्र
अत्रि गोत्र
गौतम गोत्र
वत्स गोत्र
जमदग्नि गोत्र
विश्वामित्र गोत्र
इस घाट पर घाट-घाट का पानी पीने वालों के पाप भी हो जाते हैं साफ, अश्वमेध यज्ञ वाला मिलता है पुण्य
15 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ऋषिकेश. आध्यात्मिक राजधानी कहे जाने वाले ऋषिकेश में एक से बढ़कर एक तीर्थ स्थल और घाट हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि आत्मिक शुद्धि और मानसिक शांति का भी स्रोत हैं. गंगा नदी के तट पर मौजूद यह नगर साधु-संतों, योग साधकों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. यहां पर मौजूद गौ घाट एक ऐसा पावन स्थल है जहां स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है. इस विश्वास के पीछे गहराई से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं, पौराणिक इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा छुपी है.
सम्राट और राजाओं का यज्ञ
Local 18 के साथ बातचीत में ऋषिकेश के श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी बताते हैं कि गौ घाट लक्ष्मण झूला क्षेत्र में है, जहां हर दिन हजारों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं. यह घाट उन भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है जो अपने जीवन के पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं और आत्मा की शुद्धि की कामना करते हैं. जो व्यक्ति इस घाट में गंगा स्नान करता है, उसे उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना अश्वमेध यज्ञ करने से मिलता है. अश्वमेध यज्ञ वैदिक काल का सबसे बड़ा और शक्तिशाली यज्ञ माना जाता है, जिसे केवल बड़े सम्राट और राजा करते हैं. इस यज्ञ के बराबर पुण्य सिर्फ स्नान से मिलना गौ घाट की महिमा को दर्शाता है.
गोदान और गोसेवा
गौ घाट का नाम भी विशेष है. गौ का अर्थ होता है ‘गाय’, जो हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय मानी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि इस घाट पर कभी गोदान और गोसेवा की परंपरा भी प्रचलित थी. इससे जुड़ी कई कथाएं और संतों की तपस्थलीय जीवन शैली आज भी इस घाट की पहचान बनाए हुए हैं. यह घाट न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है बल्कि यहां का वातावरण भी अत्यंत शांत, दिव्य और ऊर्जा से भरपूर है. यहां की आरती, गंगा की कलकल ध्वनि और श्रद्धालुओं की प्रार्थनाएं मिलकर एक ऐसा अनुभव प्रदान करती हैं, जो आत्मा को गहराई से स्पर्श करता है. गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा, माघ मेला, श्राद्ध पक्ष आदि पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.
बेहद चमत्कारी है यह मंदिर... खाटूश्याम जी के पास में है स्थित, शिव के पांचवे रूद्रावतार की होती है पूजा!
15 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विश्व प्रसिद्ध खाटूश्याम जी मंदिर से 17 किलोमीटर दूर रीगंस कस्बे में लोक देवता भैरूजी महाराज का एक चमत्कारी मंदिर मौजूद है. रीगंस वहीं पवित्र जगह है जहां से पदयात्रा बाबा श्याम के निशान उठाते हैं. यहां भैरूजी महाराज का मंदिर सैकड़ो साल पुराना मंदिर मौजूद है.
इस मंदिर को लेकर लोगों की अनेकों मान्यताएं हैं. देश के कई राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु में भैरूजी महाराज के दर्शन करने के लिए आते हैं. भैरूजी महाराज के चमत्कार ऐसे हैं की दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. भैरव बाबा की पवित्र जोहड़ी में श्रद्धालु स्नान करते हुए अपने पुराने से पुराने रोगो से मुक्ति पाते हैं. यहां दरबार में नव विवाहित जोड़े की जात देते हैं यहां अपने बच्चों के जात जडूलै भी उतारते हैं. भैरूजी मंदिर के पास ही शमशान भूमि है. पुजारियों द्वारा बताया जाता है कि यह शमशान वासी भैरव का स्थान है. यहां पर कोई भी औरत बैठकर किसी भी समय खाना खाए या कोई उसको कोई भी परेशानी नहीं होती. यहां पर औरतें अपने बच्चों के साथ जडुले उतारने के लिए आती रहती है और उनकी मन्नते पूरी होती है. तभी से भैरू बाबा पर ब्रह्म हत्या का अभिशाप लग गया था. इससे मुक्ति प्राप्त करने के लिए भैरू बाबा ने तीनों लोकों की यात्रा की. ऐसा माना जाता है कि भैरू बाबा के तीनों लोकों की यात्रा पृथ्वी लोक पर रींगस से शुरू हुई थी. पुजारी के पूर्वज मंडोर से चलते हुए रींगस पहुंचे. जहां पर तालाब किनारे रात में विश्राम के लिए रुके और फिर वहां पर झोली से पत्थर की मूर्ति निकालकर पूजा की और खाना खाकर सो गए. सुबह जब जाते वक्त मूर्ति को वापस उठाने लगे तो, मूर्ति वहां से नहीं हिली और अचानक आकाशवाणी हुई. आवाज आई कि ‘जहां से मैंने ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करने के लिए पृथ्वी लोग की पदयात्रा शुरू की थी, आज उसी स्थान पर आ गया हूं और मैं यही निवास करना चाहता हूं. इसके बाद पुजारी के पूर्वज गुर्जर प्रतिहार वहीं रुक गए और भैरव बाबा की पूजा अर्चना करने लग गए. आपको बता दे की खाटूश्याम जी मंदिर में रींगस पदयात्रा से पहले बाबा श्याम का निशान उठाने से पहले श्रद्धालु इस मंदिर में आकर रींगस के भेरुजी के दर्शन करते हैं. यहां से मनोकामना मांगते हैं. इस मंदिर में साल में एक बार विशेष आयोजन भी होता है. इस मेले में राजस्थान के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन ( 15 जून 2025)
15 Jun, 2025 01:55 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- भाग्य का सितारा साथ देगा, इष्ट मित्र सहयोगी होंगे, रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे|
वृष राशि :- इष्ट मित्र सुख वर्धक हो, मनोबल बनाए रखे, उत्साह हीनता से हानि अवश्य ही होगी|
मिथुन राशि :- इष्ट मित्रों से परेशानी, कष्ट व अशांति, दैनिक कार्यगति अनुकूल अवश्य ही बनेगी|
कर्क राशि :- मान प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, स्त्री वर्ग से हर्ष उल्लास, समृद्धि के साधन अवश्य जुटाए|
सिंह राशि :- कार्यगति अनुकूल हो, सामाजिक में प्रभुत्व वृद्धि, एवं प्रतिष्ठा अवश्य ही बढ़ेगी|
कन्या राशि :-कुटुम्ब की परेशानी, चिन्ता व्यग्रता तथा उदविघ्नता से बचिए, कार्य अवरोध होगा|
तुला राशि :- धन हानि, शरीर कष्ट मानसिक बेचैनी, व्यर्थ भ्रमण, धन का व्यय संभावित होगा|
वृश्चिक राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हो, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद अवश्य ही होगा|
धनु राशि :- कार्य कुशलता से संतोष, दैनिक समृद्धि के साधन अवश्य ही बनेंगे, समय का ध्यान रखे|
मकर राशि :- दैनिक कार्यगति में सुधार, योजना फलीभूत होगी, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे|
कुंभ राशि :- विशेष कार्य स्थिगित रखे, दैनिक मानसिक विभ्रम, किन्तु उद्विघ्नता से बचिए|
मीन राशि :- कार्य विफलता, सफलता मेहनत पर भी दिखाई न दें, कार्य अवराधे होगा|
योगिनी एकादशी से लेकर गुरु पूर्णिमा तक, यहां देखें आषाढ़ माह के व्रत-त्यौहारों की पूरी लिस्ट
14 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में आषाढ़ का माह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह चौथा महीना होता है, जिसकी शुरुआत 12 जून से शुरू हो चुकी है. आषाढ़ के महीने में भगवान शंकर, भगवान विष्णु के अलावा माता लक्ष्मी और भगवान सूर्य देव की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना की जाती है. इस वर्ष आषाढ़ माह का महत्व ग्रह गोचर के कारण काफी बढ़ जाता है, क्योंकि इस महीने कई बड़े ग्रहों का गोचर भी होगा. इसके अलावा इस महीने कई प्रमुख व्रत और त्योहार भी मनाया जाते हैं, जो अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं, तो चलिए इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि इस महीने की क्या महिमा है और कितने व्रत और त्योहार मनाए जाएंगे….
आषाढ़ माह का महत्व
कि हिंदू पंचांग के अनुसार 12 जून से आषाढ़ माह की शुरुआत हो चुकी है, जिसका समापन 10 जुलाई को होगा. इस महीने प्रमुख व्रत और त्योहार भी मनाए जाएंगे जो अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इस महीने भगवान विष्णु और भगवान शंकर की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से जीवन में चल रही तमाम तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलती है .
धार्मिक दृष्टि यह माह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस महीने मौसम में भी कई परिवर्तन देखने को मिलते है. इसी महीने जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की भी यात्रा निकलती है और इसके अलावा इस महीने गुरु पूर्णिमा का भी पर्व मनाया जाता है.
व्रत और त्योहार की लिस्ट
14 जून को संकष्टी गणेश चतुर्थी
15 जून को मिथुन संक्रांति का पर्व
21 जून को योगिनी एकादशी
23 जून को प्रदोष व्रत
24 जून को रोहिणी व्रत
25 जून को अमावस्या, आषाढ़ अमावस्या
26 जून को गुप्त नवरात्रि आरंभ, चंद्र दर्शन
27 को जगन्नाथ रथयात्रा
06 जुलाई को एकादशी, देवशयनी एकादशी
08 जुलाई को भौम प्रदेाष व्रत, जया पार्वती व्रत
10 जुलाई को पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा, सत्य व्रत
क्या आपने बच्चों को सिखाई हैं चाणक्य की ये 8 बातें? अगर नहीं तो संतान के शत्रु समान हैं आप!
14 Jun, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा अच्छा इंसान बने, तरक्की करे और समाज में उसका नाम हो. वे अपने बच्चों को हर खुशी देना चाहते हैं, चाहे वह पढ़ाई हो, संस्कार हो या सुरक्षा. लेकिन सिर्फ पैसे से या चीजें देने से बच्चों का भविष्य नहीं बनता. अगर बच्चे को सही सोच और सही रास्ता नहीं दिखाया गया, तो वह भटक सकता है. बच्चे की असली परवरिश तभी होती है जब उसे छोटी उम्र से ही अच्छे-बुरे की पहचान सिखाई जाए. इसके लिए जरूरी है कि माता-पिता खुद भी सीखें और वही बातें अपने बच्चों को भी सिखाएं. आचार्य चाणक्य ने परिवार, शिक्षा और बच्चों की परवरिश को लेकर कई ऐसी बातें बताई हैं, जो आज के समय में भी पूरी तरह लागू होती हैं. अगर हम इन बातों को बच्चों की परवरिश में शामिल करें, तो वे न सिर्फ सफल इंसान बनेंगे बल्कि अच्छे नागरिक भी बनेंगे. आज की बदलती जीवनशैली और डिजिटल युग में जहां बच्चों पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं, वहां आचार्य चाणक्य की ये नीतियां उन्हें सही दिशा देने का काम कर सकती हैं. इस आर्टिकल में हम ऐसी ही कुछ जरूरी नीतियों के बारे में बात कर रहे हैं जो हर बच्चे को सिखाई जानी चाहिए.
1. सच्चाई और ईमानदारी का महत्व बताएं
आचार्य चाणक्य कहते थे कि इंसान की पहचान उसकी सच्चाई और उसके काम से होती है. अगर बच्चा झूठ बोलना सीख गया, तो वह भरोसे के लायक नहीं रहेगा. माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को शुरुआत से ही सिखाएं कि सच बोलना कितना जरूरी है, चाहे हालात जैसे भी हों.
2. मुश्किलों से भागना नहीं, सामना करना सिखाएं
जीवन में कभी न कभी मुश्किलें जरूर आती हैं. चाणक्य की नीति कहती है कि जो इंसान चुनौतियों से डरता नहीं है, वही आगे बढ़ता है. बच्चों को बताएं कि गिरना बुरा नहीं, लेकिन गिरकर उठना जरूरी है. हर समस्या का कोई न कोई हल जरूर होता है.
3. आत्मनिर्भर बनने की आदत डालें
बच्चों को बचपन से ही छोटे-छोटे काम खुद करना सिखाएं. जैसे अपना बैग खुद तैयार करना, बिस्तर लगाना या अपने खिलौने संभालना. इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे दूसरों पर निर्भर रहना छोड़ेंगे. आचार्य चाणक्य मानते थे कि आत्मनिर्भर इंसान कभी कमजोर नहीं पड़ता.
4. अच्छे संस्कार और व्यवहार सिखाएं
पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी जरूरी हैं. आचार्य चाणक्य कहते थे कि अगर इंसान के पास ज्ञान है लेकिन संस्कार नहीं, तो वह समाज के लिए खतरा बन सकता है. बच्चों को नम्रता, आदर और सहनशीलता जैसे गुणों की समझ दें.
5. गलत संगति से दूर रहना सिखाएं
आचार्य चाणक्य कहते थे कि संगत का असर बहुत गहरा होता है. अगर बच्चा गलत दोस्तों के साथ रहेगा, तो उसकी सोच और आदतें भी वैसी ही बन जाएंगी. उन्हें सिखाएं कि हमेशा सोच-समझकर दोस्ती करें और बुरी संगति से बचें.
6. समय का सही उपयोग करना सिखाएं
आचार्य चाणक्य मानते थे कि जो समय की कद्र करता है, वही आगे बढ़ता है. बच्चों को बताएं कि खेल जरूरी है लेकिन पढ़ाई, आराम और घर के काम भी उतने ही जरूरी हैं. दिन का समय कैसे बांटना है, यह आदत बचपन से डालें.
7. गुस्से को काबू में रखना सिखाएं
बच्चों को यह सिखाएं कि गुस्सा करना किसी समस्या का हल नहीं है. आचार्य चाणक्य कहते थे कि जो अपने क्रोध पर काबू कर लेता है, वही सच्चा विजेता होता है. अगर बच्चा गुस्से वाला है, तो उसे प्यार से समझाएं और शांत रहने के तरीके बताएं.
8. दूसरों की मदद करने की भावना जगाएं
चाणक्य नीति में कहा गया है कि इंसान को ऐसा जीवन जीना चाहिए जिससे दूसरों को भी लाभ हो. बच्चों में दया, सहयोग और मदद की भावना बचपन से डालें. उन्हें समझाएं कि छोटा हो या बड़ा, सबका सम्मान करना चाहिए.
दोनों भौंहें का आपस में मिलने का क्या होता है मतलब, शुभ या अशुभ? जानिए सामुद्रिक शास्त्र में छिपे इसके खास संकेत
14 Jun, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हम जब किसी इंसान से पहली बार मिलते हैं तो सबसे पहले उसके चेहरे को देखते हैं. चेहरे का हावभाव, आंखों की बनावट, माथे की रेखाएं, होंठ, नाक और भौंहें- ये सब चीजें किसी इंसान के स्वभाव और भविष्य के बारे में बहुत कुछ बता देती हैं. भारत में सदियों से चेहरे के अंगों को देखकर व्यक्ति के स्वभाव और भाग्य को जानने की विद्या चली आ रही है, जिसे सामुद्रिक शास्त्र कहते हैं. यह शास्त्र कहता है कि शरीर और चेहरे के हर अंग का कोई न कोई अर्थ होता है और इन्हीं संकेतों के आधार पर व्यक्ति की सोच, व्यवहार और भविष्य से जुड़ी बातें पता की जा सकती हैं. आज हम बात कर रहे हैं एक बहुत खास संकेत की. अगर किसी व्यक्ति की दोनों भौंहें आपस में मिली हुई हों, तो इसका क्या मतलब होता है? क्या ये कोई शुभ संकेत है या अशुभ?
भौंहों का मिलना क्या बताता है सामुद्रिक शास्त्र में?
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, भौंहों का आकार, उनकी मोटाई, दूरी और बनावट, ये सब इंसान के स्वभाव और सोच को दर्शाते हैं. सामान्य तौर पर दोनों भौंहों के बीच थोड़ी दूरी होना अच्छा माना जाता है. लेकिन जब दोनों भौंहें आपस में जुड़ी होती हैं यानी बीच में कोई गैप नहीं होता, तो यह कुछ विशेष संकेत देता है.
1. तेज दिमाग और गहरी सोच वाले होते हैं ऐसे लोग
जिन लोगों की दोनों भौंहें जुड़ी होती हैं, वे आमतौर पर बहुत सोचने वाले, गहरे दिमाग वाले और अपनी बातों को छुपाकर रखने वाले होते हैं. ये लोग किसी भी स्थिति को जल्दी समझ जाते हैं और उसके अनुसार सोच-समझकर प्रतिक्रिया देते हैं. यानी भावनाओं में बहने के बजाय ये लोग दिमाग से काम लेते हैं.
2. सीक्रेटिव और रहस्यमयी स्वभाव
ऐसे लोग अपने दिल की बात किसी को आसानी से नहीं बताते. ये अंदर से क्या सोच रहे हैं, यह जान पाना थोड़ा मुश्किल होता है. सामुद्रिक शास्त्र कहता है कि ऐसे लोग अपने राज खुद तक रखना पसंद करते हैं और बहुत से मामलों में दूसरों से अलग और अलग-थलग रहना पसंद करते हैं.
3. क्रोध और चिड़चिड़ापन हो सकता है ज्यादा
दोनों भौंहों का जुड़ा होना कई बार तेज स्वभाव का भी संकेत देता है. यानी ऐसे लोग गुस्से में जल्दी आ सकते हैं और कई बार बात-बात पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं. अगर इनका मूड खराब हो जाए तो इन्हें मनाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. हालांकि इनका गुस्सा जल्दी उतर भी जाता है.
4. निर्णय लेने में आत्मविश्वास
ऐसे लोग निर्णय लेने में बहुत मजबूत होते हैं. ये लोग किसी बात को सोचकर, समझकर और पूरी योजना बनाकर कदम उठाते हैं. इन्हें कोई जल्दी में फैसला लेने पर मजबूर नहीं कर सकता.
5. विवाह और रिश्तों पर प्रभाव
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की भौंहें मिली होती हैं, उनके प्रेम संबंध या विवाह में कभी-कभी टकराव की स्थिति बन सकती है. वजह यह होती है कि ये लोग अपनी बातों को खुलकर नहीं बताते और अधिक सोचते हैं. रिश्ते में खुलापन कम होता है, जिससे गलतफहमी हो सकती है.
6. धन और करियर में क्या होता है असर?
इन लोगों का करियर आमतौर पर अच्छा रहता है, खासकर तब जब ये अपनी सोच को एक सही दिशा में लगाते हैं. हालांकि कभी-कभी इनके अधिक सोचने की आदत के कारण मौके हाथ से निकल सकते हैं. लेकिन अगर ये अपने गुणों को सही दिशा दें, तो बहुत सफल हो सकते हैं.
धन-धान्य से होंगे पूर्ण और अक्षय फल की होगी प्राप्ति, बस आषाढ़ मास की इन तिथियों पर करें इन तरीकों से व्रत-पूजा
14 Jun, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आषाढ़ मास शुरू होते ही चातुर्मास का प्रारंभ हो जाता है. आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास हिंदू धर्म में बेहद ही खास और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले होते हैं. इन मास में आने वाली तिथियां काफी महत्वपूर्ण होती है. आषाढ़ मास में दो पक्ष होते हैं जिसमें कई महत्वपूर्ण तिथियों का आगमन, मानव कल्याण के लिए होता है. यदि इन तिथियों पर समर्पित देव की विधि विधान से पूजा अर्चना, आराधना, व्रत आदि करने और गरीब जरूरतमंद व्यक्तियों को उनके दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुएं जैसे वस्त्र, फल, सब्जियां, जूते, चप्पल, मौसमी फल आदि दिया जाए, तो अक्षय फल की प्राप्ति होती है.
क्या है आषाढ़ मास का महत्व
आषाढ़ मास की खास स्थितियों के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि आषाढ़, चातुर्मास का पहला महीना होता है. आषाढ़ मास में होने वाली कुछ तिथियां बेहद ही खास होती है. इन तिथियों पर यदि समर्पित देव की पूजा अर्चना, पूजा पाठ, व्रत, आदि विधि विधान से किया जाए, तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ अक्षय फल की प्राप्ति होती है. आषाढ़ मास में दो पक्ष कृष्ण और शुक्ल का आगमन होता है, जिसमें कृष्ण पक्ष से ही खास तिथियां का आगमन हो जाता है.
कौनसी हैं शुभ तिथियां
वह आगे बताते हैं कि आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष की पहली खास तिथि गणेश भगवान की पूजा अर्चना, पूजा पाठ, व्रत आदि से शुरू होती है, जिसमें कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि, दशमी तिथि, द्वादशी, त्रयोदशी, और अमावस्या तिथि बेहद ही शुभ होती है. ऐसे ही आषाढ़ शुक्ल पक्ष की खास तिथियां द्वितीय तिथि, तृतीया तिथि, चतुर्थी तिथि, षष्ठी तिथि, सप्तमी तिथि, अष्टमी तिथि, एकादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा के दिन समर्पित देव की पूजा अर्चना, आराधना, स्तोत्र, व्रत आदि करने पर अक्षय फल की प्राप्ति होती है.
गरीब और जरूरतमंदों की करें मदद
इन तिथियां पर धार्मिक कार्य करने के साथ ही गरीब और जरूरतमंद व्यक्तियों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुएं, फल, सब्जियां, बर्तन आदि देने पर जीवन सुखमय हो जाता हैं.
आज का राशिफल: जानिए क्या कहती हैं आपकी किस्मत की सितारे
14 Jun, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- कार्य-कुशलता एवं समृद्धि के योग फलप्रद होंगे, रुके कार्य बन जायेंगे।
वृष राशि :- कार्य तत्परता से लाभ एवं इष्ट मित्र सुखवर्धक अवश्य ही होंगे।
मिथुन राशि :- व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि, कार्यकुशलता से संतोष, बिगड़े कार्य बनेंगे।
कर्क राशि :- सोच-समझकर शांति बनाये रखें अन्यथा कुछ विभ्रम, विकार, क्लेश होगा।
सिंह राशि :- समय की अनुकूलता से विशेष कार्य की वृद्धि करें, लेनदेन मध्यम होगा।
कन्या राशि :- मानसिक विभ्रम, किसी अरोप में फंस सकते हैं, अर्थ के कार्य बन जायेंगे।
तुला राशि :- भाग्य का सितारा प्रबल हो, बिगड़े कार्य बनेंगे तथा कार्य संतोष होगा।
वृश्चिक राशि :- कार्य-कुशलता से संतोष, योजनाएं फलीभूत अवश्य ही होंगी।
धनु राशि :- सफलता के साधन जुटायें, धन लाभ, आचानक सफलता का हर्ष होगा।
मकर राशि :- आरोप व क्लेश, असमंजस, धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हो, स्त्री शरीर कष्ट, चिन्ता असमंजस में रखें।
मीन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहें, दैनिक कार्यगति में अनुकूलता आयेगी।
15 जून को सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे
13 Jun, 2025 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य का विशेष स्थान है। सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है। वे हर महीने राशि परिवर्तन करते हैं। इस गोचर का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। 15 जून को सूर्य देव वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। इस राशि में 1 महीने तक रहेंगे। 15 जून को ग्रहों के राजा सूर्य देव मिथुन राशि में गोचर शुरू करेंगे और 16 जुलाई तक इसी राशि में मौजूद रहेंगे। 15 जून को सूर्य मिथुन राशि में गोचर करेंगे। जहां पहले से ही गुरु विराजमान हैं। ऐसे में दोनों ग्रहों के एक साथ मिथुन राशि में होने से गुरु आदित्य राजयोग बनेगा। खास बात ये है कि ये सूर्य देव के मित्र ग्रह की राशि है। व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अच्छे स्वास्थ्य, प्रसिद्धि, नाम, सरकारी नौकरी, सफलता, उच्च पद के कारक होते हैं। ये हर राशि में लगभग एक महीने तक विराजमान रहते हैं। ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों के राशि परिवर्तन का विशेष महत्व होता है। जब भी कोई ग्रह किसी एक राशि में मौजूद होता है फिर किसी निश्चित समय में दूसरी राशि में परिवर्तन करता है तो इसका प्रभाव सभी जातकों पर शुभ और अशुभ दोनों तरह का होता है। ज्योतिष शास्त्र के नजरिए से सूर्य हर एक महीने में राशि परिवर्तन करते हैं। कुंडली में सूर्य के शुभ भाव में होने पर व्यक्ति को नौकरी, मान-सम्मान और धन लाभ होता है।
मेष राशि
भाग्य का भरपूर साथ मिलने वाला है। नौकरी में प्रभाव और प्रतिष्ठा वृद्धि की संभावना है। कार्यक्षेत्र में लाभ की स्थिति रहेगी। आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे।
वृषभ राशि
परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत करेंगे। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। सूर्य देव की विशेष कृपा रहेगी, इसलिए प्रयास में कमी न करें। नौकरीपेशा जातकों का प्रभाव बढ़ेगा। व्यापार में सुधार होगा।
मिथुन राशि
कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी। धन सही कार्यों में खर्च होगा। मन में किसी प्रकार का डर बना रहेगा। किसी को उधार देने से बचें। क्रोध से बचना होगा। स्वभाव में चिड़चिड़पन रहेगा।
कर्क राशि
इस गोचर काल में भाग्य का साथ नहीं मिलेगा। हालांकि कोट कचहरी से संबंधित मामलों में राहत मिलने की संभावना है। समर्पित परिश्रम से वरिष्ठों को संतुष्ट कर पाएंगे।
सिंह राशि
सूर्य गोचर के दौरान स्वास्थ्य का खास ध्यान रखना होगा। कामकाज में किसी प्रकार का साथ लाभ की प्राप्ति करवाएगा। कार्य योजनाओं को इच्छानुसार पूरा कर पाएंगे।
कन्या राशि
भाग्य का पूरा साथ मिलेगा। व्यापार-व्यवसाय के लिए सूर्य गोचर उत्तम रहेगा। व्यापारी वर्ग को विशेष रूप से अच्छे फल प्राप्त होंगे। आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी।
तुला राशि
खराब स्वास्थ्य आपको बेचैन करेगा। छात्रों का मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। नौकरीपेशा ऑफिस में आने वाली बाधाओं से परेशान हो सकते हैं। व्यापारी वर्ग की हालात सामान्य बन रहेंगे।
वृश्चिक राशि
नौकरी में तबादला हो सकता है। मन में क्रोध और निराशा का संचार होगा। धन संबंधित मामले अच्छे रहेंगे। पुराने मित्र से मुलाकात हो सकती है। सामाजिक जीवन अच्छा व्यतीत नहीं होगा।
धनु राशि
नौकरी में अच्छा धन लाभ होगा। प्रमोशन होने के संकेत मिल रहे हैं। व्यापारियों के लिए लाभ की स्थिति बनी हुई है। निवेश करने से पहले विशेषज्ञ मार्गदर्शन लेना सही रहेगा।
मकर राशि
गोचर काल में घर पर कोई धार्मिक कार्य संपन्न होने का योग रहेगा। जीवन में कई सफलताएं प्राप्त होगी। जिससे आप आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। परिवार के साथ यात्रा पर जा सकता है।
कुंभ राशि
कामकाज के क्षेत्र में लाभदायक स्थिति बनेगी। इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शैक्षणिक कार्यों में सुखद परिणाम मिलेंगे। माता-पिता का सहयोग प्राप्त होगा।
मीन राशि
नौकरी में परिवर्तन के योग है। किसी दूसरे शहर जाना पड़ सकता है। इस गोचरकाल में वाहन या मकान खरीद सकते हैं। परिवार का ध्यान रखेंगे। उनकी जरूरतों को पूरा कर पाएंगे।
रवि प्रदोष व्रत का है खास महत्व
13 Jun, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में रवि प्रदोष व्रत का खास महत्व है, यह व्रत भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाता है। रवि प्रदोष व्रत से भगवान शिव के साथ-साथ सूर्यदेव की भी कृपा प्राप्त होती है तो आइए हम आपको रवि प्रदोष व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। प्रदोष व्रत के दिन देवों के देव महादेव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत का दिन सबसे उत्तम होता है। प्रदोष शब्द का अर्थ होता है संध्या काल यानी सूर्यास्त का समय व रात्रि का प्रथम पहर। चूंकि इस व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, इसलिए इसे प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। प्रदोष व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और अत्यंत पवित्र व्रत है, इसे विशेष रूप से भगवान शिव की अराधना के लिए रखा जाता है। भगवान शिव जी को भोलाभंडारी कहा जाता है। इसलिए इस व्रत को श्रद्ध भक्ति से रखने वाले को माहदेव आशीर्वाद जरूर देते हैं। जून 2025 में भी 2 प्रदोष व्रत पड़ रहे हैं।
रवि प्रदोष व्रत के दिन ये करें
अगर आप इन दोनों योग में भोलेनाथ की पूजा करते हैं, तो आपकी मनचाही मनकामना पूरी हो सकती हैं। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करनी चाहिए। शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा, प्रदोष व्रत में “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत की कथा सुननी चाहिए।
जानें रवि प्रदोष व्रत का महत्व
पंडितों के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को अत्यंत शुभ व महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत के फलस्वरूप भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती भक्तों पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखते हैं। इस व्रत के पुण्यफल से व्यक्ति द्वारा अपने जीवन काल में किए गए पापों का अंत होता है। साथ ही सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है और वह सत्य के मार्ग पर अग्रसर होता है। भगवान शिव की आराधना को जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी लाभदायक माना गया है। प्रदोष व्रत वह मार्ग है, जिसपर चलकर व्यक्ति अंत में जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इस व्रत के प्रभाव से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही जो व्यक्ति पूरी निष्ठा से इसका पालन करता है, उसकी मनोकामनाएं भी भगवान शिव पूर्ण करते हैं। इस व्रत से मिलने वाला पुण्यफल भी व्यक्ति के जीवन में सफलता के नए द्वार खोल देता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को करने से दो गायों को दान करने के समान पुण्यफल प्राप्त होता है। इस सभी कारणों से प्रदोष व्रत को शुभ, पावन और कल्याणकारी माना जाता है। इस संसार में प्रदोष व्रत एक डोरी के समान है जो लोगों को भगवान शिव की भक्ति से जोड़ कर रखता है।
सुखी जीवन पर ग्रहण लगा सकती हैं ये गलतियां
13 Jun, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जगत में सभी लोग धन और वैभव चाहते हैं और इसके लिए जी जान से प्रयास करते हैं। उनके हर प्रयास के पीछे असली लक्ष्य सुख शान्ति और अपने परिवार की खुशहाली और तरक्की होती है पर लेकिन कई बार आपने देखा होगा की सब प्रयास करने के बाद हम धन सम्पदा तो कमा लेते है पर घर की शान्ति और अमन बिगड़ जाता है। ऐसी क्या गलतियां हैं जो भूलवश हम करते रहते है और जिनके कारण हमारे सुखी जीवन पर ग्रहण लगा रहता है।
दीपक हमारे घर में प्रतिदिन जलाया जाता है। दीपक का प्रयोग हम भगवान् की पूजा के लिए करते है। कभी गलती से भी दीपक को ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए।
शिवलिंग की पूजा हम प्रतिदिन करते है ,पर क्या आप जानते है कभी शिवलिंग ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। कई लोग मंदिर साफ़ करते समय कई बार शिवलिंग ज़मीन पर रखते है। ऐसा कभी न करे। शालिग्राम की पूजा तो सभी करते है। पर ज्योतिष एक बात हमेशा ध्यान में रखे कि कभी भी शालिग्राम को ज़मीन पर न रखे। इससे आप के घर कि आर्थिक स्थिति ख़राब हो सकती है।जनेऊ को बहुत पवित्र माना गया है। इसलिए इसे कभी ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। न ही फेकना चाहिए। अगर आप का जनेऊ ख़राब है तो उसे पेड़ की टहनी से बाँध दे या पेड़ की जड़ में डाल दे। शंख का प्रयोग हर रोज पूजा पाठ में किया जाता है। इसलिए कभी भी शंख को ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। शंख बजाने के बाद हमेशा उसे धोकर रखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार भोजन की थाली को भी कभी जमीन पर नहीं रखना चाहिए ऐसा करना भी दुर्भाग्य की वजह बन जाता है।