धर्म एवं ज्योतिष
यूपी का अनोखा मंदिर! जहां आने जाने का है एक रास्ता, रहस्य जानकर उड़ सकते हैं आपके भी होश!
2 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में कुड़ारी का मंदिर है. यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है. यह मंदिर मां कुंड वासिनी धाम कुड़ारी के नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां पर कुंड की पूजा की जाती है. साथ ही मां कुंड वासिनी मंदिर में स्थापित माता कुंड वासनी की पूजा की जाती है.
बता दें कि कुरारी मंदिर मध्य प्रदेश के लम सरई और उत्तर प्रदेश के निवारी ग्राम के बीच में सोन नदी के किनारे मां कुंड वासिनी धाम कुरारी के नाम से प्रसिद्ध है. नदी के किनारे स्थित माता कुंड वासनी का यह मंदिर हजारों साल पुराना है और यहां पर कई शुभ अवसरों पर मां कुंड वासिनी धाम में मेला का आयोजन किया जाता है.
सोन नदी के किनारे स्थित है मंदिर
स्थानीय लोगों का मानना है कि वर्तमान में जहां पर कुड़ारी का मंदिर है. वहां पर सोन नदी का किनारा है. मान्यता है कि मंदिर के पूर्व दिशा में 200 मीटर की दूरी पर माता कुंड वासनी सैकड़ों वर्ष पहले प्रकट हुई थी. जहां माता कुंड वासनी के पत्थर की मूर्ति स्थानीय लोगों द्वारा देखा गया और उसे एक जगह पर लाकर स्थापित कर दिया गया. उसी जगह को कुरारी धाम या मां कुंड वासिनी मंदिर कुरारी के नाम से जाना जाता है.
जानें मंदिर का इतिहास
कुरारी मंदिर के इतिहास के बारे में यहां के स्थानीय लोगों को ज्यादा कुछ पता नहीं है, लेकिन उनके बुजुर्ग यह बताए थे कि माता कुंड वासनी की मूर्ति मिलने के बाद यहां पर लाकर एक पेड़ के नीचे रख दी गई थी. इसके बाद इतिहास में पुराने वीर व्यक्तियों द्वारा कुरारी का मंदिर निर्माण किया गया और यह सोनभद्र जिले का और मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का एक बेहतर आस्था का केंद्र और पर्यटक स्थल भी बन गया है.
जानें इस मंदिर की खासियत
कुरारी के मंदिर के बारे में देखा जाए तो वहां के लोग बताते हैं कि यह मंदिर कब बना इसके बारे में जानकारी बहुत कम है, लेकिन इस मंदिर की अनोखी खासियत है. माता कुंड वासिनी मंदिर के अन्दर की प्रारंभिक ऊंचाई लगभग 11 मीटर को सिर्फ एक पत्थर द्वारा बनाया गया है और मंदिर के अंदर जाने का सिर्फ एक ही द्वार है.
मंदिर में है अलौकिक शक्ति
लोगों का ऐसा कहना है कि बाहर से आए प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा इस मंदिर में एक और द्वार खोलने का प्रयास किया गया, लेकिन एक मजबूत पत्थर से बना हुआ यह मंदिर का दूसरा द्वार नहीं खोला जा सका. इसे आप अलौकिक शक्ति कह सकते हैं या मंदिर के बनावट की मजबूती भी मंदिर का कुछ इस तरह है.
नदी के बाढ़ की भी नहीं पड़ता असर
वहीं, मां कुंड वासिनी धाम कुरारी के आसपास के लोगों का कहना है कि सोन नदी के किनारे बसा यह मंदिर कितनी भी तेज बाढ़ आती है, लेकिन इस मंदिर के अंदर पानी नहीं घुस पाता है. अगर इस मंदिर के उत्तर साइड में देखा जाए तो सोन नदी के उस पार सिल्पी नाम का एक गांव है, जो वर्तमान राज्यसभा सांसद राम सकल का जन्म स्थान एवं निवास स्थली है.
मंदिर में लगती है श्रद्धालुओं की भीड़
कुरारी मंदिर के आसपास हमेशा मेले का रूप देखने को मिलता है और यहां पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोगों के आस्था का संगम देखने को मिलता है.
कुरारी मंदिर हमेशा लोगों की भीड़ अपनी आस्था के अनुसार कथा सुनने, पूजा करवाने, मन्नत पूरी करने, पर्यटन के रूप में, वीकेंड पर घूमने, मेला करने, पिकनिक मनाने इत्यादि अवसरों पर लोग इकट्ठा होते हैं.
जानें क्यों कहते हैं चमत्कारी मंदिर
लोगों का यह भी कहना है कि एक बार इस मंदिर पर आकाशी बिजली भी गिरी है. इसके बाद भी इस मंदिर पर कोई. इसलिए लोग इसे चमत्कारी मंदिर मानते हैं.
सितंबर में इस दिन करें मशीन, गाड़ी और औजार की पूजा, कभी नहीं मिलेगा धोखा!
2 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का सृजनकर्ता और प्रथम शिल्पकार के रूप में जाना जाता है. माना जाता है कि ब्रह्माजी के कहने पर विश्वकर्मा ने दुनिया बनाई थी. उन्होंने ही भगवान कृष्ण की द्वारका से लेकर शिवजी का त्रिशूल और हस्तिनापुर बनाया था. विश्वकर्मा जयंती के दिन लोग अपने दफ्तर, कारखाने, दुकान, मशीन, औजार की पूजा करते हैं. भगवान ब्रह्मा के 7 वें पुत्र विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी उसे सजाने, सवांरने और निर्माण करने का कार्य विश्वकर्मा को ही दिया था. विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी भी कहा जाता है. हर साल 17 सितंबर को बड़े छोटे कारखानों, उद्योगों, कंपनियों, दुकानों आदि में विश्वकर्मा की पूजा की जाती हैं. धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार, संपत्ति आदि में बढ़ोतरी होती है जिससे व्यक्ति को अधिक धन लाभ होता है.
कौन है भगवान विश्वकर्मा?
हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री से ने लोकल 18 को बताया कि भगवान ब्रह्मा के 7 वें पुत्र विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है. भगवान विश्वकर्मा को ही सृष्टि का पहला वास्तुकार, शिल्पकार और इंजीनियर माना जाता है. इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नौकरी व व्यापार में उन्नति के योग बनते हैं. साथ ही इस दिन मशीन, औजार और वाहन आदि की पूजा करने से वे कभी बीच काम या वक्त बेवक्त धोखा नहीं देते, जिससे काम आसानी से पूरे हो जाते हैं. साथ व्यापार या निर्माण आदि संबंधित कार्यों में कोई रुकावट नहीं आती है. 17 सितंबर को विधि विधान से विश्वकर्मा पूजा की जाए तो उद्योग, कारोबार, संपत्ति आदि में बढ़ोतरी होती है और अधिक धन लाभ होता है.
पितृपक्ष से 15 दिन पहले रखें इन बातों का ध्यान, भूलकर भी न खाएं ये चीजें, नाराज हो सकते हैं पूर्वज
2 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
17 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है जो 2 अक्टूबर तक चलेगी. कहा जाता है पितृपक्ष ऐसा समय है जब हम अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं. हालांकि, इस दौरान कई बातों का विशेष रूप से ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है. पितृपक्ष में कुछ चीजों का सेवन करना वर्जित माना गया है. श्रद्धालु सबसे पहले इस बात का ख्याल रखें कि जो व्यक्ति श्राद्ध क्रिया करते हैं उसे बाहर के खाने का सेवन नहीं करना चाहिए. उस व्यक्ति को 16 दिनों तक सात्विक भोजन ही करना चाहिए. धार्मिक दृष्टि से बाहर का खाना अशुद्ध माना जाता है.
इस संबंध में जानकारी देते हुए गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि श्राद्ध के इस 16 दिन तक लोग अपने मृत पूर्वजों के लिए पूजा का आयोजन कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. गया श्राद्ध पर आने वाले तीर्थ यात्री को 15 दिन पहले से ही कुछ चीजों का पालन करना होता है जिसमें इस दौरान तामसिक गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए. इन दिनों प्याज, लहसुन, अंडा और मांस खाने से बचना चाहिए. यह समय धार्मिक कार्यों के लिए विशेष माना जाता है.
इन चीजों से रहे दूर
इन दिनों ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. बाल कटवाने, नाखून काटने और शेविंग करने से भी बचना चाहिए. किसी के साथ गलत व्यवहार न करें. किसी से उधार न लें. छल कपट न करें. संयम और सदाचार में रहें. राजा आचार्य बताते हैं कि अगर पुत्र गया श्राद्ध में जाता है तो पितृ उत्सव मनाने लगते हैं. पितृ पक्ष में पितृ गया पहुंच जाते हैं और अपने पुत्र का इंतजार करते हैं कि कब वह गया आ रहे हैं और इनका पिंडदान करेगा. पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों का पिंडदान के लिए गया जी आ रहे हैं तो सपरिवार यहां पहुंचे और उन्हें भी पितरों का विशेष अनुग्रह आशीर्वाद मिलेगा. पूर्वजों को मृत्यु चक्र से मुक्ति दिलाने के इस अनुष्ठान के बीच किसी तरह की बाधा उत्पन्न न हो इसलिए लहसुन प्याज या मांसाहार का सेवन नहीं किया जाता. ऐसा माना जाता है इस दौरान इन रीति रिवाजों का सही ढंग से अनुसरण न करने पर पूर्वज नाराज हो सकते हैं जिसके बाद कई बार पितृ दोष स्थिति का सामना करना पड़ता है. पितृपक्ष के दौरान मुख्य रूप से दाल, चावल, हरी सब्जी का सेवन करना चाहिए. इस दौरान बैंगन, टमाटर, कोहडा खाना निषेध माना जाता है.
एकमात्र शिवालय जहां शिवलिंग के उपर नहीं है छत, जानें ताड़केश्वर मंदिर का इतिहास
2 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ताड़केश्वर महादेव मंदिर, गुजरात के वलसाड जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो अपनी अनोखी वास्तुकला और शयनित शिवलिंग के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके ऊपर कोई छत नहीं है, और सूर्य की सीधी किरणें शिवलिंग पर पड़ती हैं. हर श्रावण माह में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है, जो भक्तों के बीच एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र है.
ताड़केश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
यह मंदिर वलसाड के अब्रामा गांव में वेंकी नदी के तट पर स्थित है और इसकी स्थापना लगभग 800 साल पहले हुई थी. मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक चरवाहा जंगल में अपनी गायों को चरा रहा था, जब उसने देखा कि उसकी गाय एक चट्टान पर अनायास दूध उगल रही है. यह दृश्य देखकर उसने ग्रामीणों को बुलाया, जिन्होंने उस स्थान की जांच की और एक बड़ी शिला पाई. इसके बाद, एक भक्त प्रतिदिन इस शिला पर दूध का अभिषेक करने लगा.
कहा जाता है कि शिवजी ने उस भक्त को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वे उसकी भक्ति से प्रसन्न हैं और उसे उस शिला को कीचड़ से निकालकर उचित स्थान पर स्थापित करने का निर्देश दिया. ग्रामीणों ने शिवलिंग की खुदाई शुरू की और बहुत सावधानी से इसे निकाला, जिससे 6 से 7 फीट लंबा शिवलिंग प्रकट हुआ. इस शिवलिंग को बैलगाड़ी में लादकर आज के स्थान पर लाया गया, जहां इसे स्थापित किया गया.
ताड़केश्वर महादेव नाम का उद्भव
स्थापना के बाद, शिवलिंग की सुरक्षा के लिए एक अस्थायी दीवार और घास की छत बनाई गई, लेकिन कुछ ही दिनों में वह छत जल गई. जब ग्रामीणों ने ट्यूबलर छत बनाने की कोशिश की, तो वह भी तूफान में उड़ गई. इसके बाद, एक भक्त को स्वप्न में शिवजी ने बताया कि वे “ताड़केश्वर” हैं और उनके सिर पर छत न बनाने का निर्देश दिया. इसके बाद, मंदिर को ऊपर से खुला छोड़ दिया गया, और शिवलिंग को ताड़केश्वर महादेव के नाम से पूजा जाने लगा.
वर्तमान स्वरूप और श्रद्धालु
1994 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें 20 फीट गोल गुंबद को खुला रखा गया. यह मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के कारण बहुत प्रसिद्ध है, और यहां हर साल श्रावणमास और महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. श्रावण मास के दौरान, इस मंदिर में हर सोमवार को 10,000 से अधिक भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं, और यहां एक विशाल मेला भी लगता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
2 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि - समृद्धि एवं सफलता के योग बनेंगे, अनिष्टता से बचने की चेष्ठा अवश्य ही करें।
वृष राशि - भाग्य का सितारा प्रबल रहे तथा व्यवसायिक क्षमता अनुकूल होगी, मित्र सहयोग करेंगे।
मिथुन राशि - मानसिक उद्विघ्नता से अशांति, अवरोध बढ़ेगा, असमंजस बना रहे, ध्यान रखे।
कर्क राशि - लेन-देन के मामले में हानि होगी, धन फस सकता है, सतर्कता बनाए रखे, लाभ होवेगा।
सिंह राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखे, किसी के चंगुल से बचेंगे अधिक उत्सुकता हानिकारक होगी।
कन्या राशि - क्रोध व आवेश से हानि संभव है। मानसिक तनाव तथा बेचैनी अवश्य ही बढ़ेगी।
तुला राशि - सोचे हुये कार्य पूर्ण होंगे, अधिकारियों से समर्थन प्राप्त होगा, विशेष कार्य ध्यान रखे।
वृश्चिक राशि Š- अनावश्यक वाद-विवाद से बचिये, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, समय व्यवस्था का ध्यान रखे।
धनु राशि - समय अनुकूल नहीं, अधिकारी मित्रों से सर्तक अनावश्यक वाद विवाद से बचकर चले।
मकर राशि - दैनिक समृद्धि के साधन जुटायें, व्यर्थ समय तथा धन नष्ट न करें, ध्यान रखे।
कुंभ राशि - स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास, समय अनुकूल नहीं, लेन-देन स्थिगित रखे, कार्य समेटे।
मीन राशि - आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, कार्यगति में सुधार तथा धन लाभ होगा।
भाद्रपद के पहले प्रदोष पर मिलेगा महादेव का आशीर्वाद, शिवलिंग पर चढ़ाएं भगवान कृष्ण की प्रिय 4 वस्तुएं, चमकेगा भाग्य!
1 Sep, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू पंचांग का पांचवां महीना सावन महादेव को समर्पित माना जाता है. वैसे इसका अगला महीना भाद्रपद भगवान कृष्ण को समर्पित है. इस महीने में वैसे तो कई महत्वपूर्ण व्रत आते हैं, लेकिन उनमें से त्रयोदशी तिथि को आने वाले व्रत को प्रदोष के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करने की परंपरा है. जो कि 31 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रहा है. आने वाले प्रदोष व्रत की खास बात यह कि ये भाद्रपद मास का पहला प्रदोष है. वहीं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार यह महीना भगवान कृष्ण का है और कृष्ण महादेव के आराध्य भी हैं. ऐसे में आपको इस व्रत के दौरान शिवलिंग पर भगवान कृष्ण से जुड़ी और उनकी कुछ प्रिय वस्तुएं चढ़ाना चाहिए, जो आपको शुभ फल प्रदान करेंगी.
1. राधा कृष्ण नाम लिखा हुआ बेलपत्र
धार्मिक मान्यता और ग्रंथों के अनुसार भगवान कृष्ण को राधा नाम अत्यधिक प्रिय है. ऐसे में आप शिवलिंग पर यदि राधा कृष्ण नाम लिखा हुआ बेलपत्र चढ़ाते हैं तो इससे भगवान शिव के साथ भगवान कृष्ण की कृपा भी बरसती है.
2. माखन
भगवान कृष्ण को माखन चोर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्हें माखन बहुत ही पसंद है. ऐसे में आप प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान शिवलिंग पर माखन भी चढ़ा सकते हैं. इससे पारिवारिक क्लेश दूर होता है.
3. मोरपंख
आपने भगवान कृष्ण के मुकुट पर मोरपंख हमेशा देखा होगा, यह भी उनकी प्रिय चीजों में से एक है. ऐसे में आप प्रदोष व्रत वाले दिन शिवलिंग पर मोर पंख चढ़ाएं, इससे महादेव जल्दी प्रसन्न होंगे और आपकी सारी समस्याओं को दूर करेंगे.
4. बांसुरी
पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो इसकी आवाज सुनकर भगवान शिव कैलाश से अक्सर ब्रज धाम में दर्शन करने आते थे. ऐसे में आप प्रदोष व्रत के दौरान शिवलिंग पर बांसुरी जरूर चढ़ाएं.
गया धाम में पिंडदान करने से 101 कुल और 7 गोत्र का उद्धार, भगवान राम से जुड़ा है इतिहास
1 Sep, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पूर्वजों को मोक्ष दिलाने का महापर्व पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू हो जाएगी जो 2 अक्टूबर तक चलेगी. पितृपक्ष में पिंडदान देश के कई स्थानों पर किया जाता है, लेकिन बिहार के गया में पिंडदान का एक अलग ही महत्व है. ऐसा माना जाता है कि गया धाम में पिंडदान करने से 101 कुल और 7 गोत्र का उद्धार होता है. गया में किए गए पिंडदान का गुणगान भगवान राम ने भी किया है.
भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था तब से यह स्थान पितरों की तृप्ति के लिए सर्वोच्च माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार यदि इस स्थान पर पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग मिलता है. स्वयं श्रीहरि भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.
पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि गया जी में पिंडदान का विशेष महत्व है. हर साल यहां लाखों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मृत आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. साथ ही उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वैसे तो पूरे साल गयाजी में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितरों के लिए विशेष पक्ष यानि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है. पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनन्त चतुदर्शी के दिन से प्रारम्भ होता है जो अश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है.
मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को सबसे उत्तम गति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं माता-पिता समेत कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार होता है. साथ ही पिंडदानकर्ता स्वयं भी परमगति को प्राप्त करते हैं.
फल्गु नदी के जल का महत्व इतना ज्यादा है कि ऐसी मान्यता है कि नदी में पांव पड़ने से उड़ने वाले पानी की छिंटे मात्र से भी पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हो जाती है. पैर के स्पर्श से उड़ने वाली पानी की छिंटे को भी पवित्र मानकर पूर्वजों की आत्मा इस छिंटे को भी ग्रहण कर लेती है.
गया जी में पिंडदान पूरे साल किया जा सकता है लेकिन गया श्राद्ध या गया पिंडदान शुभ 17 दिन पितृपक्ष मेला या 7 दिन, 5 दिन, 3 दिन, 1 दिन या कृष्ण पक्ष के साथ किसी भी महीने में अमावस्या करना बेहतर है. 17 दिनों का पितृपक्ष श्राद्ध या पितृपक्ष मेला, दिवंगत पूर्वजों या परिवार के किसी भी दिवंगत सदस्य को अर्पण करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है.
इस वर्ष पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रही है जो 2 अक्टूबर तक रहेगी. गया में पिंडदान करने से चार गुना पुण्य मिलने की मान्यता है क्योंकि यह स्थान भगवान विष्णु और माता सीता से जुड़ा हुआ है. यहां की ऊर्जा और दिव्यता से पिंडदान का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है.
क्या पितृ पक्ष में ही कर सकते हैं शुभ कार्य? क्या है विशेष पूजा परंपरा? ज्योतिषाचार्य से जानें
1 Sep, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आमतौर पर एक प्रचलित धारणा है कि पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इसका मुख्य कारण पितरों की नाराजगी से जुड़ा होता है. ऐसे में क्या किसी आपात स्थिति में कोई शुभ कार्य का आयोजन करना है तो उसके लिए किसी विशेष पूजा की जरूरत होती है? इस सवाल का जवाब देने के लिए हमने मध्य प्रदेश के ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज मेहता से बात की, जहां उन्होंने तथ्यों के साथ जानकारी दी.
क्या है धार्मिक आधार
खरगोन जिले के पंडित पंकज मेहता के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान शुभ कार्यों से बचने की परंपरा का धार्मिक आधार यह है कि यह समय अपने पितरों को श्रद्धांजलि देने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का होता है. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि पितृ पक्ष में पितर धरती पर आते हैं और इस दौरान उन्हें तृप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.
अगर किसी को पितृ पक्ष में शुभ कार्य करना आवश्यक हो, तो पहले अपने पितरों की विशेष पूजा और तर्पण करना चाहिए. हालांकि, शास्त्रों में यह भी माना गया है कि कोई भी शुभ कार्य करने के लिए सोलह दिन सभी के लिए निषेद नहीं है. जिस दिन अपने घर में पितरों का पूजन होता है. सिर्फ उसी दिन शुभ कार्य निषेद होते हैं. शेष अन्य दिनों में कोई भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं. इसके लिए पितृ पूजा में पितरों का आह्वान करके उनसे क्षमा याचना की जाती है और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने से शुभ कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है.
क्या है वैज्ञानिक आधार
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, पितृ पक्ष में विशेष पूजा करने का कारण मानसिक और भावनात्मक शांति प्राप्त करना हो सकता है. पंडित मेहता बताते हैं कि इस समय विशेष पूजा और तर्पण से मनोवैज्ञानिक लाभ भी होते हैं. यह प्रक्रिया व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर देती है और उसे मानसिक संतोष का अनुभव होता है. पूरा परिवार एकत्रिक होकर पितृ पूजन करता है तो पितृ प्रसन्न होते हैं.
पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है, जो शुभ कार्यों के लिए आवश्यक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है. इस समय पितरों की विशेष पूजा करने से ध्यान और मन की एकाग्रता बढ़ती है, जो किसी भी कार्य को सफल बनाने में सहायक होती है.
क्या है विशेषज्ञ की राय
ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज मेहता का कहना है कि पितृ पक्ष में जिस दिन पितृ की मृत्यु हुई हो उस दिन विशेष पूजा करना शुभ कार्यों के लिए लाभकारी हो सकता है. यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक संतुलन के लिए भी आवश्यक है.
गणेशोत्सव: इस साल नारियल की मूर्तियों की विशेष मांग! विसर्जन के बाद भी इनकी कीमत लाखों में
1 Sep, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अब सभी को प्यारे बप्पा के आगमन का बेसब्री से इंतजार है. कुछ ही दिनों में बप्पा घर-घर और सार्वजनिक मंडलियों में विराजेंगे. पिछले कुछ वर्षों से इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव मनाने को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है. बाजार में नारियल के छिलकों से बनी गणेश प्रतिमाओं की विशेष मांग है. बप्पा का रूप तो हमेशा ही सुंदर दिखता है, लेकिन कोकोपीट से बनी मूर्तियां बेहद सरल, सुंदर और मनमोहक लगती हैं.
“ठाणे में, एकनाथ राणे और उनके भाई लीलाधर राणे पर्यावरण-अनुकूल तरीके से नारियल से गणेश की मूर्तियाँ बनाते हैं. इन मूर्तियों को रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जाता है.”
क्या होती है कोकोपीट?
“कोकोपीट नारियल के छिलकों से बनी मिट्टी है, जिसमें शादु मिट्टी मिलाकर गणेश प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. कोकोपीट का उपयोग पेड़ों के लिए उर्वरक के रूप में भी किया जाता है. गणेश जी की प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद जो मिट्टी बचती है, वह पेड़ों के काम आती है. एकनाथ राणे द्वारा निर्मित गणेश प्रतिमाओं के लिए हल्दी, कुंकू, और मुल्तानी मिट्टी को मिलाकर प्राकृतिक रंग तैयार किए जाते हैं, ताकि मूर्ति विसर्जन के बाद पेड़ों की वृद्धि में कोई दिक्कत न हो.”
कैसे स्थापित करें कोकोपीट की गणपति मूर्ति का बिजनेस
“एकनाथ राणे ने सबसे पहले कोकोपीट की मूर्तियाँ स्थापित करने की शुरुआत अपने घर से की थी. अब इस मूर्ति की लोगों में विशेष मांग है. गीले फूलों या थोड़े से पानी से भी इस मूर्ति को कोई नुकसान नहीं होता है. मूर्ति कलाकार लीलाधर राणे ने कहा, ‘हम मूर्ति को ठीक से सुखाते हैं, ताकि उसे कोई नुकसान न हो. ये मूर्तियाँ विसर्जन के 3 से 4 घंटे के भीतर पानी में घुल जाती हैं, और इसके बाद बची हुई मिट्टी को पेड़ों के लिए उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है.’ यदि आप भी इस साल इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव मनाना चाहते हैं, तो नारियल गणेश की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं. इससे प्रकृति को नुकसान नहीं होगा और आपके पौधों को पौष्टिक खाद भी मिल जाएगी.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
1 Sep, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- किसी के द्वारा धोखा देने से मनोवृत्ति खिन्न रहेगी, धन का व्यय तथा परिश्रम विफल होगा।
वृष :- समय अनुकूल नहीं है, लेन-देन के मामले विफल रहेंगे, व्यर्थ विवाद से बचें।
मिथुन :- व्यर्थ समय नष्ट होगा, यात्रा प्रसंग में थकावट व बेचैनी बनी रहेगी, समय समस्या का ध्यान रखें।
कर्क :- प्रयत्नशीलता विफल हो, परिश्रम करने में ही कुछ सफलता अवश्य मिलेगी।
सिंह :- परिश्रम से कार्यपूर्ण होंगे, तर्क-वितर्क से विजय प्राप्त हो, सफलता मिले, धन का लाभ होगा।
कन्या :- व्यवसायिक अनुकूलता से असंतोष किन्तु कार्य-व्यवस्था अनुकूल बनी रहेगी।
तुला :- किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचिये, कुछ उदविघ्नता से परेशानी बने, मित्रों से लाभ होगा।
वृश्चिक :- परिश्रम से कार्य में सुधार होते हुए भी फलप्रद नहीं, कार्य विफलत्व की चिन्ता बनेगी।
धनु :- स्त्री वर्ग से उल्लास, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे तथा रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
मकर :- स्वभाव में क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम, भय तथा उद्विघ्नता अवश्य बनेगी।
कुम्भ :- कार्यगति अनुकूल रहेगी, चिन्ताएW कम होंगी तथा विलासिता के साधन जुटायेंगे।
मीन :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद होगा।
मां लक्ष्मी का प्रतीक है तुलसी, भादो में पूजा के साथ इन 4 चीजों को करें अर्पित, खत्म होगी धन से जुड़ी समस्या!
31 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में हर किसी समस्या को दूर करने के लिए किसी विशेष देवी या देवता की पूजा का विधान है. इनमें माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा गया है. ऐसा माना जाता है कि जो भी माता की आराधना करता है, उसके घर में आर्थिक परेशानी कभी नहीं होती. वहीं तुलसी को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी की पूजा करने से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार, पंचांग के छठवें माह भाद्रपद में तुलसी पूजा का विशेष महत्व है और इस महीने में आपको कुछ सामान्य चीजें तुलसी को अर्पित करना चाहिए, जिससे आपको शुभ फल की प्राप्ति होती है. कौन सी हैं ये चीजें? आइए जानते हैं.
1. कलावा
हिन्दू धर्म में कलावा को रक्षा सूत्र माना जाता है और धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसमें त्रिदेवों का वास होता है. ऐसे में भादो के महीने में आप तुलसी को कलावा बांधें. इससे आप पर हमेशा त्रिदेवों की कृपा बनी रहेगी.
2. चंदन
इस महीने में आप तुलसी पूजन के साथ तुलसी पर हर रोज चंदन लगाएं. ऐसा करने से आपके घर में जो भी नकारात्मकता है, वह दूर हो जाएगी और सकारात्मकता के साथ ही शुभता का आगमन होगा.
3. केसर
माना जाता है कि केसर से धन आकर्षित होता है और यदि भादो माह में आप तुलसी पूजा के दौरान केसर अर्पित करें तो इससे आपकी धन संबंधी समस्या खत्म होगी और कभी आर्थिक तंगी नहीं होगी.
4. कपूर
भादो के महीने में आपको कपूर एक लाल कपड़े में लपेटकर उसका चूरा बना लेना है, जिसे आप रोजाना शाम के समय तुलसी में चढ़ाएं. ऐसा करने से आपके घर में किसी प्रकार का दोष होगा तो वह दूर हो जाएगा.
हरतालिका तीज पर भूल से भी न करें ये 10 काम, कष्टों से भर जाएगा जीवन
31 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सुख-समृद्धि और पति की लंबी उम्र की कामना से सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, हरतालिका तीज के कठिन व्रत के प्रभाव से ही माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था.वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 05 सितंबर को दोपहर 12. 21 बजे से होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 06 सितंबर को दोपहर 03.21 बजे होगा. ऐसे में हरतालिका तीज का व्रत 06 सितंबर को किया जाएगा. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार हरतालिका तीज पर कुछ कामों को करना वर्जित बताया गया है. यदि आप व्रत के दौरान यह कार्य करते हैं तो आपको व्रत का विपरीत फल प्राप्त होगा.
हरिद्वार के ज्योतिषी श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना लेकर शिव-पार्वती की उपासना करती हैं. साथ ही उनके लिए कठिन उपवास का पालन करती हैं. वहीं, इस दिन सुहागिन महिलाओं कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए.
क्रोध नहीं करना: पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि जो स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत को करती हैं उन्हें क्रोध नहीं करना चाहिए यदि ऐसा करते हैं तो व्रत अधूरा रहता है.
व्रत को नहीं तोड़ना: जो स्त्रियां एक बार व्रत करने का संकल्प करके हरतालिका तीज का व्रत करती हैं उन्हें यह व्रत नहीं तोड़ना चाहिए ऐसा करने पर सौभाग्यवती स्त्रियों को अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं.
रात्रि में नही सोना: जिस तिथि में हरतालिका तीज का व्रत होता है. उस रात्रि में स्त्रियों का सोना वर्जित बताया गया है. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार रात्रि में स्त्रियों को जागरण कर भगवान शिव की कथा, स्तोत्र का पाठ करना चाहिए उन्हें विशेष लाभ होता है.
पति से न करें झगड़ा : पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की जो स्त्रियां हरतालिका तीज के व्रत को करती हैं उन्हें अपने पति के साथ झगड़ा नहीं करना है. पति परमेश्वर का रूप होते हैं जिनके लिए यह व्रत किया जाता है. यदि महिलाएं इस व्रत के दौरान पति के साथ झगड़ा करती हैं तो उन्हें इस व्रत का शुभ परिणाम प्राप्त होगा.
काले रंग से रहे दूर : इस शुभ दिन पर विवाहित महिलाओं को काले रंग की चूड़ियां और कपड़े पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि हिंदू धर्म में काले रंग को अशुभता से जोड़ा जाता है
बड़े-बुजुर्गों का अपमान नहीं करना: जो स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत करती हैं उन्हें विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि वह बड़ो बुजुर्गों का अपमान ना करें. इस व्रत के दौरान बड़े बुजुर्गों का अपमान करना वर्जित होता है. यदि स्त्रियां ऐसा करती हैं तो उन्हें इस व्रत का विपरीत फल प्राप्त होता है.
व्रत की कथा को श्रवण करना: विवाहित महिलाओं को इस व्रत पर देवी पार्वती, भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए, जो महिलाएं इन तीनों में से किसी की भी पूजा नहीं करती है, तो उनका व्रत अधूरा माना जाता है।
पवित्रता बनाए रखना : हरितालिका व्रत को करने से पूर्व ही पवित्रता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए . व्रत में पवित्रता रखने मात्र से ही आधा व्रत पूरा हो जाता है क्योंकि पवित्रता में ही लक्ष्मी और परमात्मा का निवास होता है. यदि व्रत के दौरान पवित्रता नहीं है तो व्रत का फल नहीं मिलता है.
दूध का सेवन वर्जित: पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की जिन स्त्रियों के द्वारा हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है उन्हें दूध का सेवन नहीं करना चाहिए.. मान्यताओं के अनुसार हरतालिका व्रत के दौरान दूध का सेवन करने से अगला जन्म सर्प योनि का होता है.
फल का सेवन वर्जित: व्रत करने वाली स्त्रियों को इस दिन फल का सेवन नहीं करना चाहिए. यदि स्त्रियां इस व्रत के दौरान फल का सेवन करती हैं तो अगले जन्म में वह वानर योनि में जाती है.
महाभारत युद्ध के बाद कितने योद्धा जीवित रहे, वो कौन कौन थे, वो महान योद्धा भी जिसका नाम कोई नहीं लेता
31 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
क्या आपको मालूम है कि सबसे बड़ा युद्ध कहा जाने वाले महाभारत की जब समाप्ति हुई तो कितने योद्धा जीवित रहे. ये इतने कम थे कि बहुत आसानी से उन्हें अंगुली पर गिना जा सकता है. ये युद्ध जब लड़ा जाना शुरू हुआ तो दोनों ओर से लाखों सैनिक युद्ध मैदान में आमने-सामने थे लेकिन जब ये खत्म हुआ तो ज्यादातर सैनिक खत्म हो चुके थे. दोनों ही पक्षों का इतना भारी नुकसान हुआ था. ऐसे में जो बचे वो बहुत किस्मत वाले थे. वैसे हम आपको बता देते हैं कि महाभारत युद्ध में जीवित रहने वाले दिग्गज योद्धाओं की संख्या दो अंकों यानि दहाई में है.
महाभारत में कुरूक्षेत्र युद्ध के परिणाम में जानमाल की भारी हानि हुई, कई योद्धा मारे गए. आइए पहले जान लेते हैं कि जब ये महायुद्ध शुरू हुआ था तो दोनों ओर से कितने सैनिक और योद्धा मैदान में थे.
कितनी बड़ी थी दोनों ओर की सेना
महाभारत के युद्ध में दोनों पक्षों की सेनाओं की कुल संख्या 18 अक्षोहिणी थी, जिसमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिणी सेनाएं शामिल थीं. अक्षोहिणी एक प्राचीन भारतीय सेना की माप है, जिसका उपयोग महाभारत के युद्ध में किया गया था। यह एक पूर्ण चतुरंगिणी सेना का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें चार प्रमुख अंग होते हैं: पैदल सैनिक, घुड़सवार, रथी और हाथी.
एक अक्षोहिणी में निम्नलिखित सैनिक होते हैं:
पैदल सैनिक: 21,870
घोड़े: 21,870
रथ: 21,870
हाथी: 21,870
इस प्रकार एक अक्षोहिणी में कुल लगभग 109,350 सैनिक होते हैं.
युद्ध के बाद कितने दिग्गज योद्धा बचे
अब हम आपको बताते हैं कि युद्ध जब 18वें दिन खत्म हुआ तो कितने बड़े योद्धा बचे हुए थे. उनकी संख्या 11 थी, हालांकि तकनीक तौर पर देखा जाए तो ये संख्या 12 कही जानी चाहिए.
कौन-कौन बचा
पांडव पक्ष की ओर से सभी पांचों पांडव जिंदा बच गए, हालांकि उन्हें अपने सभी करीबियों और पुत्रों की जान गंवानी पड़ी. यानि युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी युद्ध में बच गए. युद्ध के बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने और 36 सालों तक शासन किया.
पांडव पक्ष की ओर से युद्ध लड़ने वाले तीन और प्रमुख योद्धा या हस्तियां भी बची रहीं, वो थे भगवान कृष्ण, युयुत्सु और सात्यकि. हालांकि कृष्ण ने प्रण किया था कि वह इस युद्ध में हथियार नहीं उठाएंगे. वह अर्जुन के रथ के सारथी बने. पूरे युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया. वह युद्ध में बच गए.
कौन थे युयुत्सु और सात्यकि
अब आइए हम आपको युयुत्सु और सात्यकि के बारे में बताते हैं. युयुत्सु कौरवों का सौतेला भाई था. वह पांडवों की ओर से लड़ा. युद्ध के अंत तक बचा रहा. इसके बाद युधिष्ठिर जब राजा बने तो उन्होंने युयुत्सु को राजकाज का महत्वपूर्ण काम सौंपा. सात्यकि के बारे में कहा जाता है कि वह कृष्ण के वफादार और उनके करीबी थे. वह युद्ध में बच गए.
कौरव पक्ष की ओर से कौन जीवित रहे
अब देखते हैं कि कौरव पक्ष में जो लोग महाभारत के युद्ध में लड़े, उसमें कौन से दिग्गज युद्ध खत्म होने के बाद भी बचे रहे. उसमें अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा शामिल हैं. अश्वत्थामा ने युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य को अनुचित तरीके से मारे जाने के बाद इसका प्रतिशोध लेने के चलते दृष्टद्युम्न और पांडवों के पांच पुत्रों की हत्या कर दी. इसके बदले कृष्ण ने उन्हें श्राप दिया कि वह कलयुग में भी जिंदा रहेंगे. उन्हें मृत्यु नहीं मिलेगी. कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जंगलों में भटकते रहते हैं.
कृपाचार्य पांडवों और कौरवों दोनों के शिक्षक थे, युद्ध के बाद भी जीवित रहे. फिर उन्होंने युधिष्ठर के साथ भी काम किया. कृतवर्मा कौरव सेना के एक सेनापति थे, वह भी बचे रहे. इस तरह 11 लोग इसमें बचे रहे.
भीष्म युद्ध के बाद 40 दिनों तक जिंदा रहे
वैसे अगर तकनीक तौर पर देखा जाए तो युद्ध के बाद भी भीष्म पितामह भी जिंदा थे. वह बेशक घायल होने के बाद बाणशैय्या पर लेटे रहे. वह घायल होने और बाणशैय्या पर लेटने के बाद भी 58 दिनों भी जिंदा रहे. युद्ध के दसवें दिन घायल होने की वजह से उन्हें युद्ध से हटना पड़ा था. इसका मतलब ये हुआ कि युद्ध खत्म होने के बाद भी वह 40 दिनों तक जीवित रहे. उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था. उन्होंने मकरसंक्रांति के दिन खुद के प्राण छोड़े.
अश्वत्थामा ने दुर्योधन से क्या बताया कि कितने जीवित बचे
यहां हमें महाभारत के उस प्रहसन के बारे में भी जानना चाहिए कि 18वें जब युद्ध खत्म हो गया. तब बहुत बुरी घायल अवस्था में दुर्योधन वन में अचेत थे. खून की उल्टियां कर रहे थे. तब पांडवों के पांच पुत्रों की हत्या करके अश्वत्थामा वहां पहुंचे.
अश्वत्थामा ने वहां उनकी स्थिति देखकर विलाप करना शुरू किया. उन्होंने इस बात के लिए खुद को धिक्कारा कि वह, कृतवर्मा और कृपाचार्य क्यों जिंदा बच गए और शत्रु से युद्ध में लड़ने के बाद दुर्योधन की ये स्थिति हो गई.
वह दुर्योधन से कहते हैं कि तुम स्वर्ग में जाकर द्रोणाचार्य से कहना कि आज मैंने धृष्टद्युम्न का वध कर दिया है. तुम हमारी ओर से वालीकराज, जयद्रथ, सोमदत्त, भूरिश्रवा, भगदत्त आदि का आलिंगन कर उनका कुशल-क्षेम पूछना. इसी दौरान अश्वत्थामा ये बताते हैं कि युद्ध के बाद कितने मुख्य योद्धा बचे हुए हैं. वह कहते हैं, दुर्योधन सुनो – शत्रु-पक्ष में केवल पांच पांडव, कृष्ण और सात्यकि यही सात लोग बचे हैं। हमारे पक्ष में कृपाचार्य, कृतवर्मा और मैं हूं. यहां पर ना वह युयुत्सु का नाम नहीं लेते. भीष्म पितामह की बात भी नहीं करते. वह दुर्योधन को ये भी बताते हैं कि द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न के पुत्रगण और पांचाल व मत्स्य-देशीय सारे योद्धा मारे गए. पांडव-शिविर ध्वस्त हो चुका है.
गणेश चतुर्थी पर घर में स्थापित करना चाहते हैं प्रतिमा? इन 5 बातों का रखें ध्यान!
31 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में कोई भी शुभ अथवा मांगलिक कार्य करने से पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है. प्रत्येक वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 7 सितंबर को मनाया जाएगा. गणेश चतुर्थी पर्व के दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं और 10 दिनों तक उनकी पूजा आराधना करते हैं.
सनातन धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूजनीय का दर्जा प्राप्त है. किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. गणेश चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित सबसे बड़ा त्यौहार होता है. गणपति के भक्त पूरे साल इस त्योहार का इंतजार करते हैं.अगर आप भी गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना अपने घर पर करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि गणेश जी की कैसी प्रतिमा शुभ मानी जाती है और स्थापना के समय किन बातों का विशेष ध्यान देने की जरूरत है तो चलिए इस रिपोर्ट में जानते हैं .
दरअसल अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर को है और इस दिन से लोग गणपति बप्पा की स्थापना अपने घरों पर करते हैं कोई 7 दिनों तक करता है कोई 9 दिनों तक तो कोई 10 दिनों तक गणपति बप्पा की पूजा करता है. इस दौरान गणेश चतुर्थी के लिए गणपति की मूर्ति खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.
इन 5 बातों का रखें ध्यान
⦁ मूर्ति खरीदते समय इस बात पर खास ध्यान दें कि गणेश जी की मुद्रा और सूंड की दिशा कैसी है.
⦁ भगवान गणेश की मुद्रा और बाईं ओर झुकी हुई सूंड वाले गणेश जी को सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है. माना जाता है कि गणपति की ऐसी मूर्ति लाने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है.
⦁ भगवान गणेश की प्रतिमा लेते समय इस बात का भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि गणपति बप्पा की मूर्ति में मूषक जरूर हो उनके हाथ में मोदक भी हो इस तरह की मूर्ति लाना बेहद शुभ माना जाता है .
⦁ अगर भगवान गणेश के प्रतिमा की रंग की बात करें तो भगवान गणेश की सिंदूर के रंग की प्रतिमा घर में लाना उत्तम माना जाता है. गणपति के इस रंग की प्रतिमा लाने से घर में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है जीवन में चल रही परेशानी दूर होती है. दूसरी तरफ अगर आप भगवान गणेश की सफेद रंग की प्रतिमा लाते हैं तो घर में खुशहाली का आगमन भी होता है .
⦁ इसके साथ ही भगवान गणेश की मूर्ति को उत्तर दिशा में स्थापित करना शुभ होता है. यह दिशा मां लक्ष्मी और भगवान शिव की दिशा मानी जाती है. ऐसे में गणेश जी का मुख इस दिशा में रखने से गणेश भगवान के साथ-साथ महादेव और मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
31 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक अशांति एवं मन विक्षुब्ध रहेगा, रुके कार्य बनेंगे।
वृष राशि :- चिन्ताग्रस्त होने से बचें, व्यावसायिक क्षमता अनुकूल होगी, परिश्रम से कार्य बनेंगे।
मिथुन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद रहेगा, धैर्यपूर्वक कार्य करें।
कर्क राशि :- किसी प्रलोभन से बचें अन्यथा परेशानी में फंस सकते हैं, समय पर कार्य करें, सावधान रहें।
सिंह राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, असमर्थता का वातावरण कष्टप्रद रहेगा, विचार कर आगे बढ़े।
कन्या राशि :- विवाद होने की संभावना है, सोचे हुये कार्य समय पर बन जायेंगे, पारिवारिक सुख मिलेगा।
तुला राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझेंगी, कार्यगति में सुधार होगा, कार्य योजना फलीभूत होगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, व्यावसायिक समृद्धि के योग बनेंगे।
धनु राशि :- अधिकारियों से तनाव, मित्र वर्ग से उपेक्षा से मन अशांत रहेगा, कार्य में बाधा आयेगी।
मकर राशि :- मान-प्रतिष्ठा में आंच आने का भय, कार्यगति में बाधा आयेगी, समय स्थिति को ध्यान में रखकर अगे बढ़ें।
कुंभ राशि :- किसी घटना का शिकार होने से बचें, चोटादि का भय बनेगा, परिश्रम से कार्य बनेंगे ध्यान अवश्य दें।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से सुख-हर्ष मिलेगा, बिगड़े कार्य बनेंगे, समय का आभाव रहेगा, हर्ष का वातावरण रहेगा।