धर्म एवं ज्योतिष
अद्भुत है नैनीताल का नंदा देवी महोत्सव, यहां मां की मूर्तियों का केले के पेड़ से होता है निर्माण, जानें परंपरा
30 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तराखंड के नैनीताल में 8 सितंबर से नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत होने जा रही है. इस भव्य महोत्सव का आयोजन नैनीताल की सबसे पुरानी संस्था श्री राम सेवक सभा द्वारा विगत कई सालों से निरंतर किया जा रहा है. इस दौरान नैनीताल स्थित नयना देवी मंदिर में कुमाऊं की अधिष्ठात्री देवी मां नंदा सुनंदा की मूर्ति तैयार की जाती है.
प्राण प्रतिष्ठा के बाद दर्शन के लिए खोली जाती है मूर्ति
ऐसे में नंदाष्टमी के दिन मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर भक्तों के दर्शन के लिए खोली जाती है. क्या आपको पता है कि नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण खास कदली के पेड़ से किया जाता है. जिसे महोत्सव के शुरुआत में ही नैनीताल के निकटवर्ती जगह से लाया जाता है. जहां पूरे शहर में शोभा यात्रा निकालकर अंत में नयना देवी मंदिर प्रांगण में भक्तों के दर्शन के लिए रखा जाता है.
उस शाम ही इस पेड़ से मां की सुंदर मूर्ति पारंपरिक लोक कलाकारों द्वारा तैयार की जाती है. मान्यताओं के अनुसार कदली यानी केले के पेड़ में मां नंदा सुनंदा का वास है. इसके साथ ही केले का पेड़ बेहद पवित्र होता है. यही वजह है की मूर्ति निर्माण में केले के पेड़ का प्रयोग किया जाता है.
मेला प्रवक्ता ने परंपरा को लेकर बताया
नैनीताल निवासी राम सेवक सभा के मेला प्रवक्ता प्रोफेसर ललित तिवारी ने लोकल 18 से बताया कि नंदा देवी महोत्सव कुमाऊं की संस्कृति से जुड़ा हुआ है. जहां मां नंदा सुनंद कुमाऊं के चंद राजवंश से जुड़ी हुई हैं.
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार मां नंदा सुनंदा के पीछे जब भैसा पड़ गया था तो उनकी रक्षा केले के पेड़ ने की थी. तबसे ही केले का पेड़ मां नंदा सुनंद से जुड़ा हुआ है. केले का पेड़ बेहद शुद्ध होता है. जिस वजह से ही मां की मूर्तियों का निर्माण केले से किया जाता है. वहीं, तकनीकी आधार पर केले में नौ प्रकार की देवियों का स्वरूप भी माना जाता है.
इस तरह किया जाता है पेड़ का चयन
प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि नंदा देवी महोत्सव का आधार केला है. जिस गांव से केले का पेड़ लाया जाता है. वहां से केले के पेड़ के चयन की प्रक्रिया भी बेहद खास है. इसके लिए स्वच्छ पर्यावरण में केले के पेड़ का होना जरूरी है. साथ ही जिस पेड़ को लाया जाता है.
उसमें केले के फल नहीं लगे होने चाहिए और उसकी पत्तियां भी कटी फटी न हो. इसके बाद विधि विधान से कदली के वृक्ष का चयन किया जाता है. इस साल नैनीताल के निकटवर्ती थापला गांव के रोखड़ ग्रामसभा से केले का पेड़ लाया जाएगा.
इस दिन लाया जाता है केले का पेड़
मां नंदा देवी महोत्सव के उद्घाटन के दिन ही एक दल केले का पेड़ लेने जाता है. जबकि दूसरे दिन केले के पेड़ को नगर में लाया जाता है. पूरे शहर में केले के पेड़ की शोभा यात्रा निकाली जाती है. मान्यता है कि मां नंदा सुनंदा केले के रूप में आती हैं. जिसके बाद केले के पेड़ की प्राण प्रतिष्ठा कर इस दिन रात्रि से ही मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाती है. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा सुनंदा की मूर्ति को दर्शन के लिए मंदिर प्रांगण में स्थापित किया जाता है.
महाभारत युद्ध के खत्म होने के कितने दिनों बाद हुई भीष्म पितामह की मृत्यु, कितनी थी तब उनकी आयु
30 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आमतौर पर लोगों को लगता है कि भीष्म पितामह का निधन महाभारत युद्ध के दौरान ही हो गया था लेकिन ऐसा नहीं है. इस विराट युद्ध के बाद भी वह महीने भर से ज्यादा से जिंदा रहे. बाद में उन्होंने खुद अपनी मृत्यु का दिन चुना और प्राण छोड़े. इस दौरान वह कहां रहे और क्या कर रहे थे, इसके बारे में कम लोग जानते होंगे.
गौरतलब है कि जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो भीष्म पितामह को दुर्योधन ने कौरवों की सेना का मुख्य सेनापति बनाया. उनकी अगुवाई में पहले 10 दिन का युद्ध लड़ा गया. युद्ध के दसवें दिन अर्जुन के बाणों से भीष्म पितामह बुरी तरह घायल हो गए. अर्जुन ने इतनी संख्या में तीर चलाए कि भीष्म के बाणों की एक शैय्या बन गई.
कितने दिन चला था महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध तो 18वें दिन ही खत्म हो गया लेकिन भीष्म पितामह बाण शैय्या पर घायल लेटे रहे. इस दौरान कौरव और पांडव ही नहीं बल्कि ऋषि मुनिन भी उनसे मिलने वहां आते रहे. उनसे मिलने आने वालों में महाऋषि नारद भी थे. जो अक्सर उनके पास आया करते थे. पांडव भी उनके पास युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद उनकी सेवा के लिए आते रहे. इस तरह हम कह सकते हैं कि भीष्म वो महान योद्धा थे, जिनकी मृत्यु महाभारत में नहीं हुई.
क्या थी उनकी प्रतिज्ञा
महाभारत के युद्ध में भी वह अर्जुन के बाणों से घायल होकर बाणशैय्या पर नहीं लेटते, अगर उनकी एक प्रतिज्ञा बीच में नहीं आती. उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि युद्ध के मैदान में वह किसी स्त्री के खिलाफ युद्ध नहीं करेंगे. इस कारण जब शिखंडी युद्ध में उनकी ओर बढ़ा, तो भीष्म ने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए. निहत्थे खड़े हो गए. तब अर्जुने ने उनके ऊपर तीरों की बारिश कर दी.
कैसे मिला था उन्हें ये नाम
भीष्म को पितामह, गंगापुत्र और देवव्रत के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए अपने सिंहासन पर आसीन होने के अपने जन्मसिद्ध अधिकार को त्याग दिया. साथ ही आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया. तभी उनके पिता शांतनु का विवाह सत्यवती से हो सका. उनकी इस प्रतिज्ञा ने उन्हें भीष्म बना दिया. पिता शांतनु से उन्हें जब तक चाहें तब तक जीने का वरदान मिला.
बाणशैय्या पर कितनी रातें बिताईं
लिहाजा जब महाभारत के युद्ध में भीष्म बुरी तरह घायल होकर जब बाण शैय्या पर लेटे तो उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे. उसके लिए शुभ दिन का इंतजार किया. उन्होंने बाणों की शैय्या पर 58 रातें बिताईं यानि महाभारत का युद्ध खत्म होने के 50वें दिन उन्होंने इच्छा के अनुसार शरीर त्यागा. उस दिन शुभ उत्तरायण ( शीतकालीन संक्रांति ) था.
क्या किया बाणशैय्या पर लेटे लेटे
क्या आपको मालूम है कि महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने बाण शैय्या पर लेटे लेटे किया क्या. युद्ध के बाद अपनी मृत्युशैया पर रहते हुए उन्होंने युधिष्ठिर को लगातार करीब एक महीने तक राजनेता के कर्तव्य और एक राजा के कर्तव्यों पर गहन और सार्थक बातें बताईं.
उन्हें ये भी बताया कि सही राजधर्म क्या होता है, शासन कैसे किया जाता है, उसमें किन नीतियों का पालन करना चाहिए. युधिष्ठिर लगातार उनके पास राजकाज की शिक्षा लेने के लिए आते रहे थे. महाभारत में कहा गया है कि उन्होंने मृत्यु के बाद मोक्ष हासिल किया.
कितनी बताई जाती है उनकी उम्र
भीष्म पितामह की मृत्यु के समय उनकी उम्र लगभग 128 वर्ष बताई गई है. यह जानकारी महाभारत में दी गई है. हालांकि उस समय की औसत आयु को देखते हुए 200 वर्ष तक जीना सामान्य माना जाता था.
भीष्म अपने समय और इतिहास के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में एक थे. करीब पांच पीढ़ियों के होने के बावजूद भीष्म इतने शक्तिशाली थे कि उस समय कोई भी जीवित योद्धा उन्हें हरा नहीं सकता था. युद्ध की शुरुआत में भीष्म ने किसी भी पांडव को न मारने की कसम खाई थी, क्योंकि वह उनसे बहुत प्यार करते थे, वह उनके दादा थे.
कब से हैं शारदीय नवरात्रि? बेहद खास है इनका महत्व, भगवान राम और रावण से है कनेक्शन
30 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शक्ति की देवी की उपासना पूजा पाठ करने के लिए नवरात्रि के दिन बेहद ही खास और महत्वपूर्ण बताए गए हैं. साल 2024 में नवरात्रि आश्विन मास शुक्ला पक्ष की प्रतिपदा 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो जाएंगे, जो नवमी 11 अक्टूबर तक किए जाने का विधान बताया गया है. साल में नवरात्र चार बार होते हैं, लेकिन इनमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि ही प्रमुख बताए गए हैं. नवरात्रों में देवी दुर्गा के निमित्त व्रत, पूजा पाठ आदि करने का महत्व बताया गया है.
कथाओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि का महत्व भगवान राम और माता सीता से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि भगवान राम शक्ति की देवी की आराधना करने के लिए इंतजार नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रावण के साथ अंतिम युद्ध करने से पहले 9 दिन तक देवी की पूजा अर्चना की थी. जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया था. शास्त्रों वेदों पुराणों में नवरात्रों का महत्व भगवान राम से जुड़ा हुआ बताया जाता है. शारदीय नवरात्रों का महत्व भगवान राम से जुड़ा हुआ है. ऐसी बहुत सी कथाओं का वर्णन शास्त्रों में मिलता है.
शारदीय नवरात्रों का महत्व भगवान राम से जुड़े होने के सवाल को लेकर हमने हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री से बातचीत की. उन्होंने सवाल का जवाब देते हुए लोकल 18 को बताया कि शारदीय नवरात्रों का महत्व भगवान राम और रावण से जुड़ा हुआ है. रावण के साथ अंतिम युद्ध से पहले भगवान राम ने शक्ति की देवी मां दुर्गा का आवाह्न कर पूजा अर्चना की थी. भगवान राम देवी दुर्गा की आराधना करने के लिए इंतजार नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने युद्ध से पहले माता दुर्गा की विशेष पूजा अर्चना की थी जिसके बाद उन्हें विजय प्राप्त हुई थी. नवरात्र पूरे होने के बाद दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार हर साल शारदीय नवरात्रि आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं. इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के निमित्त व्रत, पूजा पाठ, दुर्गा स्तोत्र का पाठ, दुर्गा चालीसा का पाठ आदि करने का बहुत अधिक महत्व बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्रों में देवी दुर्गा स्वर्ग लोक से धरती लोक पर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए आती है. इस दौरान श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धा भक्ति भाव से पूजा पाठ करने पर माता भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है.
पितृ पक्ष में दाढ़ी-बाल कटवाना क्यों है वर्जित? काशी के विद्वान से जानें धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
30 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैदिक पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और यह आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर समाप्त होता है. इन्हें बोलचाल की भाषा में ‘श्राद्ध’ भी कहा जाता है और इस अवधि को पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है. इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक रहने वाला है. इस दौरान बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह एक ऐसा समय होता है जब लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए विभिन्न अनुष्ठान और पिंडदान करते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों पितृ पक्ष के दौरान बाल और दाढ़ी कटवाने को अशुभ माना जाता है? इस विषय पर प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से प्रकाश डाला है.
पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार, पितृ पक्ष में बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा का धार्मिक आधार पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा से जुड़ा है. यह समय पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करने का होता है. इस दौरान बाल और दाढ़ी न कटवाने को पितरों के प्रति आदर का प्रतीक माना जाता हैं.
क्या है धार्मिक आधार?
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि पितृ पक्ष को एक प्रकार का शोककाल माना जाता है, जिसमें परिवार के सदस्यों को अपने पितरों को सम्मान देने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से संयमित रहने की सलाह दी जाती है. बाल और दाढ़ी काटने को इस शोक के दौरान अशुभ माना जाता है, क्योंकि इसे पितरों की स्मृति के प्रति असम्मान के रूप में देखा जाता है. पितृ पक्ष के दौरान संयम, साधना, और त्याग पर जोर दिया जाता है. बाल और दाढ़ी न काटकर व्यक्ति अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और संयम का प्रदर्शन करता है.
क्या है वैज्ञानिक आधार?
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है, जो प्राचीन काल से हमारे पूर्वजों की गहन समझ को दर्शाता है. पितृ पक्ष का समय मानसून के बाद आता है, जब मौसम में बदलाव होता है. इस समय बाल और दाढ़ी न काटने से शरीर को ठंड से बचाया जा सकता है, क्योंकि बाल और दाढ़ी शरीर को प्राकृतिक रूप से गर्म रखने में मदद करते हैं. यह शरीर को बीमारियों से बचाने का एक पारंपरिक तरीका हो सकता है.
ये भी है एक वजह
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि पुराने समय में सैलून और बारबर के उपकरणों की स्वच्छता की व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं होती थी. पितृ पक्ष के दौरान, जब लोग अपने घरों से कम निकलते थे, तो बाल और दाढ़ी न कटवाना संक्रमण के जोखिम से बचाने का एक तरीका हो सकता था.
कैसे शुरू हुई ये प्रथा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस परंपरा की उत्पत्ति के पीछे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी है. प्राचीन भारत में पितृ पक्ष को बहुत ही पवित्र समय माना जाता था, जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते थे. इस दौरान किसी भी प्रकार का श्रृंगार या शारीरिक सजावट को अनुचित माना जाता था, क्योंकि यह पितरों के शोककाल का उल्लंघन करता.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
30 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- किसी के द्वारा धोखा देने से मनोवृत्ति खिन्न रहेगी, धन का व्यय तथा परिश्रम विफल होगा।
वृष :- समय अनुकूल नहीं है, लेन-देन के मामले विफल रहेंगे, व्यर्थ विवाद से बचें।
मिथुन :- व्यर्थ समय नष्ट होगा, यात्रा प्रसंग में थकावट व बेचैनी बनी रहेगी, समय समस्या का ध्यान रखें।
कर्क :- प्रयत्नशीलता विफल हो, परिश्रम करने में ही कुछ सफलता अवश्य मिलेगी।
सिंह :- परिश्रम से कार्यपूर्ण होंगे, तर्क-वितर्क से विजय प्राप्त हो, सफलता मिले, धन का लाभ होगा।
कन्या :- व्यवसायिक अनुकूलता से असंतोष किन्तु कार्य-व्यवस्था अनुकूल बनी रहेगी।
तुला :- किसी तनावपूर्ण वातावरण से बचिये, कुछ उदविघ्नता से परेशानी बने, मित्रों से लाभ होगा।
वृश्चिक :- परिश्रम से कार्य में सुधार होते हुए भी फलप्रद नहीं, कार्य विफलत्व की चिन्ता बनेगी।
धनु :- स्त्री वर्ग से उल्लास, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे तथा रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
मकर :- स्वभाव में क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम, भय तथा उद्विघ्नता अवश्य बनेगी।
कुम्भ :- कार्यगति अनुकूल रहेगी, चिन्ताएW कम होंगी तथा विलासिता के साधन जुटायेंगे।
मीन :- आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा तथा इष्ट मित्रों का समर्थन फलप्रद होगा।
ईश्वर अराधना की एक विधि है आरती
29 Aug, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आरती देवी-देवता या अपने आराध्य, अपने ईष्ट देव की स्तुति की उपासना की एक विधि है। आरती के दौरान भक्तजन गाने के साथ साथ धूप दीप एवं अन्य सुगंधित पदार्थों से एक विशेष विधि से अपने आराध्य के सामने घुमाते हैं। मंदिरों में सुबह उठते ही सबसे पहले आराध्य देव के सामने नतमस्तक हो उनकी पूजा के बाद आरती की जाती है। इसी क्रम को सांय की पूजा के बाद भी दोहराया जाता है व मंदिर के कपाट रात्रि में सोने से पहले आरती के बाद ही बंद किये जाते हैं। मान्यता है कि आरती करने वाले ही नहीं बल्कि आरती में शामिल होने वाले पर भी प्रभु की कृपा होती है। भक्त को आरती का बहुत पुण्य मिलता है। आरती करते समय देवी-देवता को तीन बार पुष्प अर्पित किये जाते हैं। मंदिरों में तो पूरे साज-बाज के साथ आरती की जाती है। कई धार्मिक स्थलों पर तो आरती का नजारा देखने लायक होता है। बनारस के घाट हों या हरिद्वार, प्रयाग हो या फिर मां वैष्णों का दरबार यहां की आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। तमिल में आरती को ही दीप आराधनई कहा जाता है।
आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है। इसमें भक्त के शरीर के पांचों भाग मस्तिष्क, हृद्य, कंधे, हाथ व घुटने यानि साष्टांग होकर आरती करता है इस आरती को पंच-प्राणों की प्रतीक आरती माना जाता है।
ग्रहों और किस्मत से क्या है संबंध?
29 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है। ग्रह कई बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। आइए जानते हैं किस ग्रह की वजह से कौन सी बीमारी हो सकती है और इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए।
शरीर में कुल मिलाकर पांच तत्व और तीन धातुएं होती हैं। ये पांचों तत्व और तीनों धातुएं 9 ग्रहों से नियंत्रित होती हैं। जब कोई तत्व या धातु कमजोर होती है, तब शरीर में बीमारियां बढ़ जाती हैं। छोटी हो या बड़ी, हर बीमारी इन 9 ग्रहों से संबंध रखती है। इनसे संबंधित ग्रहों को ठीक करके हम शरीर की बीमारियों को दूर कर सकते हैं।
सूर्य और इसकी बीमारियां-
सूर्य ग्रहों का राजा है।
हर ग्रह की शक्ति के पीछे सूर्य ही होता है।
सूर्य के कारण हड्डियों की और आंखों की समस्या होती है।
ह्रदय रोग, टीबी और पाचन तंत्र के रोग के पीछे सूर्य ही होता है।
उपाय-
प्रातः जल्दी सोकर उठें।
नित्य प्रातः सूर्य को जल अर्पित करें।
भोजन में गेंहू की दलिया जरूर खाएं।
तांबे के पात्र से जल पीएं।
चंद्रमा और इसकी बीमारियां-
चंद्रमा व्यक्ति के मन और सोच को नियंत्रित करता है।
इसके कारण व्यक्ति को मानसिक बीमारियां होती हैं।
व्यक्ति को चिंताएं परेशान करती रहती हैं।
नींद, घबराहट, बेचैनी की समस्या हो जाती है।
उपाय-
देर रात तक जागने से बचें।
पूर्णिमा या एकादशी का उपवास रखें।
शिव जी की उपासना करे।
चांदी का छल्ला या चांदी की चेन धारण करें।
मंगल की बीमारियां-
- मंगल मुख्य रूप से रक्त का स्वामी होता है।
- यह रक्त और दुर्घटना की समस्या देता है।
- यह उच्च रक्तचाप और बुखार के लिए भी जिम्मेदार होता है।
- यह कभी कभी त्वचा में इन्फेक्शन भी पैदा कर देता है.
उपाय-
- मंगलवार का उपवास रखें.
- चीनी खाने के बजाय गुड़ का सेवन करें।
- जमीन पर या लो फ्लोर के पलंग पर सोएं।
- घड़े का जल पीना अद्भुत लाभकारी होगा।
बुध और इसकी बीमारियां-
- बुध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का स्वामी होता है।
- इसके कारण इन्फेक्शन वाली बीमारियां होती हैं.
- यह कान नाक गले की बीमारियों से संबंध रखता है.
- इसके अलावा त्वचा के रोग भी बुध के कारण ही होते हैं.
उपाय-
- भोजन में सलाद और हरी सब्जियों का प्रयोग करें।
- कुछ देर उगते हुए सूर्य की रौशनी में बैठें।
- प्रातःकाल खाली पेट तुलसी के पत्तों का सेवन करें।
- गायत्री मंत्र का जप भी विशेष लाभकारी होता है।
बृहस्पति की बीमारियां-
- यह व्यक्ति को स्वस्थ भी रखता है।
- साथ ही गंभीर बीमारियां भी देता है।
- कैंसर, हेपटाइटिस और पेट की गंभीर बीमारियां यही देता है।
- यह आमतौर पर छोटी मोटी बीमारियां नहीं देता।
उपाय-
प्रातःकाल सूर्य को हल्दी मिलाकर जल अर्पित करें।
शुद्ध सोने का छल्ला तर्जनी अंगुली में धारण करें।
हल्दी का तिलक अवश्य लगाएं.
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।
शुक्र और बीमारियां-
यह शरीर के रसायनों को नियंत्रित करता है।
इसके कारण हार्मोन्स और मधुमेह की समस्या हो जाती है.
कभी-कभी यह आंखों को भी प्रभावित करता है।
उपाय-
दोपहर के भोजन में दही जरूर खाएं।
चावल, चीनी और मैदा कम से कम खाएं।
भोर में उठकर जरूर टहलें.
एक सफ़ेद स्फटिक की माला गले में धारण करें।
शनि और बीमारियां-
शनि के कारण लंबे समय तक चलने वाली बीमारियां होती हैं।
यह स्नायु तंत्र और दर्द की समस्या देता है।
यह व्यक्ति का चलना फिरना रोक देता है।
आम तौर पर शरीर को विकृत बना देता है।
उपाय-
सात्विक और सादा भोजन ग्रहण करें।
रहने के लिए हवादार और साफ सुथरे घर का प्रयोग करें।
एक लोहे का छल्ला जरूर धारण करें।
प्रातःकाल पीपल के नीचे कुछ समय जरूर बैठें।
राहु और बीमारियां-
यह हमेशा रहस्यमयी बीमारियां देता है।
इसकी बीमारियां शुरू में छोटी पर बाद में गंभीर हो जाती हैं।
इसकी बीमारियों का कारण अक्सर अज्ञात रहता है।
ये खुद आती हैं और खुद ही चली जाती हैं।
उपाय-
चंदन की सुगंध का खूब प्रयोग करें।
गले में एक तुलसी की माला धारण करें।
आहार को सात्विक रखें।
चमकदार नीले रंग का खूब प्रयोग करें।
केतु और बीमारियां-
केतु भी रहस्यमयी बीमारियां देता है।
आमतौर पर त्वचा की और रक्त की विचित्र बीमारियों के पीछे यही होता है।
इसकी बीमारियों का कारण और निवारण समझ नहीं आता।
यह कल्पना की बीमारियां भी देता है।
उपाय-
नित्य प्रातः स्नान जरूर करें।
धर्मस्थानों या धर्म सभाओं में अवश्य जाएं।
निर्धनों को भोजन कराएं।
माह में कुछ न कुछ गुप्त दान अवश्य करें।
मंत्रों की ध्वनि में होती है शक्ति
29 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वैसे तो मंत्रों के अर्थ इतना महत्व नहीं रखते क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि मंत्रों के अर्थ में नहीं बल्कि ध्वनि में शक्ति होती है। इसका एक कारण यह भी है कि इन मंत्रों की उत्पति के बारे में कहा जाता है कि ये किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं लिखे गए हैं बल्कि वर्षों की साधना के बाद ऋषि मुनियों ने इन ध्वनियों को सुना है। विशेषकर बीज मंत्रों के बीजाक्षरों का अर्थ साधारण व्यक्ति के लिए समझना बहुत मुश्किल है उसे ये निर्रथक लगते हैं लेकिन माना जाता है कि ये बीजाक्षर सार्थक हैं और इनमें एक ऐसी शक्ति अन्तर्निहित रहती है जिससे आत्मशक्ति या फिर देवताओं को उत्तेजित किया जा सकता है। ये बीजाक्षर अन्त:करण और वृत्ति की शुद्ध प्रेरणा के व्यक्त शब्द हैं, जिनसे आत्मिक शक्ति का विकास किया जा सकता है।
मंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है एक ऐसी ध्वनी जिससे मन का तारण हो अर्थात मानसिक कल्याण हो जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से इस प्रकार की कल्याणकारी ध्वनियां उत्पन्न की गई।
माना जाता है कि मनुष्य की अवचेतना में बहुत सारी आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं जिन्हें मंत्रों के द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है। मंत्र की ध्वनियों के संघर्ष से इन आध्यात्मिक शक्तियों को उत्तेजित किया जाता है हालांकि इसके लिए सिर्फ मंत्रोंच्चारण काफी नहीं है बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति से ध्वनि-संचालन एवं नैष्ठिक आचार भी जरुरी है। तंत्र साधना के मंत्रों में मंत्रोच्चारण की शुद्धि व मंत्रोचार के दौरान विशेष नियमों का पालन करना होता है जो किसी गुरु के मार्गदर्शन में ही संभव है।
अक्सर लोग मंत्रों या बीज मंत्रों का जाप करते हैं या फिर जाप करवाते हैं लेकिन इन मंत्रों के मायने क्या हैं इस पर ध्यान नहीं देते लेकिन हर मंत्र में निहित बीजाक्षर और बीजाक्षर में निहित वर्ण बिंदु एवं मांत्राएं किसी न किसी देवी-देवता का प्रतिनिधित्व करती है। इस बारे में विश्वसनीय जानकारी बहुत कम मिलती है। लेकिन फिर भी हमने कुछ प्रयास किया है इन मंत्रों का अर्थ जानने का। यह भी देखने को मिलता है कि गायत्री और मृत्युंजय मंत्र जैसे लोकप्रिय मंत्रों के सरलार्थ तो हमें मिल जाते हैं, लेकिन अन्य मंत्रों के बारे में जानकारी नहीं मिलती।
सभी प्रकार के रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति दिलाता है हनुमान यज्ञ
29 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
‘नासे रोग हरे सब पीरा। जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।‘ हनुमान चालीसा की यह चौपाई बताती है कि बजरंग बली सभी प्रकार रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति दिला सकते हैं। इसी प्रकार कलयुग में हनुमान यज्ञ सभी प्रकार की पीड़ा से मुक्ति दिलाने वाला और धन और यश की प्राप्ति के लिए एक उत्तम और चमत्कारिक उपाय के रूप में बताया जाता है। संतों के अनुसार हनुमान यज्ञ में इतनी शक्ति है कि अगर विधिवत रूप से यज्ञ को कर लिया जाए तो यह व्यक्ति की हर मनोकामना को पूरा कर सकता है। इसलिए शायद कई हिन्दू राजा युद्ध में जाने से पहले हनुमान यज्ञ का आयोजन जरूर करते थे।
आइये जानते हैं कैसे होता है हनुमान यज्ञ और यदि कोई हनुमान यज्ञ नहीं करवा सकता है तो हनुमान जी की कृपा प्राप्ति का अन्य उपाय-
हनुमान यज्ञ को एक सिद्ध ब्राह्मण की आवश्यकता से ही विधिवत पूर्ण किया जा सकता है। यह यज्ञ इंसान को धन और यश की प्राप्ति करवाता है। जो भी व्यक्ति हनुमान यज्ञ से हनुमान जी की पूजा करता है और ध्यान करता है उसके जीवन में सभी समस्याएं निश्चित रूप से समाप्त हो जाती हैं। हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह सर्वाधिक लोकप्रिय उपाय है। इस यज्ञ में हनुमान जी के मन्त्रों द्वारा, इनको बुलाया जाता है और साथ ही साथ अन्य देवों की भी आराधना इस यज्ञ में की जाती है। कहा जाता है कि इस यज्ञ में जैसे ही भगवान श्रीराम का स्मरण किया जाता है तो इस बात से प्रसन्न होकर, हनुमान जी यज्ञ स्थल पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विराजमान हो जाते हैं।
हनुमान यज्ञ के लिए कुछ आवश्यक वस्तुयें-
लाल फूल, रोली, कलावा, हवन कुंड, हवन की लकडियाँ, गंगाजल, एक जल का लोटा, पंचामृत, लाल लंगोट, पांच प्रकार के फल। पूजा सामग्री की पूरी सूची, यज्ञ से पहले ही ब्राह्मण द्वारा बनवा लेनी चाहिए।
हनुमान यज्ञ के लिए सबसे लिए मंगलवार का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इस यज्ञ को विधिवत पूरा एक ब्राह्मण की सहायता से ही करवाया जा सकता है।
अगर कोई व्यक्ति किसी कारण, पंडित जी से यज्ञ या हवन नहीं करवा सकता है तो ऐसे वह स्वयं से भी एक अन्य पूजा विधान को घर में खुद से कर सकता है।
पूजन विधि
हनुमान जी की एक प्रतिमा को घर की साफ़ जगह या घर के मंदिर में स्थापित करें और पूजन करते समय आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। इसके पश्चात हाथ में चावल व फूल लें व इस मंत्र (प्रार्थना) से हनुमानजी का स्मरण करें-
ध्यान करें-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
अब हाथ में लिया हुआ चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें।
इसके बाद इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के सामने किसी बर्तन अथवा भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें। इसके पश्चात् हनुमान जी की उपयोगी और सरल ‘हनुमान चालीसा’ का कम से कम 5 बार जाप करें।
सबसे अंत में घी के दीये के साथ हनुमान जी की आरती करें। इस प्रकार यह यज्ञ और निरंतर घर में इस प्रकार किया गया पूजन, हनुमान जी को प्रसन्न करता है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाओं को भी पूरा करता है।
जन्म कुंडली से पता चलते हैं दाम्पत्य जीवन में कलह और मधुरता के योग
29 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दाम्पत्य में जीवन साथी अनुकूल हो तो हर तरह की परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है लेकिन यदि दाम्पत्य जीवन में दोनों में से किसी भी एक व्यक्ति का व्यवहार यदि अनुकूल नहीं रहता है तो रिश्ते में कलह और परेशानियों का दौर लगा रहता है। ज्योतिषशास्त्र में जातक की जन्म कुंडली को देखकर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आपके दाम्पत्य जीवन में कलह के योग कब उत्पन्न हो सकते हैं।
जीवन में कलह के योग बनते हैं-
कुंडली में सप्तम या सातवाँ घर विवाह और दाम्पत्य जीवन से सम्बन्ध रखता है। यदि इस घर पर पाप ग्रह या नीच ग्रह की दृष्टि रहती है तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव बन जाता है।
यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है।
जन्म-कुंडली के सातवें या सप्तम भाव में अगर अशुभ ग्रह या क्रूर ग्रह (शनि, राहू, केतु या मंगल) ग्रहों की दृष्टी हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह के योग उत्पन्न हो जाते हैं। शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
राहु, सूर्य और शनि पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य)और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं।
यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है। किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए। या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए।
अब इसी प्रकार एक सुखमय और मधुर वैवाहिक जीवन की बात करें तो जातक की जन्म-कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार से होनी चाहिए-
सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय पूर्ण रहता है।
यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में पंच महापुरुष योग बनाते हुए शुक्र अथवा गुरु से किसी कोण में सूर्य हो तो दाम्पत्य जीवन अच्छा होता है।
यदि सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करे तो दाम्पत्य जीवन सुखी होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में वैवाहिक जीवन को लेकर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो उपाय के लिए सबसे पहले पति-पत्नी की कुंडली का मिलान बेहद जरूरी हो जाता है। दोनों जातकों की कुंडली का एक मिलान करके ही ज्योतिषाचार्य उपाय को बता सकते हैं।
कई बार देखा गया है कि यदि पत्नी की कुंडली में यह दोष मौजूद है और पति की कुंडली अनुकूल है तो समस्या थोड़ी कम हो जाती है और इसी के उल्ट भी कई बार हो जाता है। लेकिन यदि दोनों व्यक्तियों की कुंडली में सप्तम भाव सही नहीं रहता है तो उस स्थिति में जीवन नरकीय बन जाता है। किसी भी परिस्थिति में कुंडली का मिलन समय से कराकर, उपायों को अगर अपनाया जाए तो पीड़ा कम हो जाती है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
29 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- संसारिक धन की प्राप्ति, स्त्री सुख तथा कल्याणकारी कार्य बनेंगे, समाचार प्राप्त होगा।
वृष :- अचानक संतान को श्रेष्ठ लाभ होगा, रोगों की वृद्धि से समय का लाभ लवें।
मिथुन :- व्यर्थ की दौड़धूप होगा, संतान कष्ट होगा तथा शत्रु पराजित होंगे।
कर्क :- वाहन से मानसिक कष्ट, व्यय, तनाव से मानसिक पीड़ा अवश्य ही होगा।
सिंह :- जमीन-जायजाद तथा संतान से सुख की प्राप्ति होगी, योजना गुप्त रखें।
कन्या :- यश, सुख की प्राप्ति होगी, संतान के कार्यों में यश प्राप्त होगा, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
तुला :- मित्र व सहयोगियों से लाभ होगा, रोजगार का प्रस्ताव प्राप्त होगा, अर्थ व्यवस्था बिगड़ेगी।
वृश्चिक :- अभिष्ट सिद्धी की प्राप्ति होगी, अधिकार प्राप्त होगा किन्तु खर्च से मन बेचैन रहेगा।
धनु :- नये निर्माण की योजना पर धन व्यय होगा किन्तु लाभ अवश्य ही प्राप्त होगा।
मकर :- व्यापार से आय का लाभ बराबर बना रहेगा तथा नवीन कार्य योजना की प्राप्ति होगी।
कुम्भ :- अचानक कार्य लाभ होगा परंतु नई समस्या तत्काल ही खड़ी हो जायेगी।
मीन :- नये कार्यों में में खर्च बढ़े, यात्रा, व्यापार से लाभ अवश्य ही होगा, ध्यान दें।
श्राद्ध में क्यों कराया जाता है कौवे को भोजन, गरुड़ पुराण में छुपा है रहस्य! हरिद्वार के विद्वान से जानें सब
28 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृ पक्ष के में अपने पूर्वजों, पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए पिंडदान, श्राद्धकर्म, तर्पण आदि करने का विशेष महत्व बताया गया हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या पर समाप्त होता है. इस साल 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरूआत हो रही है, जिसका समापन 2 अक्तूबर को होगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साल के ये 16 दिन पूर्वजों की पूजा, आत्म शांति और आशीर्वाद पाने के लिए बेहद खास होते हैं, इन्हें श्राद्ध कहा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में पितरों की आत्मा अपने परिवार के बीच पृथ्वी पर रहने के लिए आती हैं. इस दौरान उनका पिंडदान, श्राद्ध कर्म और तर्पण करने से वह प्रसन्न होते हैं और परिवार को खुशहाली, संपन्न रहने का आशीर्वाद देते हैं. पितृ पक्ष में अक्सर कौवे को भोजन कराया जाता हैं जो बहुत ही शुभ माना जाता है.
हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने बताया कि धार्मिक ग्रंथो के अनुसार कौवे की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती और न ही उसकी किसी बीमारी या बुढापे से मृत्यु होती हैं. ‘गरुड़ पुराण’ के अनुसार कौवे की मृत्यु अचानक हो जाती है. जिस दिन कौवे की मृत्यु होती है उस दिन उसके झुंड के कौवे खाना नहीं खाते हैं. धार्मिक ग्रंथो में कौवे को पितरों का प्रतीक माना जाता है इसलिए पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराने का सबसे अधिक महत्व बताया गया है. जब पितरों का पिंडदान, श्राद्ध कर्म किया जाता है तो उसमें से बली निकाली जाती है जो कौवे को खिलाई जाती है. ऐसा माना जाता है की वह खाना कौवे के रूप में अपने पितरों को खिलाया जाता हैं.
गरुड़ पुराण में है वर्णन
पंडित श्रीधर शास्त्री ने बताया कि धार्मिक मान्यता है कि देवताओं के साथ कौवे ने भी अमृत का पान किया था. पितरों की आत्मा कौवे के अंदर आसानी से आ जाती हैं. कौवा एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना थके पहुंच जाता है. कौवा कितनी भी लंबी दूरी तय कर सकता है और उसे थकावट नहीं होती है. श्राद्ध करने के दौरान उसमें से ग्रास (बली) निकाले जाते हैं जो कौवे को खिलाया जाता है. इसके बाद ही श्राद्ध कर्म को पूर्ण माना जाता है. कौवे का पूरा महत्व धार्मिक ग्रंथ और गरुड़ पुराण में लिखा हुआ है.
पहली बार राम मंदिर में नंदलाल लेंगे जन्म, हरियाणा का वस्त्र धारण करेंगे प्रभु राम
28 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
प्रभु राम के अयोध्या में विराजमान होने के बाद हर रोज एक से डेढ़ लाख भक्त उनके दर्शन और पूजन के लिए आते हैं. विशेष पर्व और उत्सव के अवसर पर यह संख्या कई लाख तक पहुंच जाती है. आज पूरे देश में जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है, और इस खास मौके पर बालक राम के दरबार में विशेष भोग लगाए जाएंगे और गर्भगृह को फूलों से सजाया जाएगा. पहली बार, बालक राम के मंदिर में भगवान श्री कृष्णा का जन्म रात्रि 12:00 बजे मनाया जाएगा, जिसके दौरान बालक राम के ठाठ निराले नजर आएंगे.
इस जन्माष्टमी के अवसर पर, प्रभु रामलला सरकार छत्तीसगढ़ के बस्तर के श्रमसाधकों द्वारा बुने गए पीले खादी सिल्क से निर्मित वस्त्र धारण करेंगे. इन वस्त्रों को असली स्वर्ण-चूर्ण हस्तछपाई विधि से सुसज्जित किया गया है. विशेष पर्व और उत्सव के दौरान बालक राम विशेष वस्त्र धारण करते हैं, जिन्हें देखकर भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.
प्रभु रामलला के वस्त्रों की खासियत
प्रभु राम का पोशाक तैयार करने वाले मनीष त्रिपाठी ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के दिन से ही प्रभु रामलला के वस्त्र विशेष रूप से तैयार किए जा रहे हैं. प्रभु राम प्रतिदिन नए-नए पोशाक धारण करते हैं, और हर दिन के अनुसार उनके वस्त्रों के रंग का चयन किया जाता है. अयोध्या के बालक राम देश के विभिन्न राज्यों के हैंडलूम, टेक्सटाइल, और खादी से बने वस्त्र धारण करते हैं. मौसम के अनुसार भी भगवान के पोशाक में बदलाव किया जाता है. तेलंगाना की कलमकारी, उड़ीसा की कंबलपुरी, राजस्थान की लहरिया, या बनारस के बनारसी वस्त्र से प्रभु राम के वस्त्र तैयार किए जाते हैं.
सिल्क के वस्त्र
आज जन्माष्टमी का पर्व है, और बालक राम के मंदिर में यह पहला जन्माष्टमी उत्सव है. इस विशेष दिन पर, प्रभु राम सिल्क के वस्त्र धारण करेंगे, जो खादी के बने होंगे और अद्भुत कलाकृतियों से सुसज्जित होंगे. राम भक्तों को आज प्रभु रामलला नए वस्त्रों में दर्शन देंगे.
झारखंड में इस पूरे परगना की रक्षा करती हैं माता चंपेश्वरी, महाभारत काल से जुड़ा इतिहास, पढ़ें रोचक कथा
28 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हजारीबाग जिला अपने गौरवशाली इतिहास के साथ कई सांस्कृतिक धरोहरों को अपने भीतर समेटे हुए है. जिले का इतिहास रामगढ़ राज से जुड़ा हुआ है. रामगढ़ राज को 21 परगना में विभाजित किया गया था. जिसकी एक परगना चंपानगर था. आज भी पुराने दस्तावेज इस बात के सबूत पेश करते हैं. चंपानगर परगना में माता चंपेश्वरी की पूजा अर्चना की जाती थी. जहां भक्त अपना मुराद लेकर माता के दरबार में जाते थे.
माता चंपेश्वरी का ऐतिहासिक का मंदिर आज भी चंपानगर में स्थित है. माता चंपेश्वरी ही पूरी परगना की रक्षा करती थी. आज भी सैकड़ो भक्त माता चंपेश्वरी के मंदिर में अपनी मुराद मांगने के लिए जाते हैं. हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड स्थित चंपानगर नवाडीह गांव स्तिथ माता चंपेश्वरी का मंदिर है. आज धार्मिक आस्था का केंद्र बन चुका है. यहां दूर-दूर के भक्त अपनी मन्नत लेकर माता तक जाते हैं.
यहां दूर-दूर से आते है भक्त
चंपानगर नवाडीह गांव के रहने वाले देवदत उपाध्याय बताते हैं कि माता का मंदिर कब बना है. इसकी वास्तविक जानकारी किसी के पास नहीं है. हम लोगों ने अपने पूर्वजों से सुन रखा है कि माता के इस मंदिर का निर्माण चंपानगर परगना के राजा ने किया था. माता के पूरे परगना की रक्षा किया करती थी. माता की मूर्ति से अलौकिक रोशनी दिखता था. मानो कोई मणि मूर्ति के भीतर स्थापित हो.
1982 में चोरी हो गई मूर्ति
मंदिर में माता अष्टभुजी, माता वैष्णवी और मां चंपेश्वरी की मूर्तियां स्थापित थी. लेकिन साल 1982 ईस्वी में मंदिर में माता चंपेश्वरी की मूर्ति की चोरी हो गई. चोर माता की मूर्ति में अलौकिक रोशनी होम के कारण चोरी कर ले गए. ग्रामीणों ने मूर्ति वापस लाने के लिए कई जगह दौड़ भाग भी किया लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया.
महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
स्थानीय भास्कर उपाध्याय बताते हैं कि इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मंदिर से कुछ ही दूरी पर घोड़टप्पा नाम का स्थान है. यहां राजा युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े के चारों पांव के निसान दिखते है. माना जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा यही आकर रुक गया था.
हरतालिका तीज और हरियाली तीज में क्या है अंतर? काशी के विद्वान से जानें नियम और परंपरा
28 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू पंचांग के अनुसार,हरतालिका तीज 5 सितंबर को मनाया जाएगा, इस व्रत में अब कुछ दिन रह गया है. खास बात यह है कि इसकी तैयारी को लेकर महिलाएं बेहद उत्सुक रहती हैं. भारत में तीज का पर्व महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जिसमें हरियाली तीज और हरतालिका तीज प्रमुख रूप से मनाए जाते हैं. हरियाली तीज सावन तो वहीं हरतालिका तीज भाद्रपद मास में मनाया जाता है. हालांकि इन दोनों त्योहारों को एक ही तरह से मनाया जाता है, लेकिन इनके बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं. प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया है.
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि हरियाली तीज का पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. हरियाली तीज का व्रत 7 अगस्त को मनाया गया था. यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तरी भारत में धूमधाम से मनाया जाता है और इसे प्रकृति के साथ जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है. इस दिन महिलाएं हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं, और झूले का आनंद लेती हैं. पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार, “हरियाली तीज का उद्देश्य पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करना और वर्षा ऋतु का स्वागत करना है. यह पर्व सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है.
कब मनाया जाता है हरतालिका तीज?
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. यह व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा के लिए रखा जाता है. पंडित उपाध्याय ने बताया कि इस व्रत की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. उनकी सहेली ने उन्हें अपहरण कर लिया था ताकि वे विवाह न कर सकें, और इसी कारण इस व्रत का नाम ‘ हरतालिका पड़ा.
किसने की थी हरतालिका तीज की पहली पूजा
पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार, ” हरतालिकातीज की पहली पूजा देवी पार्वती ने स्वयं की थी. उनके तप और समर्पण के परिणामस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें पति रूप में स्वीकार किया. इस व्रत को करने से महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं.
हरतालिका तीज व्रत के नियम और परंपरा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं और रात्रि जागरण करती हैं. हरतालिकातीज की पूजा में विशेष रूप से बालू या मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण किया जाता है, और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है. यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, और इसे अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है.