धर्म एवं ज्योतिष
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (08 अगस्त 2024)
8 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- हर्ष, यात्रा, राजसुख, सफलता, हानि, खर्च अधिक होगा, व्यर्थ का विरोध होगा।
वृष :- विरोध, व्यय, कष्ट, अशांति, कार्यलाभ की स्थिति संतोषप्रद बनी ही रहेगी।
मिथुन :- व्यापार में क्षति, यात्रा, विवाद, गृहकार्य-राजकार्य में व्यवस्था कुछ हानिप्रद रहेगी।
कर्क :- शरीर दिव्य, भूमि व राज लाभ, वायु विकार का योग, शरीर कष्ट होगा।
सिंह :- वाहन आदि का भय, कष्ट, राजसुख, यात्रा की स्थिति में विकाश होगा।
कन्या :- व्यय, प्रवास, विरोध, भूमिलाभ, उद्योग-व्यापार में अड़चने हेंगी, ध्यान रखें।
तुला :- कार्यसिद्धी, लाभ, विरोध, प्रगति, कुछ अच्छे कार्य भी होंगे, संतान से प्रसन्नता मिले।
वृश्चिक :- रोगभय, मातृदु:ख, कष्ट, यात्रा, गृहकार्य व राजकार्य में रुकावट बनेगी, ध्यान दें।
धनु :- राजकार्य में रुचि, यात्रा, कार्यों में रुकावट बनेगी, भयभीत व्यवस्था रहेगी।
मकर :- विरोध, व्यापार में हानि, शरीर कष्ट, धार्मिक खर्च बनेंगे, कार्य में रुकावट होगी।
कुम्भ :- व्यय, प्रवास लाभ, प्रतिष्ठा, रोग, सामाजिक कार्य में रुकावट की अनुभूति होगी।
मीन :-राजभय, यशलाभ, मान, चोट-चपेट का भय, मित्रों व पारिवारिक लोगों से परेशानी होगी।
यहां एक ही जगह मौजूद है महादेव के 7 मंदिर, जरूर बनाएं दर्शन का प्लान
7 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कुरनूल जिला पवित्र तीर्थस्थलों के लिए मशहूर है. यहां के नंदयाला जिले में नल्लामल्ला वन क्षेत्र है.यहां भारती क्षेत्र नाम का एक तालाब है जहां ज्ञान की देवी सरस्वती स्वयं विराजती हैं.
कैसे हुआ भारती क्षेत्र का गठन?
देवी सरस्वती की उत्पत्ति कैसे हुई, यह जानने से पहले हमें इस क्षेत्र के सात शिव मंदिरों के बारे में जानना होगा. पुराणों में कहा गया है कि जब कृतयुग में सात ऋषि लोक कल्याणार्धम यज्ञ करने आए थे तो अम्मावरु यज्ञ के संरक्षक के रूप में महासरस्वती के रूप में यहां आए थे.
यहां एक साथ हुई 7 शिव मंदिरों की स्थापना
इसके अलावा, सात ऋषियों ने लोक कल्याणार्धम यज्ञ के दौरान उस सर्वोच्च भगवान की कृपा पाने के लिए सात शिव मंदिरों की मूर्तियों की स्थापना की. इसमें प्रत्येक शिवलिंग के अलग-अलग नाम से मंदिर स्थापित किये गए हैं. श्री वासवी समेता श्री कश्यप लिंगेश्वर स्वामी, श्री देवी भूदेवी समेता जगन्नाध स्वामी, श्री कौमारी देवी समेता वशिष्ठ लिंगेश्वर स्वामी, श्री माहेश्वरी देवी समेता जमदग्नि लिंगेश्वर स्वामी, श्री ब्रह्मादेवी समेता गौतम लिंगेश्वर स्वामी, श्री इंद्राणी समेता भारद्वाज लिंगेश्वर स्वामी, श्री वाराही देवी समेता श्री अत्रि लिंगेश्वर स्वामी ने सात शिव मंदिरों की स्थापना की.
शिव मंदिरों की है अलग अलग विशेषता
भक्तों का मानना है कि यदि वे इन सात शिव मंदिरों में स्वामी के दर्शन करते हैं, तो यह पहाड़ियों से लिपटे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने जैसा है. एक ओर आध्यात्मिक केंद्र और दूसरी ओर पर्यटन केंद्र होने के कारण इस क्षेत्र की प्रकृति पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है. आसपास की पहाड़ियों और पास की नदी के पानी के बीच पक्षियों के चहचहाने की आवाज़ मन को शांति देती है.
शहर को है बंदोबस्ती की जरूरत
मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इस बात पर संतोष व्यक्त कर रहे हैं कि न तो देवदया विभाग और न ही पर्यटन विभाग ने इतना गौरवशाली क्षेत्र विकसित किया है. श्रद्धालुओं का कहना है कि बेहतर होगा कि सरकार बंदोबस्ती के तहत इस क्षेत्र पर ध्यान दे और मंदिर को और विकसित करे.
विद्यापति धाम मंदिर में सोमवार को जुटी श्रद्धालुओं की भीड़, शाम तक ढाई लाख से अधिक भक्तों ने किया जलाभिषेक
7 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन की तीसरी सोमवारी पर समस्तीपुर जिले के विद्यापति धाम मंदिर में शिव भक्तों ने पूजा-अर्चना की. सुबह से ही भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया था, बड़ी संख्या में सभी वर्ग के श्रद्धालुओं ने दूध, बेलपत्र और जल चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा की. बता दें कि मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गई है, जिसमें हजारों हजार की संख्या में लोग शामिल हुए हैं. देर शाम तक उम्मीद है कि 2 लाख 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के जलाभिषेक करने की उम्मीद है. सुबह से ही विद्यापतिधाम में लोगों की कतार लगी हुई है, जिसमें महिलाएं, युवा और बुजुर्ग लोग महादेव का जलाभिषेक करने के लिए शामिल हो रहे हैं.
मंदिर समिति ने सावन के तीसरे सोमवारी के अवसर पर मंदिर को खूबसूरत रूप दिया है. पूरे मंदिर को ताजे फूलों और लाइटों से सजाया गया है, जिससे यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. स्थानीय प्रशासन और मंदिर समिति की ओर से महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग लाइनों की व्यवस्था की गई है. दूधराज और स्थानीय श्रद्धालु कतर वध होकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हुए जलाभिषेक कर रहे हैं. हर हर महादेव व बम भोले के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठा. मंदिर में महाआरती में हजारों हजार की संख्या में शिव भक्त शामिल हुए. रात्रि दो बजे से ही भक्त पूजा-अर्चना के लिए मंदिर का रुख करने लगे.
घंटो की आवाज से गूंजा शिवालय के प्रवेश द्वार
सुबह-सुबह ही शिव मंदिरों के द्वार पर घंटियों की ध्वनि गूंजने लगी. मंदिर परिसर बम भोले की जय, हर-हर महादेव और बोल बम जैसे जयकारों से गूंज उठा. भक्तों ने शिवलिंग पर गंगाजल, पुष्प, बेलपत्र, धतूरा और अक्षत चढ़ाकर पूजा-अर्चना की. उमस भरे मौसम के बावजूद शिवभक्त घंटों लाइन में खड़े होकर जलाभिषेक करते रहे और शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक भी किया. महिलाओं ने तीसरे सोमवार को व्रत रखा और मंदिर में पूजा के दौरान शिवलिंग पर गंगाजल और बेलपत्र चढ़ाए गए.
सनातन धर्म में सीधे हाथ का महत्व, सिर्फ इस देवी की पूजा बायें हाथ से होती है,
7 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में बाएं हाथ से कोई काम अच्छा नहीं माना जाता. हिंदू धर्म में सीधे हाथ से ही पूजा पाठ और अन्य महत्वपूर्ण काम होते हैं. लेकिन इस धरा पर एक ऐसी देवी हैं जिनकी पूजा बाएं हाथ से की जाती है. इसके पीछे की कई कहानी है. आज हम उस कहानी के बारे में ही चर्चा करेंगे कि इस देवी को आखिर बाएं हाथ से क्यों पूजा जाता है.
हम बात कर रहे हैं मां बिहुला विषहरी की जिन्हें बाएं हाथ से पूजा जाता है. आप जब भी कभी माता विषहरी के दरबार जाएंगे वहां के पुजारी बाएं हाथ से पूजा करते नजर आएंगे.
ये है कहानी
मां बिहुला पर किताब लिख रहे आलोक कुमार से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया. कहते हैं नागवंश को पूजित करने के लिए मां विषहरी को अपनी शक्ति लगानी पड़ी थी. चंपानगर में चांदो सौदागर नाम का एक बहुत बड़ा व्यापारी हुआ करता था. उसके कपड़े का व्यवसाय देश के साथ-साथ विदेशों में भी था. ऐसा कहा जाता था उनकी नाव इतनी बड़ी थी जिसमें 580 मल्लाह सवार होते थे. चांदो सौदागर शिव भक्त थे. जब मां विषहरी इस धरती पर अपनी पूजा के लिए पिता भगवान शिव के पास गईं तो उन्होंने कहा अगर तुम्हारी पूजा मेरा परम भक्त चांदो सौदागर करेगा तो इस धरती पर तुम पूजनीय हो जाओगी, यही नहीं पूरी नाग प्रजाति पूजनीय हो जाएगी.
चांदो सौदागर का हठ
शिव की बात सुनते ही मां विषहरी सौदागर के पास पहुंचीं और उनसे अपना पूजा करने के लिए आग्रह किया. सौदागर ने कहा मैं भगवान शिव का अनन्य भक्त हूं मैं उनकी ही पूजा करूंगा. मैं आपकी पूजा नहीं कर सकता. लाख प्रयत्न करने के बाद भी सौदागर तैयार नहीं हुए. तब मां विषहरी ने गुस्से में कहा अगर तुम मेरी पूजा नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे वंश को नष्ट कर दूंगी. इसके बावजूदसौदागर अपने वचन पर अटल रहा और उसने पूजा नहीं करने की मन में ठान ली.
7 पुत्रों का वध
इसके बाद मां विषहरी ने अपने क्रोध से चांदो सौदागर के छह पुत्रों को त्रिवेणी नदी में डुबाकर मार डाला. इसके बावजूद सौदागर ने तनिक भी ना घबराते हुए पूजा करने से फिर मना कर दिया. इसके बाद सौदागर को सातवां पुत्र हुआ. विषहरी ने उस पुत्र को भी मारने का भय दिखाया.सौदागर टस से मस नहीं हुआ. सातवें पुत्र को भी मां विषहरी ने नाराज होकर मरवा दिया. उसके बाद उसकी पत्नी और बहू के लाख प्रयत्न के बाद चांदो सौदागर पूजा के लिए जैसे तैसे राजी हो गया. लेकिन उसने कहा ठीक है मैं तुम्हारी पूजा दाएं हाथ से नहीं कर सकता हूं. मैं तुम्हारी पूजा बाए हाथ से करूंगा. मां विषहरी प्रसन्न हो गयीं. बोलीं ठीक है तुम मेरी पूजा बाएं हाथ से ही करो. तब से विषहरी की पूजा बाएं हाथ से होने लगी. अभी भी मंदिर में बाएं हाथ से पूजा की जाती है.
हरियाली तीज से बढ़ेगा सौभाग्य, गणेश कृपा से कार्य होंगे सफल, देखें मुहूर्त, अशुभ समय, रवि योग, राहुकाल
7 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हरियाली तीज को सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, परिघ योग, तैतिल करण, उत्तर का दिशाशूल, बुधवार दिन और सिंह राशि में चंद्रमा है. हरियाली तीज के दिन सुहागन महिलाएं और विवाह योग्य युवतियां व्रत रखती हैं, माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ की पूजा करती हैं. शिव और गौरी की कृपा से सुहागन महिलाओं को अखंड सोभाग्य मिलता है, उनके पति का आयु बढ़ती है. हरियाली तीज को सावन तीज भी कहते हैं क्योंकि यह श्रावण मास में पड़ती है. इस अवसर पर महिलाएं हरे रंग की साड़ी, सूट या अन्य पारंपरिक ड्रेस पहनी हैं. मेहदी लगाती हैं और झूला भी झूलती हैं. इसमें हरे रंग का उपयोग अधिक होता है क्योंकि सावन में हर तरफ हरियाली होती है. प्रकृति भी चारों ओर हरी-भरी नजर आती है. हरियाली तीज की पूजा में माता गौरी को 16 श्रृंगार की वस्तुएं जरूर चढ़ाएं.
हरियाली तीज के दिन बुधवार का व्रत है. इस दिन सुबह में आप विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा करें. गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा, अक्षत्, हल्दी, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, फूल, गंध आदि अर्पित करें. गणेश जी को मोदक प्रिय है तो मोदक या लड्डू चढाएं. फिर गणेश चालीसा और बुधवार व्रत की कथा पढ़ें. शाम में सूर्यास्त के बाद हरियाली तीज की पूजा करें. उसमें गणेश, गौरी और शिव जी की पूजा करें. बुधवार के दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा करने से कुंडली का बुध दोष दूर होता है. मूंग का लड्डू गणेश जी को चढ़ाएंगे तो भी लाभ होगा. पंचांग से जानते हैं हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त, अशुभ समय, सूर्योदय, चंद्रोदय, राहुकाल, दिशाशूल, सूर्यास्त, चंद्रास्त के बारे में.
आज का पंचांग, 7 अगस्त 2024
आज की तिथि- तृतीया – 10:05 पी एम तक, फिर चतुर्थी
आज का नक्षत्र- पूर्वाफाल्गुनी – 08:30 पी एम तक, उसके बाद उत्तराफाल्गुनी
आज का करण- तैतिल – 08:56 ए एम तक, गर – 10:05 पी एम तक, फिर वणिज
आज का योग- परिघ – 11:42 ए एम तक, उसके बाद शिव
आज का पक्ष- शुक्ल
आज का दिन- बुधवार
चंद्र राशि- सिंह – 03:15 ए एम, 8 अगस्त तक, फिर कन्या
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय- 05:46 ए एम
सूर्यास्त- 07:07 पी एम
चन्द्रोदय- 08:06 ए एम
चन्द्रास्त- 08:55 पी एम
हरियाली तीज के मुहूर्त और योग
ब्रह्म मुहूर्त: 04:21 ए एम से 05:03 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: कोई नहीं
रवि योग: 08:30 पी एम से 05:47 ए एम, 8 अगस्त
अशुभ समय
राहुकाल- 12:27 पी एम से 02:07 पी एम
गुलिक काल- 10:46 ए एम से 12:27 पी एम
दिशाशूल- उत्तर
रुद्राभिषेक के लिए शिववास
सभा में – 10:05 पी एम तक, उसके बाद क्रीड़ा में
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (07 अगस्त 2024)
7 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- यात्रा से लाभ, कुसंग हानि, गृह कलह, मानसिक अशांति अवश्य ही बनेगी।
वृष :- आर्थिक व्यय, स्वजन कष्ट, विवाद, अस्थिरता व अशांति का वातावरण बना ही रहेगा।
मिथुन :- शुभ कार्य, भूमि हानि, कार्य सिद्धी, लॉटरी-सट्टा से हानि की सम्भावना बनी ही रहेगी।
कर्क :- धन हानि, रोगभय, नौकरी में चिन्ता, राजकार्य, गृहकार्य में व्यवस्था होती ही रहेगी।
सिंह :- कार्य में निराशा, खेती में लाभ तथा शत्रुभय बना ही रहेगा, उद्योग व्यापार से लाभ।
कन्या :- शरीर कष्ट, राजलाभ, व्ययभार बढ़ेगा, दाम्पत्य जीवन असमंजस सा बना रहेगा।
तुला :- चोट-अग्नि भय, धार्मिक कार्य, कष्ट व्यापार में उलझन की स्थिति बनी ही रहेगी।
वृश्चिक :- बाधा, धन लाभ, यात्रा, कष्ट, गृहकार्य, राजकार्य में रुकावट की स्थिति रहेगी।
धनु :- रोगभय, मुकदमें में जीत, मानसिक परेशानी, अपवाद तथा व्यर्थ उलझन बढ़ जायेगी।
मकर :- व्यापार में लाभ, शत्रुभय, धनसुख, कार्यों में सफलता का योग, रुके कार्य बनेंगे।
कुम्भ :- कलह, व्यर्थ खर्च, सफलता प्राप्त, सामाजिक कार्यें में रुकावट का अनुभव होगा।
मीन :- स्वजन सुख, पुत्र चिन्ता, धन हानि, राजकार्य में विलम्ब, परेशानी बढ़ सकती है।
हरियाली तीज के दिन करें इस मंत्र का जाप...मिलेगा मनचाहा वर!
6 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म के सभी त्योहारों में से हरियाली तीज का त्योहार बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है .इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. तो कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए हरियाली तीज का व्रत करती हैं. प्रत्येक वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 7 अगस्त को मनाया जाएगा. हरियाली तीज के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा आराधना की जाती है. इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार कर विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इस दिन सुहागिन महिलाएं आखिर16 श्रृंगार क्यों करती हैं तो चलिए आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं.
दरअसल अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हरियाली तीज सावन के महीने में मनाया जाता है और सावन का महीना हरियाली का प्रतीक होता है. हरियाली तीज के खास अवसर पर सुहागिन महिलाएं सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करती हैं और भगवान सूर्य को जल अर्पित करती हैं. साथ ही 16 श्रृंगार भी करती हैं.
हरियाली तीज के दिन 16 श्रृंगार का महत्व
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं. साथ ही साधक पर अपनी कृपा प्रदान करती है. माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए सुहागिन महिलाएं इस दिन 16 श्रृंगार कर नए वस्त्र धारण करने के साथ पूजा के दौरान माता पार्वती को 16 श्रृंगार का सामान भी अर्पित करती हैं. ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है शायद यही वजह है कि इस दिन 16 श्रृंगार किया जाता है.
करें इस मंत्र का जाप
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं के अलावा कुंवारी लड़कियां भी व्रत करती हैं और माता पार्वती की पूजा आराधना करती हैं. ऐसा करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है इसलिए पूजा के दौरान कुंवारी कन्याओं को कुछ खास मंत्रों का जाप करना चाहिए.
कुंवारी कन्याओं के लिए मंत्र
हे गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया। तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।
भगवान भोले के अभिषेक के लिए इंग्लैंड से आया इत्र...खुशबू से महक उठे आसपास के गांव, बोतलों में भरकर ले गए लोग
6 Aug, 2024 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन, जिसे श्रावण माह के नाम से भी जाना जाता है. जो हिंदू कैलेंडर का सबसे महत्वपूर्ण महीना है. इस दौरान भक्त भगवान शिव की पूजा आराधना करते है. श्रावण माह हिंदुओं, विशेषकर शिव भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है. ऐसी मान्यता है कि यह वह पावन महीना है जब देवों के देव महादेव धरती पर अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए आते हैं.
राजस्थान में ऐसे कई दिव्य मंदिर हैं, जिनकी महिमा का जितना गुणगान किया जाए उतना कम है. जी हां ऐसा ही एक प्राचीन शिव मंदिर चूरू के दुधवाखारा गांव में स्थित है, जहां भोले के अभिषेक के लिए इंग्लैंड से इत्र लाया गया था. इस इत्र की महक से ना सिर्फ दूधवाखारा गांव बल्कि आस पास के गांव भी महक उठे थे. गांव के ही देवेंद्र दाधीच बताते हैं कि जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर 70 साल पहले इस मंदिर को सेठ हजारीमल की पत्नी सरस्वती देवी और उनके दत्तक पुत्र ने बनवाया था. इसकी बनावट हूबहू ताजमहल से मिलती है.
उम्दा कारीगरी का बेहतरीन नमूना
शिव मंदिर में विशेष तौर पर सावन माह में महीने भर धार्मिक आयोजन होते हैं. खास, बात यह है कि पूरी इमारत संगमरमर के पत्थरों से बनाई गई है और उम्दा कारीगरी का ये एक बेहतरीन नमूना है. ग्रामीण देवेंद्र दाधीच बताते हैं कि सरस्वती देवी ने इमारत को बनाने के लिए राजस्थान के बेहतरीन कारीगरों को बुलाया था. इसका नायाब नमूना भी इसके निर्माण में देखने को मिलता है. कारीगरों ने इस इमारत में पत्थरों को जोड़ने के लिए कहीं भी बजरी या सीमेंट काम में नहीं लिया गया है. आने वाले यात्रियों को किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए उसके पास में ही धर्मशाला बनाई गई है.
इंग्लैंड से आया इत्र
मंदिर में शिव की स्थापना के दौरान भगवान भोले का इत्र से अभिषेक किया गया जो इत्र इंग्लैंड से मंगवाया गया था. अभिषेक के दौरान इत्र यहां की नालियों में बह गया, इसे ग्रामीण बोतलों में भर कर ले गए और इत्र की ख़ुशबू आस-पास के गांवो तक फैली और तब से ही सावन माह में विशेष पूजा के लिए यहां दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं
हाथ में क्यों बांधते हैं मौली का धागा? क्या है इसका महत्व?
6 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मौली, जिसे हम कलावा भी कहते हैं. भारतीय संस्कृति में इसका काफी महत्व है. यह एक लाल और पीला धागा होता है, जिसे पूजा के दौरान या शुभ अवसरों पर हाथ में बांधने का प्रचलन है. मौली का महत्व धार्मिक विश्वास से जुड़ा है. इसे बांधने से व्यक्ति की रक्षा, सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि की कामना की जाती है. यह रक्षासूत्र का प्रतीक भी है, जो हर व्यक्ति को जीवन की चुनौतियों से सुरक्षित रखने का काम करता है. पूजा के समय मौली का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और तंत्र-मंत्र में भी किया जाता है.
मौली पहनने का महत्व
लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड में स्थित के स्थानीय निवासी ज्योतिषी अजय कोठारी ने बताया कि मौली पहनना भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है. इसे पूजा के समय या धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान हाथ में बांधना एक पारंपरिक रिवाज है. मौली को पहनने से व्यक्ति को सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह रक्षासूत्र के रूप में कार्य करता है, जो व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा और विपरीत परिस्थितियों से बचाने का प्रतीक है. मौली पहनने से मन को शांति मिलती है और जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है. इसके अलावा, यह एक प्रकार की श्रद्धा और भक्ति का भी प्रतीक है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने में सहायक होता है.
मौली पहनने की विधि
मौली पहनने की विधि सरल और धार्मिक रीति-रिवाजों से भरी हुई है. पूजा के दौरान पहले हाथों को अच्छे से धोकर साफ करें. मौली को पूजा की थाली में रखें और देवी-देवता का ध्यानपूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें आहुति दें. मौली को तीन बार घेरते हुए, मंत्रों का उच्चारण करते हुए अपने दाहिने हाथ में बांधें. इसे बांधते समय यह ध्यान रखें कि मौली को सही तरह से बांधें और इसे पूरी श्रद्धा से पहनें. यह मान्यता है कि मौली के साथ सही विधि से की गई पूजा और मंत्र जाप से जीवन में सुख-समृद्धि और सुरक्षा प्राप्त होती है. शास्त्रों के अनुसार पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए. वहीं विवाहित महिलाओं को बाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए.
चमत्कारी मूर्ति वाला मंदिर! बदलते हैं देवी के चेहरे के भाव, मन्नत मांगने के लिए लगती है लाइन
6 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जादू और चमत्कार की कई कहानी आपने सुनी होंगी. लेकिन हम आज आपके लिए सच में मौजूद चमत्कारी मूर्ति की कहानी लेकर आए हैं. यह नजारा देखने के लिए मिलता है मध्य प्रदेश के सतना के भटनावर में. यहां देवी की एक प्रतिमा मौजूद है. खास इसलिए क्योंकि इस मूर्ति की आंखे घूमती हैं. ऐसा सिर्फ 1-2 बार नहीं बल्कि हर रोज होता है. सूर्य की दिशा जैसे ही बदलती है, मूर्ति के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं. इसी रहस्यमयी मूर्ति की कहानी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
मध्य प्रदेश में मौजूद है जादुई मूर्ति
भटनवारा देवी की मौर्यकालीन मूर्ति का रहस्य किसी जादू से कम नहीं है. इस प्रतिमा को देवी मां कालका कलकत्ता की देवी बहन कालिका का स्वरूप माना जाता है. मू्र्ति अलग है क्योंकि इसकी आंखे घूमती हैं. चेहरे के भाव बदलते हैं. इसे 700 साल पुराना बताया जाता है. कभी देवी गुस्से में तो, कभी खुश दिखाई देती हैं. पहले प्रतिमा नदी किनारे थी. फिर इसका स्थान बदला गया.
राजा को मिली थी मूर्ति
भटनावर के राजा हुआ करते थे. उनका नाम था राजा मनक सिंह. उन्हें ही यह मूर्ति करारी नदी के किनारे मिली थी. चोरों ने मिलकर इस मूर्ति को चुराने की कोशिश की थी. लेकिन वो असफल रहे थे. तब राजा ने प्रतिमा रखने के लिए नदी किनारे एक मंदिर बनवाया. लेकिन मंदिर में मूर्ति नहीं आ पाई. इसके बाद मूर्ति को उसी जगह पर रहने दिया गया, जहां से वो मिली थी. 70 के दशक में मूर्ति को नए मंदिर में रखा गया.
हर दिन 3 बार बदलते हैं नेत्र
इस मंदिर में मौजूद कालका मां हर दिन तीन बार अपने नेत्र की दिशा बदलती है. सूर्य उदय होता है तो आंखे पूर्व में होती हैं. फिर समय के साथ बीच में आ जाती है और सूर्यास्त के समय आंखे पश्चिम दिशा की ओर रहती है. सालों से ऐसा हर दिन होता आ रहा है.
मन्नत पूरी करने वाला मंदिर
यूं तो हर मंदिर में भीड़ लगती है. लेकिन कालका मईया की अनोखी मूर्ति के लिए दूर-दूर से आते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में प्रार्थना कर मांगता है, उसकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है.
नवरात्रि पर लगता है मेला
नवरात्रि जैसे मौकों पर इस मंदिर में मेला लगता है. दूर-दूर से लोग आते हैं. भक्तों का कहना है कि इस मंदिर में पूजा कर जो भी मांगा जाता है, वो जरूर मिलता है. मेले अलावा भंडारो के लिए भी मंदिर प्रसिद्ध है. दूर-दूर से लोग यहां पर आकर भंडारे करते हैं. हर दिन कुछ न कुछ बांटा जाता है.
अल्मोड़ा में भी है ऐसा अनोखा मंदिर
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्याही देवी मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है. सतना ही तरह इस मंदिर की भी बहुत मान्यता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में भी देवी दिनभर में 3 बार चेहरे के भाव बदलती हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (06 अगस्त 2024)
6 Aug, 2024 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- यात्रा भय, कष्ट, व्यापार बाधा, लाभ, पारिवारिक समस्या उलझती ही रहेगी।
वृष :- शत्रुभय, रोग, स्वजन सुख, लाभ, शिक्षा व लेखन कार्य में सफलता, प्रगति का योग है।
मिथुन :- वाहन भय, यात्रा कष्ट, हानि, अस्थिरता, अशांति का वातावरण रहेगा, ध्यान अवश्य रखें।
कर्क :- सफलता, उन्नति, शुभ कार्य, विवाद, राजकार्य, मामले-मुकदमें में स्थिति कष्टप्रद रहेगी।
सिंह :- शरीर कष्ट, अपव्यय, कार्य में सफलता, आर्थिक सुधार के कार्य अवश्य होंगे।
कन्या :- खर्च, विवाद, स्त्री कष्ट, विद्या लाभ, धीरे-धीरे सुधार के साथ अर्थ लाभ अवश्य होगा।
तुला :- यात्रा से हानि, राजलाभ, शरीर कष्ट, खर्च की यात्रा कष्टदायक होगी।
वृश्चिक :- कार्यवृत्ति से लाभ, यात्रा, सम्पत्ति लाभ, व्यापार में सुधार होगा, खर्च होगा।
धनु :- अल्प लाभ, चोर-अग्नि भय, मानसिक परेशानी, अपवाद, उलझन का सामना करना पड़ेगा।
मकर :- शत्रु से हानि, अपव्यय, शारीरिक सुख में कमी, कभी-कभी कुछ व्यवस्था तंग करेगी।
कुम्भ :- शुभ व्यय, संतान सुख, कार्य में सफलता, उत्साह की वृद्धि होगी, रुके कार्य बन जायेंगे।
मीन :- पदोन्नति, राजभय, न्याय लाभ, धन हानि, अधिकारियों से मन-मुटाव अवश्य बनेगा।
सावन में भगवान शिव को चढ़ाएं यह फूल, मिलेगा महादेव का आशीर्वाद
5 Aug, 2024 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन में भगवान शिव को बहुत सी वस्तुओं के साथ फूल चढ़ाना भी शुभ माना जाता है. इनमें धतूरे का फूल बहुत शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि समुंद्र मंथन के समय विष पीने के बाद इस फूल की उत्पत्ति भगवान शिव की छाती से हुई थी. इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है.
सावन के समय महादेव को कनेर का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है. इन फूलों को सोमवार के अलावा अन्य किसी भी दिन में अर्पित किया जा सकता है. इन फूलों को शिवलिंग पर अर्पित करने पर भगवान शिव प्रसन्न होते है. यह फूल पीले, सफेद और लाल रंग के होते है.भगवान शिव को परिजात का फूल भी बहुत प्रिय है. ऐसा माना जाता है कि कृष्ण अवतार के समय भगवान विष्णु इस फूल को स्वयं धरती पर लेकर आए थे. सावन महीने के दौरान इस फूल को शिवलिंग पर चढ़ाने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते है.शमी का पौधा भगवान शिव को बहुत प्रिय माना जाता है. वहीं, इसके फूल भी भगवान शिव को बहुत प्रिय माने जाते है. शिवलिंग पर शमी के फूल चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है. इससे भगवान शिव प्रसन्न होते है. यह फूल पीले और गुलाबी रंग के होते है. इसे चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है.भगवान शिव को आंकड़े का सफेद फूल बहुत प्रिय है. आंकड़े के फूल नीले और सफेद रंग के होते है. महादेव की पूजा के समय सफेद आंकड़े के फूल का इस्तेमाल किया जाता है. इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसे आंकड़े के अलावा, अर्क, अकौआ और मदार के नाम से भी जाना जाता है.
सेहत का खजाना...पापों से दिलाता है मुक्ति! धार्मिक और आयुर्वेदिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है यह पौधा
5 Aug, 2024 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इम्यून सिस्टम मजबूत करने में गिलोय सबसे महत्वपूर्ण पौधा है. यह लिवर की बीमारियों में असरदार जड़ी-बूटी है. आयुर्वेदिक डॉक्टर के अनुसार गिलोय का पौधा हर घर में होना चाहिए. ग्रह नक्षत्र के हिसाब से भी यह पौधा काफी शुभ माना जाता है.
मानसून के दिनों में गिलोय का पौधा आसानी से उग जाता है. धार्मिक और आध्यात्मिक लाभों के अलावा, गिलोय के आयुर्वेदिक फायदे भी हैं जैसे कि प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना, डिटॉक्सिफिकेशन और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना.
घर में इस तरह आसानी से लगाए गिलोय का पौधा
नर्सरी प्रबंधक रमेश कुमार ने बताया कि गिलोय के पौधे को लगाने के लिए किसी भी गिलोय के पौधे से तना काट लीजिए और उसमें एक-एक हाथ की लंबाई के बराबर कुछ डंडियों को कैंची या चाकू और हाशिये से तिरछे आकार में काट दें. 15 से 20 दिनों के अंदर इसमें नई पत्तियां फूट जाएगी और यह बहुवर्षीय बेल के रूप में लगातार विकसित होती रहेगी. जून और जुलाई महीने में लगाई गई इसकी कटिंग जल्दी उगती है.
गिलोय के लाभ
गिलोय एक एंटी बैक्टीरियल, एंटी एलर्जिक, एंटी डायबिटिक और दर्द निवारक है. इसके जूस, पाउडर व टैबलेट की इन दिनों बाजार में भरमार है. आटो इम्यून डिसऑर्डर, बुखार, डायबिटीज, लिवर व पेशाब से जुड़ी समस्याओं में इसकी दवा असरदार है. गिलोय में फाइबर, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, पोटेशियम, आयरन और कैल्शियम पाया जाता है.
गिलोय का सबसे बढ़िया इस्तेमाल इसकी डंडी या तने को काटकर कूट लें और उसका रस निकालकर इस्तेमाल करें. लेकिन अगर इस रूप में उपलब्ध न हो तो इसके जूस और पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. बाजार में गिलोय से बना अमृतारिष्ट पाउडर भी आता है.
गिलोय के धार्मिक फायदे
1. पापों से मुक्ति: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गिलोय का सेवन पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि के लिए लाभकारी माना जाता है.
2. धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग: गिलोय का उपयोग विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा विधियों में भी किया जाता है. इसे देवी-देवताओं की पूजा में चढ़ाया जाता है और इसे शुभ माना जाता है.
3. आध्यात्मिक उन्नति: गिलोय का सेवन मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक माना जाता है, जिससे व्यक्ति का
कालसर्प दोष से बुरी तरह हैं परेशान, इस नागपंचमी करें ये खास उपाय, जल्द मिलेगी राहत, बनने लगेंगे हर काम!
5 Aug, 2024 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिन्दू धर्म में सांप को पूजनीय माना गया है. सांप भगवान शंकर के गले का श्रृंगार माना जाता है. नाग देवता की पूजा के लिए नाग पंचमी का दिन शुभ माना जाता है और इस दिन लोग व्रत रखने के साथ ही विधि विधान से पूजा करते हैं. जिसका पुण्य फल जातक को मिलता है. वहीं यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है तो इसका निदान भी इस दिन पूजा के साथ किए गए कुछ उपायों से किया जा सकता है. आपको बता दें कि, जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है उसे जीवनभर कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में यदि आप इससे पीड़ित हैं और इससे मुक्ति चाहते हैं तो कुछ उपाय आप कर सकते हैं, आइए जानते हैं इनके बारे में भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
नाग पंचमी शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि आरंभ: 09 अगस्त 2024, शुक्रवार की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पंचमी तिथि समापन: 10 अगस्त 2024, शनिवार की तड़के 03 बजकर 14 मिनट तक
कब है पर्व: उदया तिथि के अनुसार, नाग पंचमी का पर्व शुक्रवार, 09 अगस्त को मनाया जाएगा.
काल सर्प दोष के संकेत
– यदि आपकी कुंडली में काल सर्प दोष है तो आपको लगातार बुरे सपने आते हैं.
– बार-बार सपने में सांप दिखाई देते हैं और ऐसे में व्यक्ति को डर भी सताने लगता है.
– कड़ी मेहनत करने के बावजूद उसका फल व्यक्ति को नहीं मिलता.
– इस दोष के कारण परिवार और कार्यक्षेत्र में भी विवाद की स्थिति बनी रहती है.
– जिसकी कुंडली में कालसर्प दोष होता है उसके शत्रुओं की संख्या बढ़ती रहती है.
इन उपायों से दोष होगा दूर
– कालसर्प दोष होने पर नाग पंचमी के दिन भगवान शिव का पूजन करें.
– पूजा के दौरान महामृत्युंजय का जाप जरूर करें.
– इस दिन गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें.
– किसी पवित्र नदी में चांदी या तांबे से बना नाग-नागिन का जोड़ा प्रवाहित करें.
– कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में कालसर्प दोष की पूजा करवाएं.
हजारों साल पुराना है मां संकटादेवी का यह मंदिर, श्री कष्ण ने की थी स्थापना, जानें मान्यता
5 Aug, 2024 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
लखीमपुर खीरी शहर का पौराणिक संकटा देवी मंदिर करीब एक हजार साल से अधिक पुराना है. शहर के बीच स्थित यह मंदिर देवी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है. शहर के चार शक्ति पीठों में संकटा देवी मंदिर का प्रमुख स्थान है. इस मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा है. इनके नाम पर ही शहर का नाम भी लक्ष्मीपुर हुआ, जो बाद में लखीमपुर कहलाया.
मंदिर का इतिहास
मंदिर की स्थापना रुकमणी की इच्छा पर पशुपतिनाथ जाते समय महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने की थी. पौराणिक मंदिर होने के कारण इसकी वास्तुकला भी एक हजार साल पुराने मंदिरों जैसी है. इसका विशाल परिसर भक्तों के बैठने के लिए पर्याप्त है. मां संकटा देवी का प्राचीन मंदिर न केवल लखीमपुर खीरी, बल्कि आसपास के जिलों के लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है. पूरे नवरात्र यहां मेला लगता है. संकटादेवी मंदिर जहां स्थित है उस मोहल्ले का नाम भी संकटादेवी है. लोगों की इस प्राचीन देवी प्रतिमा में गहन आस्था है. मान्यता है कि मां संकटादेवी की उपासना करने से सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. मां संकटादेवी की आराधना करने के बाद यहां लोग शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं. विवाह के बाद नव दंपत्ति को मां के दर्शन के बाद ही घर में प्रवेश कराया जाता है.
भगवान श्रीकृष्ण ने की थी मां संकटादेवी की स्थापना
मां संकटादेवी की यह प्राचीन प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण ने स्थापित की थी. महाभारत युद्ध के बाद भगवान कृष्ण, रुकमणि और पांडव पशुपतिनाथ दर्शन को जाते समय इसी रास्ते से होकर गुजरे थे. यहां के रमणीक वन क्षेत्र को देख रुकमणि ने यहीं पर कुछ समय बिताने की इच्छा जताई तो भगवान श्रीकृष्ण उन्हें यहां प्रवास की अनुमति देकर पांडवों के साथ पशुपतिनाथ दर्शन के लिए नेपाल रवाना हो गए. लौटते समय भगवान कृष्ण ने महालक्ष्मी की पाषाण प्रतिमा बनाकर यहां स्थापित की और पांडवों के साथ भगवान कृष्ण ने भी उनकी विधिवत पूजा अर्चना की थी.