व्यापार
दुनिया के 60 देशों में हो रहा भारतीय व्हिस्की का निर्यात, अब GI दर्जे की मांग
17 Jun, 2025 04:15 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Indian Whisky Dominates Global Market: दुनिया में सबसे ज्यादा पी जाने वाली व्हिस्की ब्रांड्स में अब भारत का दबदबा है. दुनिया की 20 सबसे ज्यादा खपत वाली व्हिस्की में से आधे से ज्यादा ब्रांड भारत के हैं. टॉप-3 ब्रांड्स मैकडॉवेल्स, रॉयल स्टैग और इम्पीरियल ब्लू सभी भारतीय हैं. इसके अलावा, दुनिया की 18 सबसे तेजी से बढ़ने वाली व्हिस्की ब्रांड्स में से 8 भारत से हैं. ये आंकड़े Drinks International की रिपोर्ट में सामने आए हैं. जिससे पता चलता है कि भारत न सिर्फ घरेलू बाजार में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी व्हिस्की का बड़ा खिलाड़ी बन गया है.
भारत में व्हिस्की की मांग सबसे ज्यादा
भारत में स्पिरिट्स यानी शराब के कुल बाजार का लगभग दो-तिहाई हिस्सा व्हिस्की का है. हर साल 400 मिलियन से ज्यादा केस की बिक्री होती है. भारत में अभी भी 60 प्रतिशत शराब गैर-प्रीमियम कैटेगरी में बिकती है और लोग धीरे-धीरे देसी शराब से ब्रांडेड एंट्री लेवल व्हिस्की की तरफ शिफ्ट कर रहे हैं. यही कारण है कि भारत में व्हिस्की की खपत लगातार बढ़ रही है.
Brand
Owner
Category
2023 Volume (Million 9L Cases)
2024 Volume (Million 9L Cases)
Growth %
McDowell’s
Diageo
Indian Whiskey
31.4
32.2
3%
Royal Stag
Pernod Ricard
Indian Whiskey
27.9
31.0
11%
Imperial Blue
Pernod Ricard
Indian Whiskey
22.8
22.9
0%
Johnnie Walker
Diageo
Scotch
22.0
21.6
-2%
Officer’s Choice
Allied Blenders
Indian Whiskey
23.4
21.3
-9%
सोर्स- Drinks International
विदेशी कंपनियों की पहली पसंद बना भारत
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अगले पांच सालों में लगभग 10 करोड़ लोग कानूनी रूप से शराब पीने की उम्र में पहुंच जाएंगे. यही वजह है कि दुनिया की बड़ी शराब कंपनियां जैसे डियाजियो और पर्नोड रिकार्ड, भारत को अपने टॉप-3 प्राथमिकता वालों बाजारों में गिनते हैं. डियाजियो के पास 34 और पर्नोड रिकार्ड के पास 21 ऐसे ब्रांड हैं जिनकी सालाना बिक्री 10 लाख केस से ज्यादा है.
स्थानीय कंपनियों की भी मजबूत पकड़
विदेशी कंपनियों के अलावा भारतीय ब्रांड भी तेजी से बढ़ रहे हैं. रैडिको खेतान के पास 8 मिलियनयर ब्रांड्स हैं जिनमें मैजिक मोमेंट्स वोडका और 8PM व्हिस्की प्रमुख हैं.इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक थोड़ी सी भी ग्रोथ भारत जैसे बड़े बाजार में भारी वॉल्यूम में बदल जाती है. हालांकि कंपनियां अब ज्यादा मुनाफे के लिए प्रीमियम सेगमेंट की ओर ध्यान दे रही हैं.
UK-India ट्रेड डील से बढ़ेगा कंप्टीशन
हाल ही में भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच हुई ट्रेड डील से भारत में स्कॉच की कीमतें कम हो सकती हैं. इससे भारतीय ब्रांड्स के सामने कंप्टीशन बढ़ेगा. डियाजियो के सीएफओ निक झांगियानी ने कहा कि भारत कंपनी के लिए बेहद अहम बाजार है और टैक्स में कमी से वॉल्यूम और टॉपलाइन ग्रोथ दोनों को फायदा होगा.
नौकरी की दुनिया का नया अध्याय: AI-पावर्ड हायरिंग टूल्स ला रहे हैं पारदर्शिता और दक्षता
17 Jun, 2025 04:04 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
VOLKAI: भारत का जॉब मार्केट हमेशा से ही अपार प्रतिभा और विकट चुनौतियों का एक जटिल जाल रहा है. कई वर्षों से, पारंपरिक हायरिंग प्रक्रिया, जिसमें अक्सर मैन्युअल स्क्रीनिंग और सीमित पहुंच होती है, देश के तेज आर्थिक विकास और इसकी बढ़ती युवा आबादी के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष करती रही है. लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा ड्रिवेन एक शांत क्रांति चल रही है और VolkAI जैसी कंपनियां भारत में टैलेंट को अवसर से जोड़ने के तरीके को नया रूप देने में सबसे आगे हैं.
इस बदलाव के मूल में यह समझ है कि नियुक्ति का मतलब सिर्फ रिक्तियों को भरना नहीं है. इसका मतलब है करियर बनाना, ग्रोथ को बढ़ावा देना और अंततः राष्ट्र की प्रगति में योगदान देना है. अतीत की अक्षमताएं – अंतहीन रिज्यूमे का ढेर, सब्जेक्टिव इंटरव्यू, दूरदराज के कोनों में छिपे हुए टैलेंट की खोज करने में कठिनाई को अब स्मार्ट तकनीक द्वारा व्यवस्थित रूप से आसान बनाया जा रहा है.
VolkAI के पीछे के माइंड और कैरोसॉफ्ट एआई सॉल्यूशंस लिमिटेड के निदेशक संतोष कुशावाहा इस बदलाव पर एक सम्मोहक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं. वे बताते हैं कि टियर-2 जड़ों से शुरुआत करने के बाद, कुशावाहा प्रमुख शहरी केंद्रों से परे अनगिनत व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली आकांक्षाओं और बाधाओं को अच्छी तरह समझते हैं. VolkAI के लिए उनका नजरिया मानवीय निर्णय को एल्गोरिदम से बदलने के बारे में नहीं है, बल्कि इसे बढ़ाने, प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और इसमें शामिल सभी लोगों के लिए कुशल बनाने के बारे में है. वह अक्सर इस बात पर जोर देते हैं कि एआई को ‘मानव लाभ के रूप में देखा जाना चाहिए, रिप्लेसमेंट के रूप में नहीं’. यह फिलॉसफी VolkAI के एप्रोच में गहराई से शामिल है.
विकसित होते लैंडस्केप को नेविगेट करना
तो, AI-ड्रिवेन प्लेटफॉर्म वास्तव में क्या ला रहे हैं जो इतना परिवर्तनकारी साबित हो रहा है? संतोष कुशावाहा कहते हैं कि सबसे पहले स्किल मिसमैच से निपटना है. यह एक ऐसी समस्या है, जो हर समय चुनौती बनती है. एक विशाल टैलेंट पूल के बावजूद बिजनेस अक्सर नौकरी के लिए तैयार टैलेंट की कमी पर दुख व्यक्त करते हैं.
AI प्लेटफॉर्म बुद्धिमानी से टैलेंट सेट का विश्लेषण कर सकते हैं और गैप की पहचान कर सकते हैं. यहां तक कि व्यक्तिगत सीखने के रास्ते भी सुझा सकते हैं. यह सामान्य योग्यताओं से आगे बढ़कर नौकरी चाहने वालों को यह समझने में मदद करता है कि उन्हें क्या सीखने की जरूरत है और नियोक्ताओं को वह सटीक स्पेशलिटी मिलती है जिसकी उन्हें आवश्यकता है.
दूसरा, भर्ती के शुरुआती फेज को सुव्यवस्थित करना. भारत में आवेदनों की विशाल मात्रा भारी पड़ सकती है. AI शुरुआती स्क्रीनिंग को ऑटोमैटिक कर सकता है. ये ऑब्जेक्टिव क्राइटेरिया के आधार पर उम्मीदवारों को फिल्टर कर सकता है, ह्यूमन रिक्रूटर को गहन जुड़ाव और कल्चरल फिट वैल्यूएशन जैसे अधिक रणनीतिक कामों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए फ्री कर सकता है. यह कोल्ड ऑटोमेशन के बारे में नहीं है, बल्कि यह उपयोगी काम लिए अधिक स्पेस बनाने के बारे में है.
तीसरा, अवसरों तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाना. VolkAI जैसे प्लेटफॉर्म का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव भौगोलिक विभाजन को पाटने की उनकी क्षमता है. ये प्लेटफॉर्म AI-ड्रिवेन वर्चुअल इंटरव्यू प्रैक्टिस, कॉम्युनिकेशन फीडबैक, और स्कील एसेसमेंट ऑफर करते हैं. वे टियर-2 और टियर-3 शहरों में लोगों के लिए खेल के मैदान को एक समान बनाते हैं, जिनके पास पारंपरिक कैरियर कंसल्टेंसी या कोचिंग तक पहुंच नहीं हो सकती है. यह सुनिश्चित करता है कि टैलेंट, चाहे वह कहीं भी हो उसे उचित अवसर मिले.
बेहतर मैच को बढ़ावा देना और टर्नओवर को कम करना
एक खराब नियुक्ति न केवल आर्थिक रूप से बल्कि टीम के मनोबल और प्रोडक्टिविटी के मामले में भी महंगी पड़ती है. डेटा प्वाइंट के एक व्यापक रेंज का विश्लेषण करने की AI की क्षमता- वर्चुअल बातचीत में पहचाने गए व्यवहार संबंधी आदतों से लेकर अनुभव की अधिक समझ तक – एक अधिक कम्पैटिबल पेयर को चुन सकती है. इससे कर्मचारी के करियर ट्रेजेक्टरी और कंपनी की स्थिरता दोनों को फायदा होता है.
AI की दुनिया में ह्यूमन टच
कुशावाहा के अनुसार, हायरिंग में AI की सफलता एक बंजर, ऑटोमेटेड वातावरण बनाने के बारे में नहीं है. बल्कि, यह लोगों को सशक्त बनाने के बारे में है. नौकरी चाहने वालों के लिए खुद को प्रिपेयर, प्रैक्टिस और प्रजेंट करने के लिए अधिक सुलभ उपकरण के बारे में है. रिक्रूटर के लिए इसका अर्थ है, होनहार उम्मीदवारों के साथ वास्तविक रूप से जुड़ने, उनकी प्रेरणाओं को समझने और स्थायी संबंध बनाने के लिए अधिक समय मिलना.
उनका कहना है कि जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, अपने डेमोग्राफी डिविडेंड को काम में लाने की इसकी क्षमता काफी हद तक रोजगार परिदृश्य पर निर्भर करेगी जो कि गतिशील, निष्पक्ष और दूरदर्शी हो. VolkAI के विचारशील दृष्टिकोण से एआई-ड्रिवेन हायरिंग प्लेटफॉर्म केवल एक टेक्नोलॉजी अपग्रेड नहीं है. यह पूरे देश में रोजगार के लिए अधिक कुशल, न्यायसंगत और अंततः अधिक मानव-केंद्रित भविष्य के निर्माण में एक महत्वपूर्ण कॉम्पोनेंट है.
खुल्ले की समस्या खत्म! अब ATM से ज्यादा मिलेंगे 100 और 200 के नोट, आरबीआई ने दिया बैंकों को निर्देश
17 Jun, 2025 10:05 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंकों के लिए एक नया गाइडलाइन जारी की थ. इस गाइडलाइन के तहत ATM से अब 500 रुपये के नोट कम और 100 व 200 रुपये के नोट ज्यादा मिलेंगे. RBI चाहता है कि 30 सितंबर 2025 तक देश के 75% ATM में 100 या 200 रुपये के नोट निकलें. अभी तक बैंकों ने इस लक्ष्य को लगभग पूरा कर लिया है, क्योंकि 73% ATM पहले से ही ऐसा कर रहे हैं. यह जानकारी CMS इन्फोसिस्टम्स से मिली. CMS इन्फोसिस्टम्स देश के 2,15,000 ATM में से 73,000 ATM को संभालती है.
क्या हैं कारण
पिछले साल दिसंबर 2024 में सिर्फ 65% ATM से 100 और 200 रुपये के नोट निकल रहे थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 73% हो गई है. इसका मतलब है कि बैंक RBI के नियम को गंभीरता से लागू कर रहे हैं. ET के हवाले से CMS इन्फोसिस्टम्स के प्रेसिडेंट अनुष राघवन ने बताया कि भारत में 60% खर्च अभी भी नकद में होता है. खासकर छोटे शहरों और गांवों में लोग रोजमर्रा के खर्च के लिए 100 और 200 रुपये के नोट ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. इसलिए इन नोटों की उपलब्धता बढ़ाना जरूरी है.
RBI ने अप्रैल में बैंकों को दिया था आदेश
RBI ने अप्रैल 2025 में बैंकों को यह आदेश दिया था कि वे ATM में 100 और 200 रुपये के नोट डालें, ताकि लोगों को छोटे नोट आसानी से मिल सकें. इस नियम के मुताबिक, 30 सितंबर 2025 तक 75% ATM और 31 मार्च 2026 तक 90% ATM में ये नोट उपलब्ध होने चाहिए. इससे लोगों को छोटे-मोटे लेनदेन में आसानी होगी, जैसे कि दुकानों में खरीदारी, बस का किराया या अन्य छोटे खर्च.
नकद लेनदेन में नहीं आएगी कोई परेशानी
इस बदलाव का असर यह है कि अब ATM से 500 रुपये के नोट कम निकल रहे हैं. इसका कारण यह है कि ATM में जगह सीमित होती है और अगर 100 और 200 रुपये के नोट ज्यादा डाले जाएंगे तो बड़े नोटों की जगह कम हो जाएगी. यह कदम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए उठाया गया है ताकि छोटे नोट आसानी से उपलब्ध हों और नकद लेनदेन में कोई परेशानी न आए.
बंद नहीं होगा 500 का नोट
सोशल मीडिया पर कुछ लोग गलत खबर फैला रहे हैं कि RBI मार्च 2026 तक ₹500 का नोट बंद कर देगा. लेकिन यह पूरी तरह गलत है. RBI ने ऐसा कोई ऐलान नहीं किया है. ₹500 का नोट अभी भी पूरी तरह वैध है और चलन में रहेगा. ऐसी अफवाहों पर भरोसा न करें. हमेशा RBI या किसी सरकारी स्रोत से खबर की पुष्टि करें.
तेल आयात पर निर्भरता घटेगी: अंडमान में विशाल भंडार के संकेत, विदेशी मुद्रा पर दबाव होगा कम
17 Jun, 2025 10:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Crude Oil discovery: भारत के हाथ जल्द ही एक जैकपॉट लग सकता है. दरअसल अंडमान सागर में 184,440 करोड़ लीटर कच्चे तेल का विशाल भंडार मिल सकता है. यह खोज इतनी बड़ी हो सकती है कि यह गुयाना को भी टक्कर दे सकता है. बड़े पैमाने पर भारत की ओर से की जाने वाली इस तेल की खोज की बात खुद केंद्रीय पेट्रॉलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक इंटरव्यू में कही. तेल भंडार के मिलने पर भारत की अर्थव्यवस्था को नए पंख लग सकते हैं. साथ ही ये ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक सुनहरा मौका साबित हो सकता है.
गुयाना जैसे खोज का सपना
केंद्रीय मंत्री पुरी ने बताया कि अंडमान सागर में गुयाना जैसे बड़े तेल भंडार का खजाना छिपा हो सकता है. गुयाना में एक्सॉनमोबिल, हेस कॉरपोरेशन और सीएनओओसी ने 11.6 अरब बैरल तेल की खोज की थी, जिसने उस छोटे से देश को दुनिया के टॉप 20 तेल भंडार वाले देशों में ला खड़ा किया. भारत भी अब इसी राह पर है. अगर ड्रिलिंग कामयाब रही, तो भारत की अर्थव्यवस्था को 3.7 लाख करोड़ डॉलर से 20 लाख करोड़ तक ले जाने में यह खोज बड़ी भूमिका निभा सकती है.
तेल की खोज नहीं है आसान
केंद्रीय मंत्री का कहना है कि तेल की खोज कोई आसान काम नहीं है. इसमें करोड़ों रुपये की लागत आती है. गुयाना में 43-44 कुएँ खोदे गए, जिनमें से प्रत्येक की लागत 10 करोड़ डॉलर थी. उसे करीब 41वें कुएं में जाकर तेल मिला. ऐसे में भारत की सरकारी कंपनी ONGC भी पूरी ताकत से जुटी है. इस साल ONGC ने 541 कुएं खोदे, जो 37 साल में सबसे ज्यादा हैं. इनमें 103 खोजी और 438 डेवलपमेंट कुएं शामिल हैं. कंपनी ने इस काम में 37,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
भारत है तेल का सबसे बड़ा खरीदार
भारत अपनी तेल जरूरत का 85% आयात करता है और यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. भारत से आगे सिर्फ अमेरिका और चीन हैं. अभी भारत का तेल उत्पादन असम, गुजरात, राजस्थान, मुंबई हाई और कृष्णा-गोदावरी बेसिन में हो रहा है. देश ने विशाखापत्तनम, मैंगलोर और पादुर में तेल भंडार बनाए हैं, और ओडिशा व राजस्थान में नए भंडार की योजना है. अंडमान सागर में तेल की बड़ी खोज भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सकती है. यह खोज न सिर्फ आयात पर निर्भरता घटाएगी, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी रॉकेट की रफ्तार देगी.
खाद्य सुरक्षा पर मंडराया खतरा: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला टूटी तो अनाज और उर्वरक होंगे महंगे, किसानों की चिंता बढ़ी
17 Jun, 2025 09:48 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ईरान और इजराइल के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है. रविवार को दोनों देशों ने एक-दूसरे पर ताजा हमले किए, जिसमें कई आम लोग मारे गए और घायल हुए. इस घटना ने पूरे क्षेत्र में बड़े युद्ध की आशंका को और गहरा कर दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वो चाहते हैं कि दोनों देश आपस में कोई समझौता कर लें, लेकिन कई बार देशों को पहले लड़ना पड़ता है. दूसरी तरफ, ईरान ने कतर और ओमान के जरिए साफ कर दिया कि जब तक इजराइल हमले करता रहेगा, वो किसी सीजफायर की बात नहीं मानेगा.
इस तनाव का भारत पर तुरंत कोई बड़ा आर्थिक असर तो नहीं दिख रहा, लेकिन अगर ये जंग लंबी खींची और इसमें मिडिल ईस्ट के दूसरे देश भी शामिल हो गए तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका भारी असर पड़ सकता है. एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया कि सरकार इस स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है. तेल की कीमतों में उछाल, शिपिंग लागत में बढ़ोतरी, विदेशी पूंजी का बहिर्वाह और रुपये की कीमत में गिरावट जैसे खतरे सामने आ सकते हैं. फिलहाल स्थिति को देखते हुए वित्त मंत्रालय और रेगुलेटर्स पूरी सतर्कता बरत रहे हैं.
लेकिन अगर ये जंग और भड़की और इसमें हूती जैसे संगठन या दूसरे देश भी कूद पड़े तो भारत की अर्थव्यवस्था और कारोबार को कई तरह से नुकसान हो सकता है. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं.
तेल की कीमतें आसमान छूने लगेगी
सबसे बड़ा खतरा है तेल की कीमतों में उछाल. भारत अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात से पूरा करता है. अगर ईरान-इजराइल जंग की वजह से तेल की कीमतें बढ़ीं, तो इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट कहती है कि सरकार को तेल आपूर्ति के जोखिमों का आकलन करना चाहिए, तेल के नए स्रोत तलाशने चाहिए और रणनीतिक तेल भंडार को सुनिश्चित करना चाहिए.
इराक के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री फुआद हुसैन ने चेतावनी दी है कि अगर जंग बढ़ी तो तेल की कीमतें 200-300 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं. खासकर अगर होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे अहम रास्ते बंद हो गए तो बाजार से रोजाना 50 लाख बैरल तेल गायब हो सकता है. ये तेल ज्यादातर खाड़ी देशों और इराक से आता है. शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड की कीमत 7% उछलकर 74.23 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. एक समय तो ये 13% से ज्यादा बढ़कर 78.50 डॉलर तक पहुंच गया था, जो जनवरी के बाद सबसे ऊंचा स्तर है.
भारत पर क्या होगा असर?
तेल की कीमतों में उछाल से भारत का आयात बिल बढ़ेगा, जिससे सरकार के पास सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए कम पैसा बचेगा. ईंधन और उर्वरक सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा, जिससे चालू खाता घाटा (करेंट अकाउंट डेफिसिट) बढ़ेगा और रुपये की कीमत कमजोर होगी. इससे जीडीपी ग्रोथ को भी चोट पहुंचेगी. EY इंडिया के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डीके श्रीवास्तव के मुताबिक, तेल की कीमत में हर 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत की जीडीपी ग्रोथ 0.3% कम हो सकती है और मुद्रास्फीति (CPI) में 0.4% की बढ़ोतरी हो सकती है.
हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने के बाद ब्याज दरों में कटौती की थी और इस साल के अंत में और कटौती की उम्मीद थी लेकिन अगर तेल की कीमतें बढ़ीं, तो मुद्रास्फीति फिर से भड़क सकती है. इससे उपभोक्ता मांग कम होगी, लोग कम खर्च करेंगे और कारोबार पर इसका खासा असर पड़ेगा.
कॉरपोरेट्स पर क्या असर पड़ेगा ?
तेल की कीमतों में उछाल का असर सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि कंपनियों पर भी पड़ेगा. आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के फंडामेंटल रिसर्च हेड नरेंद्र सोलंकी ने कहा कि अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि असर कितना होगा. अगर कीमतें जल्दी सामान्य हुईं, तो कंपनियों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन अगर जंग लंबी खींची और तेल की कीमतें ऊंची रहीं तो कॉरपोरेट्स की कमाई पर भारी दबाव पड़ेगा.
ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को सबसे ज्यादा टेंशन
ईरान और इजराइल की जंग बढ़ी तो इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, BPCL और HPCL जैसी कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है. तेल की कीमतें बढ़ने से रिफाइनिंग की लागत बढ़ेगी लेकिन ये कंपनियां इस बढ़ी हुई लागत को पूरी तरह ग्राहकों पर नहीं डाल पाएंगी. इससे उनकी कमाई और मुनाफे दोनों पर असर पड़ेगा. दूसरी तरफ, ONGC और ऑयल इंडिया जैसी अपस्ट्रीम कंपनियां, जो घरेलू तेल का उत्पादन करती हैं, को कीमतें बढ़ने से फायदा हो सकता है. लेकिन सरकार ने 2022-24 के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान तेल की कीमतें बढ़ने पर विंडफॉल टैक्स लगाया था. अगर ऐसा फिर हुआ, तो इन कंपनियों की कमाई पर भी असर पड़ सकता है.
एविएशन सेक्टर
एयरलाइंस के लिए एविएशन टरबाइन फ्यूल (ATF) उनकी कुल लागत का एक तिहाई हिस्सा है. तेल की कीमतें बढ़ने से उनकी लागत बढ़ेगी, जिससे टिकट के दाम बढ़ सकते हैं. लेकिन भारत जैसे कीमत-संवेदनशील बाजार में टिकट महंगे करने से मांग कम हो सकती है, जिससे एयरलाइंस की कमाई पर और दबाव पड़ेगा.
पेंट और केमिकल इंडस्ट्री
एशियन पेंट्स, बर्जर पेंट्स और कंसाई नेरोलैक जैसी कंपनियां सॉल्वेंट्स और रेजिन जैसे कच्चे माल के लिए तेल पर निर्भर हैं. ये माल उनकी कुल लागत का करीब 50% हिस्सा हैं. अगर तेल की कीमतें बढ़ीं तो इन कंपनियों को अपने प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ाने पड़ सकते हैं, जिससे मांग कम हो सकती है.
इसी तरह, प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, सॉल्वेंट्स और केमिकल्स बनाने के लिए नैफ्था, ईथेन और प्रोपेन जैसे कच्चे माल की जरूरत पड़ती है. पिदिलाइट, SRF, आरती इंडस्ट्रीज और दीपक नाइट्राइट जैसी कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जिससे उनके मुनाफे पर असर पड़ेगा.
उर्वरक और ऑटोमोबाइल
नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों जैसे यूरिया और अमोनिया के लिए प्राकृतिक गैस और तेल का इस्तेमाल होता है. तेल की कीमतें बढ़ने से LNG की कीमतें भी बढ़ेंगी, जिससे उर्वरक उत्पादन महंगा होगा. इससे या तो उर्वरक के दाम बढ़ेंगे या सरकार को सब्सिडी का बोझ उठाना पड़ेगा.
ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी प्लास्टिक, रबर और कम्पोजिट्स जैसे पेट्रोलियम-आधारित कच्चे माल की बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ेगा. इससे उनकी लागत बढ़ेगी. हालांकि, पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की मांग बढ़ सकती है, जिससे EV निर्माताओं को फायदा हो सकता है.
व्यापार पर भी संकट
ईरान और इजराइल के साथ भारत का व्यापार भी इस जंग से प्रभावित हो सकता है. वित्त वर्ष 2025 में भारत ने ईरान को 1.24 बिलियन डॉलर का निर्यात किया और 441.9 मिलियन डॉलर का आयात किया. इजराइल के साथ व्यापार और भी बड़ा है, जिसमें 2.15 बिलियन डॉलर का निर्यात और 1.61 बिलियन डॉलर का आयात शामिल है.
शिपिंग और बीमा लागत में उछाल
जंग बढ़ने से शिपिंग और बीमा लागत बढ़ सकती है. फेडरेशन ऑफ फ्रेट फॉरवर्डर्स एसोसिएशंस इन इंडिया (FFFAI) के चेयरमैन दुष्यंत मुलानी ने बताया कि केप ऑफ गुड होप जैसे वैकल्पिक रास्तों से शिपिंग में देरी होगी और लागत बढ़ेगी. समुद्री और हवाई माल ढुलाई की लागत भी बढ़ सकती है.
पिछले साल अक्टूबर 2023 में इजराइल-गाजा तनाव बढ़ने के बाद ग्लोबल शिपिंग कंपनियों ने पश्चिम एशिया के रास्तों से बचना शुरू कर दिया था. ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के हमलों ने लाल सागर के रास्ते व्यापार को लगभग ठप कर दिया था. इससे कई कंपनियों को केप ऑफ गुड होप के रास्ते व्यापार करना पड़ा. अगर जंग और बढ़ी, तो होर्मुज जलडमरूमध्य और लाल सागर जैसे अहम रास्ते प्रभावित होंगे.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (FIEO) के प्रेसिडेंट एस सी राल्हन ने कहा कि ये जंग वैश्विक व्यापार को और नुकसान पहुंचाएगी. यूरोप और रूस जैसे देशों में भारत का निर्यात प्रभावित होगा. माल ढुलाई और बीमा लागत बढ़ने से भारत का निर्यात 15-20% तक महंगा हो सकता है.
मिडिल ईस्ट में व्यापार पर असर
जंग का असर भारत के मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार पर भी पड़ेगा. UAE, कतर, सऊदी अरब, मिस्र और बहरीन जैसे देश भारतीय फार्मा प्रोडक्ट्स के बड़े खरीदार हैं. अगर जंग बढ़ी, तो इन देशों में भारत का फार्मा निर्यात प्रभावित होगा.
पिछले साल हमास के इजराइल पर हमले के बाद होम टेक्सटाइल और फर्निशिंग्स के भारतीय निर्यातकों को ऑर्डर टलने और मुनाफा घटने की चिंता सताने लगी थी. इजराइल भले ही छोटा बाजार है, लेकिन वहां कॉटन टेक्सटाइल्स की मांग ज्यादा है, जिससे भारतीय निर्यातकों को 10-15% ज्यादा मुनाफा मिलता है.
इजराइल से भारत को रफ डायमंड्स की आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है. हालांकि, भारत कट और पॉलिश्ड डायमंड्स की आपूर्ति उन देशों को कर सकता है, जो पहले इजराइल पर निर्भर थे.
इन भारतीय कंपनियों पर खतरा
इजराइल में कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों को भी इस जंग का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. सन फार्मा, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), विप्रो, अदानी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, लार्सन एंड टुब्रो, भारत फोर्ज और इन्फोसिस जैसी कंपनियों की इजराइल में मौजूदगी है. अगर जंग लंबी खींची, तो इन कंपनियों के कारोबार में रुकावट आ सकती है.
2023 में इजराइल-हमास तनाव शुरू होने पर विशेषज्ञों ने कहा था कि TCS और विप्रो जैसी कंपनियां अपने कारोबार को भारत में शिफ्ट कर सकती हैं. इजराइल में मौजूद ग्लोबल टेक्नोलॉजी कंपनियां भी अपने ऑपरेशंस को भारत या दूसरी जगहों पर ले जा सकती हैं.
रोजगार संकट गहराया: मई में बढ़ा बेरोजगारी का ग्राफ, सरकार की बढ़ी मुश्किलें
17 Jun, 2025 09:16 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मई में शुरू हुए बेरोजगारी दर के आंकड़ों को जारी करने का सिलसिला जून में बुरी खबर लेकर आया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के फ्रेश आंकड़ों के अनुसार मई के महीने में बेरोजगारी दर में इजाफा देखने को मिला है. ये बेरोजगारी दर शहर और गांव दोनों जगहों पर देखने को मिली है. खास बात तो ये है कि ये बेरोजगारी दर युवाओं में सबसे ज्यादा देखी गई है. वहीं दूसरी ओर मई के महीने में महिलाओं में भी बेरोजगारी दर का आंकड़ा बढ़ा है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर सरकार की ओर से बेरोजगारी के आंकड़े किस तरह के सामने रखे हैं.
युवा बेरोजगारी दर बढ़ी
सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की बेरोजगारी दर मई 2025 में बढ़कर 5.6 फीसदी हो गई, जो अप्रैल में 5.1 फीसदी थी. बेरोजगारी में वृद्धि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देखी गई और विशेष रूप से युवाओं में यह बहुत ज़्यादा देखने को मिली है. 15-29 आयु वर्ग में, ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर अप्रैल में 12.3 फीसदी से बढ़कर मई में 13.7 फीसदी हो गई. शहरी क्षेत्रों में, युवा बेरोजगारी एक महीने पहले 17.2 फीसदी से बढ़कर मई में 17.9 फीसदी हो गई. महिलाओं में बेरोजगारी भी मई में बढ़कर 5.8 फीसदी हो गई, जो उसी महीने के दौरान पुरुषों के लिए दर्ज की गई 5.6 फीसदी दर से थोड़ी अधिक है.
लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन में भी गिरावट
लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन जो 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन लोगों के रेश्यो को मापती है जो या तो काम कर रहे हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रहे हैं – वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में मई 2025 में 54.8 फीसदी थी, जो अप्रैल में 55.6 फीसदी से कम देखने को मिली है. ग्रामीण इलाकों में ये पार्टिसिपेशन 56.9 फीसदी पर देखने को मिला, जोकि शहरों में 50.4 फीसदी देखने को मिला है. इस आयु वर्ग के पुरुषों के लिए, ग्रामीण और शहरी LFPR अप्रैल में 79.0% और 75.3% से क्रमशः 78.3% और 75.1% पर थोड़ा कम हो गया. ग्रामीण महिलाओं में, LFPR 36.9% पर काफी कम थी.
वर्कर रेश्यो में भी आई कमी
वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो (WPR) भी महीने-दर-महीने कम हुआ है. मई 2025 में, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो 54.1 फीसदी था, जबकि शहरी इलाकों में यह 46.9 फीसदी था. मई में समग्र वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो अप्रैल में 52.8 फीसदी से घटकर 51.7 फीसदी हो गया.
वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी कम रही, ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो 35.2 फीसदी और शहरी केंद्रों में सिर्फ़ 23.0 फीसदी रहा. कुल महिला वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो 31.3 फीसदी दर्ज की गई. हालांकि सरकार ने बेरोज़गारी में वृद्धि के कारणों की जानकारी नहीं दी, लेकिन डाटा रोज़गार सृजन में लगातार चुनौतियों को अंडरलाइन करता है, खासकर महिलाओं और युवाओं के लिए, जबकि भारत महामारी के बाद की इकोनॉमी में हाई ग्रोथ को बनाए रखे हुए है.
ललितपुर में निवेश की बहार: ₹12,000 करोड़ के फार्मा पार्क से हजारों रोजगार के अवसर पैदा होंगे
16 Jun, 2025 04:46 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उत्तर प्रदेश सरकार ने ललितपुर में फार्मा पार्क स्थापित करने की दिशा में पहल की है. उम्मीद है कि इससे गुजरात और आंध्र प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश भी भारत के प्रमुख थोक दवा विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होगा. ललितपुर जिला उत्तर प्रदेश के आख़िरी छोर पर मध्यप्रदेश से सटा है. उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीसीडा) के अनुसार, बुंदेलखंड क्षेत्र में इस परियोजना से 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है.
1,472 एकड़ में फैली यह परियोजना
यूपीसीडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) मयूर माहेश्वरी ने कहा, ललितपुर में फार्मा पार्क परियोजना राज्य सरकार की ऐतिहासिक पहलों में से एक है। यह पूरी तरह से राज्य प्रायोजित है, जिसका उद्देश्य थोक दवा और एपीआई (सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक) विनिर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करना है. उत्तर प्रदेश इसमें अग्रणी भूमिका निभाएगा.
उन्होंने बताया कि 1,472 एकड़ में फैली यह परियोजना अपने पहले चरण में प्रवेश कर चुकी है, जिसमें से 353 एकड़ पहले से ही इसके अधीन है. माहेश्वरी ने कहा, हमने पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त कर ली है और पहले चरण के लिए आवंटन शुरू हो गया है. परियोजना में जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (तरल अपशिष्ट शून्य करने) पर भी जोर दिया गया है, जो एक उन्नत अपशिष्ट जल प्रबंधन रणनीति है. इसके तहत विनिर्माण के दौरान उत्पन्न सभी अपशिष्ट जल का उपचार किया जाता है, शुद्ध किया जाता है, और या तो सुविधा के भीतर पुन: उपयोग किया जाता है या सुरक्षित निपटान के लिए ठोस अपशिष्ट में परिवर्तित किया जाता है.
पिछले सप्ताह अहमदाबाद मेंरोड शो आयोजित किया गया, जहां कई कंपनियों ने प्रमुख निवेश प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए. यूपीसीडा अब प्रमुख फार्मा कंपनियों के व्यापक जुटान का लाभ उठाने के लिए मुंबई में इसी तरह की योजना बना रहा है. माहेश्वरी ने कहा, हमने हाल ही में गुजरात में और इससे पहले चंडीगढ़ और हैदराबाद में रोड शो आयोजित किए. हम प्रमुख फार्मा कंपनियों को आकर्षित करने के लिए मुंबई और अन्य स्थानों को लक्षित करने की योजना बना रहे हैं. सभी उपयोगिताएं भूमिगत होंगी.
माहेश्वरी ने ललितपुर फार्मा पार्क को प्लग-एंड-प्ले (उपयोग के लिए तैयार) ढांचा प्रदान करने वाली अत्याधुनिक सुविधा बताया. उन्होंने बताया कि यह स्थल सीसीटीवी निगरानी, आवास इकाइयों, इन-हाउस कौशल केंद्र और अन्य सहायक बुनियादी ढांचे से सुसज्जित है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह देश का सबसे अच्छा बल्क ड्रग पार्क बन जाए.
फर्मा सेक्टर में गूजेगा यूपी का नाम
फार्मा उद्योग की बदलती गतिशीलता पर माहेश्वरी ने कहा, हिमाचल प्रदेश वर्षों तक एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र था, लेकिन सब्सिडी और कर अवकाश समाप्त होने के बाद, विनिर्माता गुजरात और हैदराबाद चले गए. उत्तर प्रदेश उस कमी को पूरा करने के लिए अच्छी स्थिति में है. ललितपुर में हमारी इकाइयां दो से ढाई साल के भीतर चालू हो जाएंगी.उन्होंने कहा, आवंटन प्रक्रिया चल रही है, पर्यावरण संबंधी मंजूरी मिल चुकी है और दो साल के भीतर जमीनी स्तर पर भौतिक परिणाम दिखने लगेंगे.
माहेश्वरी ने पुष्टि की कि परियोजना के लिए पूरी भूमि पहले से ही यूपीसीडा के कब्जे में है और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), बिजली वितरण कंपनियों और आईआईटी एवं डीआरडीओ जैसे संस्थानों के साथ तकनीकी साझेदारी के सहयोग से बुनियादी ढांचे का उन्नयन जारी है. अधिकारियों के अनुसार, ललितपुर में लॉजिस्टिक पहुंच, औद्योगिक तत्परता, नीति समर्थन (पर्यावरणीय मंजूरी आदि) और भूमि सामर्थ्य का संयोजन है, जो इसे फार्मा विनिर्माण पार्क के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाता है. यह रक्षा गलियारे के आगामी झांसी नोड के भी करीब है.
14,000 लोगों को मिलेगा रोजगार
बुंदेलखंड को आर्थिक रूप से मजबूत करने के साथ ही उप्र को एक लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सरकार के प्रयासों को भी बल मिलेगा. इस परियोजना से लगभग 14,000 लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने का अनुमान है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देगा और राज्य के व्यापक आर्थिक विकास लक्ष्यों का समर्थन करेगा.
एक अधिकारी ने बताया कि अहमदाबाद में निवेश पहुंच कार्यक्रम के दौरान, यूपीसीडा ने प्रमुख दवा और स्वास्थ्य सेवा कंपनियों के साथ कई समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए. सीएसएल लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड ने 200 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव दिया है. अधिकारी ने कहा कि इस परियोजना से 250 से अधिक लोगों को रोजगार मिलने और दो साल के भीतर चालू होने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा कि मेडीहीथ डायग्नोस्टिक प्राइवेट लिमिटेड ललितपुर में 4,200 वर्ग मीटर में एक हेल्थकेयर इकाई स्थापित करेगी, जबकि गमन इरेडिएशन एक स्किन ट्रीटमेंट और इरेडिएशन यूनिट के लिए 35 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बना रही है, जिससे 24-36 महीनों के भीतर लगभग 150 नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है. इसके अलावा, ओबमेड फार्मा ने पांच एकड़ भूमि में एक फॉर्मूलेशन यूनिट स्थापित करने के लिए 200 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई है. उन्होंने कहा कि इस परियोजना के भी अगले दो वर्षों के भीतर शुरू होने की उम्मीद है.
अब हर कोई बनेगा लखपति! ₹100 प्रतिदिन निवेश की ये स्कीम खोल देगी समृद्धि के द्वार
16 Jun, 2025 04:40 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पोस्ट ऑफिस की निवेश योजनाएं हमेशा से आम लोगों के बीच भरोसेमंद मानी जाती हैं. इनमें सबसे लोकप्रिय योजना है पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) स्कीम, जिसे सुरक्षित और टैक्स-फ्री रिटर्न देने वाला लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट विकल्प माना जाता है. अगर आप भी बच्चों की शिक्षा या भविष्य के किसी बड़े लक्ष्य के लिए निवेश की सोच रहे हैं, तो यह योजना आपके लिए बेहतरीन साबित हो सकती है.
कौन सी है ये जादुई स्कीम?
PPF स्कीम में आप न्यूनतम 500 रुपए और अधिकतम 1.5 लाख रुपए सालाना निवेश कर सकते हैं. इस पर सरकार की ओर से फिलहाल 7.1% सालाना ब्याज दिया जा रहा है, जो पूरी तरह टैक्स-फ्री होता है। इस योजना की सबसे खास बात यह है कि इसका लॉक-इन पीरियड 15 साल का होता है और सातवें साल से आंशिक निकासी की सुविधा भी मिलती है.
लखपति बनने का ये है कैलकुलेशन
अगर आप हर दिन सिर्फ 100 रुपए यानी महीने में 3,000 रुपए PPF खाते में जमा करते हैं, तो साल भर में 36,000 रुपए का निवेश होगा. इस तरह 15 साल तक निवेश करने पर कुल निवेश राशि होगी करीब 5.40 लाख रुपए. ब्याज मिलाकर यह राशि बढ़कर लगभग 9.76 लाख रुपए तक पहुंच जाएगी. यानी आपको कुल 4.36 लाख रुपए का ब्याज लाभ मिलेगा, वो भी टैक्स फ्री.
इस योजना में निवेश करने पर आयकर की धारा 80C के तहत टैक्स छूट भी मिलती है. इसलिए यह योजना मिडिल क्लास से लेकर नौकरीपेशा लोगों के लिए एक मजबूत फाइनेंशियल टूल है. बच्चों की कॉलेज फीस, होस्टल खर्च या शादी जैसे भविष्य के बड़े खर्चों को आसानी से मैनेज किया जा सकता है.
कैसे खोल सकते हैं PPF अकाउंट
PPF खाता खोलने के लिए किसी भी नजदीकी पोस्ट ऑफिस में जाकर आवेदन किया जा सकता है. पहचान और पते का प्रमाण, पासपोर्ट साइज फोटो और आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों के साथ आवेदन कर खाता खोला जा सकता है. निवेशक मासिक, तिमाही या वार्षिक आधार पर इसमें पैसा जमा कर सकते हैं. पोस्ट ऑफिस की PPF स्कीम न सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि लंबी अवधि में अच्छा फंड तैयार करने में मदद करती है, महज 100 रुपए रोजाना की बचत से आप 15 साल में एक मजबूत आर्थिक सुरक्षा कवर तैयार कर सकते हैं, वो भी पूरी तरह टैक्स फ्री.
एशियाई बाजारों में सबसे ज्यादा भारत से पैसा निकाल रहे FPIs, क्या ग्लोबल टेंशन और ऊंचे वैल्यूएशन हैं वजह?
16 Jun, 2025 04:30 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
2025 में इंडियन स्टॉक मार्केट ने ऐसा कमाल दिखाया कि बड़े-बड़े विदेशी निवेशक (FPI) भी हैरान रह गए. डेटा के मुताबिक, इस साल अब तक फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स ने इंडियन शेयर मार्केट से 10.6 अरब डॉलर (लगभग 88,000 करोड़ रुपये) निकाल लिए. ये रकम एशिया में सबसे ज्यादा है. इसके बावजूद, निफ्टी 50 और सेंसेक्स ने 5% से ज्यादा की उछाल मारी. इतना ही नहीं, मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स भी 2% से ज्यादा चढ़े. अब सवाल ये है कि आखिर इंडियन मार्केट इतना रॉकेट क्यों बन रहा है, जब विदेशी निवेशक पैसे निकाल रहे हैं? चलिए, विस्तार से समझते हैं.
देसी निवेशकों ने संभाला मोर्चा
फॉरेन इनवेस्टर्स पैसे निकाल रहे हैं तो शेयर बाजार ऊपर कैसे जा रहा है? जवाब है- देसी निवेशक, यानी डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (DII). इनमें सबसे बड़ा रोल म्यूचुअल फंड्स का है, जो रिटेल इनवेस्टर्स यानी आम आदमी के पैसों से शेयर मार्केट में धुआंधार खरीदारी कर रहे हैं. 2025 में अब तक DII ने 36.1 अरब डॉलर (लगभग 3 लाख करोड़ रुपये) इंडियन शेयरों में झोंक दिए.
जून की बात करें तो FPI ने शुरुआती दिनों में 0.59 अरब डॉलर के शेयर बेचे. लेकिन DII ने ऐसा गेम खेला कि सबके होश उड़ गए. उन्होंने 5.32 अरब डॉलर (लगभग 44,000 करोड़ रुपये) के शेयर खरीदे, जो FPI की बिकवाली से 11 गुना ज्यादा है. यानी विदेशी बेच रहे हैं, लेकिन देसी निवेशक उससे कहीं ज्यादा खरीद रहे हैं. इसीलिए मार्केट गिरने की बजाय चढ़ रहा है.
पिछले 10 साल की बात करें तो DII ने 195 अरब डॉलर (लगभग 16 लाख करोड़ रुपये) मार्केट में डाले, जबकि FPI का इन्वेस्टमेंट सिर्फ 53 अरब डॉलर रहा. यानी देसी निवेशकों ने विदेशियों को 3.7 गुना पीछे छोड़ दिया. इतना ही नहीं, 2025 की चौथी तिमाही में पहली बार DII की हिस्सेदारी निफ्टी-500 कंपनियों में FPI से ज्यादा हो गई. यानी अब मार्केट पर देसी निवेशकों का दबदबा है!
म्यूचुअल फंड्स का AUM, 70 लाख करोड़ के पार
अब ये पैसे आ कहां से रहे हैं? जवाब है- आम भारतीय निवेशक. लोग अब बैंक FD और गोल्ड से ज्यादा शेयर मार्केट में पैसा लगा रहे हैं. म्यूचुअल फंड्स के जरिए हर महीने SIP से हजारों करोड़ रुपये मार्केट में आ रहे हैं. मई 2025 में म्यूचुअल फंड्स का AUM (एसेट्स अंडर मैनेजमेंट) पहली बार 70 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया. ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
लोगों का भरोसा इंडिया की ग्रोथ स्टोरी पर बढ़ रहा है. भारत की इकॉनमी तेजी से बढ़ रही है, और लोग इस रैली का हिस्सा बनना चाहते हैं. इसीलिए रिटेल इनवेस्टर्स म्यूचुअल फंड्स के जरिए शेयर मार्केट में पैसा डाल रहे हैं, और DII उस पैसे को मार्केट में इन्वेस्ट कर रहा है. नतीजा? FPI की बिकवाली का मार्केट पर खास असर नहीं पड़ रहा.
FPI क्यों बेच रहे हैं?
अब सवाल है कि आखिर विदेशी निवेशक पैसा क्यों निकाल रहे हैं? इसके पीछे कई ग्लोबल वजहें हैं.
1. इजरायल-ईरान टेंशन और कच्चे तेल की कीमतें
मिडिल ईस्ट में इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ने से कच्चे तेल की कीमतें अचानक चढ़ गईं. भारत जैसे तेल आयात करने वाले देश के लिए ये बुरी खबर है. कच्चा तेल महंगा होने से कंपनियों की लागत बढ़ती है, और मुनाफा घटता है. FPI को लगता है कि ये टेंशन और बढ़ सकता है, जिससे भारत की इकॉनमी पर असर पड़ेगा. इसीलिए वो सावधानी बरतते हुए पैसा निकाल रहे हैं..
2. US फेडरल रिजर्व का रेट कट पर सस्पेंस
अमेरिका का फेडरल रिजर्व ब्याज दरों पर फै सला लेने वाला है.. मार्कट का कहना है कि इस बार भी ब्याज दरों में कोई कमी नहीं होगी.. ऊंची ब्याज दरें डालर को मजबूत करती हैं, जिससे FPI के लिए भारत में निवेश करना कम आकर्षक हो जाता है. वो पैसा अमेरिका या दूसररे देशों में चला जाता है..
3. चीन के स्टॉक्स सस्ते, भारत महंगा
चीन की इकॉनमी में रिकवरी के संकेत मिल रहे हैं.. वहां के शेयर मार्कट्स भारत की तुलना में सस्ते दामों पर मिल रहे हैं.. भारत के स्टॉक्स अभी हाई वैल्यूएशन पर ट्रेड कर रहे हैं, यानी उनके दाम उनकी कमाई के हिसाब से ज्यादा हैं.. इसीलिए कुछ FPI अपना पैसा भारत से निकालकर चीन जैसे देशों में डाल रहे हैं..
4. ग्लोबल ट्रेड वॉर का डर
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड टेंशन भी बढ़ रहा है.. अगर ये टेंशन और गहराया, तो ग्लोबल इकॉनमी पर असर पड़ सकता है. ऐसे में FPI रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं. वो सेफ ऑप्शन्स की तलाश में हैं, और भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट्स से पैसा निकाल रहे हैं..
क्या FPI की बिकवाली जारी रहेगी?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि FPI की बिकवाली का सिलसिला कब तक चलेगा, ये कहना मुश्किल है. ग्लोबल टेंशन, कच्चे तेल की कीमतें, और US फेडरल रिजर्व के फैसले पर बहुत कुछ निर्भर करता है.. अगर मिडल ईस्स्ट में हालात बिगड़ते हैं, तो FPI और ज्यादा पैसा निकाल सकते हैं. दूसरी तरफ, अगर ग्लोबल मार्केट्स में स्टेबल होते हैं और भारत की ग्रोथ स्टोरी मजबूत रहती है, तो FPI की वापसी भी हो सकती है..
भारत का स्टॉक मार्केट की बदल रही तस्वीर
भारत का स्टॉक मार्केट अब विदेशी निवेशकों पर उतना निर्भर नहीं है, जितना पहले हुआ करता था. देसी निवेशकों का भरोसा, म्यूचुअल फंड्स की ताकत, और भारत की इकॉनमी की रफ्तार- ये वो तीन पिलर हैं, जो मार्केट को संभाले हुए हैं.
रिटेल इनवेस्टर्स का क्रेज: लोग अब शेयर मार्केट को वेल्थ क्रिएशन का जरिया मान रहे हैं. SIP और म्यूचुअल फंड्स के जरिए हर महीने हजारों करोड़ रुपये मार्कट में आ रहे हैं..
DII का दबदबा: DII ने FPI की बिकवाली को न सिर्फ न्यूट्रलाइज़ किया, बल्कि मार्केट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.. उनकी खरीदारी ने मार्केट में लिक्विडिटी बनाए रखी..
इंडिया ग्रोथ स्टोरी: भारत की इकॉनमी तेजी से बढ़ रही है.. ग्लोबल स्लोडाउन के बावजूद, भारत की GDP ग्रोथ रेट बाकी उमर्जिंग मार्केट्स से बेहतर है.. इसीलिए निवेशकों का भरोसा बना हुआ है.
रिटेल इनवेस्टर्स का जोश है हाई
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब तक ग्लोबल टेंशन कम नहीं होता, FPI की बिकवाली का सिल्सिला रुक-रुक कर चल सकता है.. लेकिन इंडियन मार्केट की ताकत अब उसके देसी निवेशकों में है. अगर DII और रिटेल इनवेस्टर्स का यही जोश बना रहा, तो मार्केट को ज्यादा नुकसान नहीं होगा. हालांकि दूसरी तरफ, भारत की हाई वैल्यूएशन एक चिंता जरूर है. अगर कंपनियों की कमाई (Earnings) उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी, तो मार्केट में थोड़ा करेक्शन आ सकता है लेकिन लॉन्ग टर्म में भारत की ग्रोथ स्टोरी और डोमेस्टिक इनवेस्टमेंट की ताकत मार्केट को सपोर्ट जरूर देगी.
अदाणी के हाइफा पोर्ट पर ईरानी मिसाइल हमले का कोई असर नहीं, परिचालन सामान्य!
16 Jun, 2025 10:57 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Adani Haifa Port: इरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के बीच शनिवार की रात ईरान ने इजराइल पर बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया. इन हमलों में इजराइल के हाइफा बंदरगाह और पास की एक तेल रिफाइनरी को निशाना बनाया गया था. लेकिन इस बीच राहत की बात यह रही कि अदाणी समूह द्वारा संचालित हाइफा बंदरगाह को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा और इसका संचालन पूरी तरह सामान्य बना हुआ है. सूत्रों के हवाले से ये रिपोर्ट किया है.
रासायनिक टर्मिनल में गिरे शार्पनेल, कोई हताहत नहीं
सूत्रों के मुताबिक हमले के दौरान बंदरगाह के रासायनिक टर्मिनल में शार्पनेल गिरे जबकि कुछ अन्य प्रक्षेपास्त्र पास की तेल रिफाइनरी में गिरे. हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है. एक सूत्र ने बताया कि ‘‘बंदरगाह में इस वक्त आठ जहाज मौजूद हैं और माल ढुलाई सामान्य रूप से जारी है.’’
सूत्रों ने दावा किया कि अदाणी समूह के स्वामित्व वाले हाइफा पोर्ट को किसी भी प्रकार का भौतिक नुकसान नहीं पहुंचा है और संचालन में कोई बाधा नहीं आई है. रविवार को बंदरगाह पर लगभग 700 कर्मचारी कार्यरत थे और सभी गतिविधियां सामान्य रूप से चल रही थीं. बंदरगाह इजराइली परिवहन मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहा है और सभी सुरक्षा व प्रशासनिक दिशानिर्देशों का पालन कर रहा है.
चीनी बंदरगाह भी सुरक्षित, हाइफा से इजराइली आयात का 30% होता है हैंडल
हाइफा बंदरगाह के पास स्थित चीनी बंदरगाह को लेकर भी यही जानकारी दी गई कि वहां का संचालन भी सामान्य है. हाइफा बंदरगाह इजराइल के लिए एक अहम समुद्री केंद्र है जहां से देश के कुल आयात का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आता है.
हाइफा पोर्ट का स्वामित्व अदाणी पोर्ट्स एंड एसईजेड के पास है जो इसमें 70 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है. हालांकि, अदाणी पोर्ट्स के कुल कार्गो में हाइफा की हिस्सेदारी तीन प्रतिशत से कम है और मुनाफे में यह केवल दो प्रतिशत से भी कम योगदान देता है.
ईरान में गहराया ऊर्जा संकट: साउथ पार्स हमले से ठप हुआ गैस उत्पादन, दुनिया के लिए खतरा!
16 Jun, 2025 10:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Israel Iran War: ईरान और इजरायल के बीच चल रही तनातनी अब एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है. इस बार इजरायल ने सीधे तौर पर ईरान के एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया है. इजरायल ने ईरान के दुनिया के सबसे बड़े गैस फील्ड साउथ पार्स (South Pars) के एक महत्वपूर्ण पार्ट फेज 14 पर एयरस्ट्राइक की, जिसके कारण वहां आग लग गई और गैस प्रोडक्शन को कुछ टाइम के लिए रोकना पड़ा. ऑफशोर साइट के इस स्टेज पर हुए हमले के कारण ईरान को करीब 12 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस के प्रोडक्शन को रोकना पड़ा. ऐसे में आइए जानते हैं इजरायल का यह हमला दुनिया के एनर्जी सप्लाई पर कैसे बन रहा खतरा.
क्या है साउथ पार्स गैस फील्ड?
साउथ पार्स गैस फील्ड ईरान के बुशेहर प्रांत में स्थित है. यह गैस फील्ड क़तर के साथ शेयर है, जो इसे नॉर्थ फील्ड के नाम से जानता है. यह क्षेत्र प्राकृतिक गैस का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है. ईरान की घरेलू गैस जरूरतों का करीब 66 फीसदी हिस्सा यहीं से आता है, जिससे देश में बिजली, हीटिंग और पेट्रोकेमिकल उत्पादों की आपूर्ति होती है.
बता दें ईरान अमेरिका और रूस के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गैस उत्पादक देश है. यह सालाना लगभग 275 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) गैस का उत्पादन करता है, जो वैश्विक उत्पादन का करीब 6.5 प्रतिशत है. हालांकि प्रतिबंधों के चलते ईरान ज्यादातर गैस देश के भीतर ही इस्तेमाल करता है, जबकि थोड़ी मात्रा इराक जैसे देशों को निर्यात की जाती है. इसके विपरीत, कतर इसी क्षेत्र से हर साल 77 मिलियन टन LNG (Liquefied Natural Gas) यूरोप और एशिया को एक्सपोर्ट करता है. इस काम में शेल और एक्सॉन मोबिल जैसी दिग्गज अंतरराष्ट्रीय कंपनियां उसकी मदद करती हैं.
क्यों यह हमला इतना बड़ा है?
दरअसल अब तक इजरायल केवल ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों को ही निशाना बना रहा था. लेकिन इस बार एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर पर सीधा हमला हुआ है, जो एक नए तरह से आर्थिक जंग की ओर इशारा दे रहा है. खास बात ये है कि एनर्जी एक्सपर्ट जॉर्ज लियोन के मुताबिक, यह हमला 2019 में सऊदी अरब के अबकैक तेल ठिकाने पर हुए हमले के बाद सबसे अहम माना जा रहा है.
ग्लोबल एनर्जी सप्लाई पर संकट
साउथ पार्स गैस फील्ड जहां स्थित है, वह इलाका ग्लोबल एनर्जी सप्लाई के लिए बेहद अहम है. यह न सिर्फ क़तर के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इसके पास के क्षेत्र, जैसे कि खर्ग आइलैंड (ईरान का प्रमुख ऑयल एक्सपोर्ट टर्मिनल) और स्ट्रेट ऑफ हॉरमुज पर भी खतरा मंडराने लगा है. स्ट्रेट ऑफ हॉरमुज़ से हर दिन करीब 21 फीसदी LNG और 1.4 करोड़ बैरल क्रूड ऑयल गुजरता है.
बाजारों पर असर
इस हमले की खबर के बाद तेल की कीमतों में 14 फीसदी तक उछाल आया और कीमतें 73 डॉलर प्रति बैरल (लगभग 7000 रुपये) के आसपास पहुंच गईं. भले ही साउथ पार्स की गैस मुख्य रूप से ईरान में ही इस्तेमाल होती है, लेकिन इसका रणनीतिक महत्व काफी बड़ा है. OPEC के तीसरे सबसे बड़े उत्पादक (ईरान) पर हमला यह संकेत देता है कि आने वाले दिनों में अगर खर्ग आइलैंड या स्ट्रेट ऑफ हॉरमुज़ में कोई गड़बड़ी होती है, तो तेल और गैस की कीमतें आसमान छू सकती हैं.
चौंकाने वाली सच्चाई! द सिंपसंस ने 2025 के लिए जो कहा, क्या वो सच होगा?
16 Jun, 2025 10:34 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
The Simpsons and List of Predictions: कार्टून देखना हम सभी को कभी न कभी पसंद हुआ करता था. हम में से कई लोग शायद बड़े होने के बाद भी एनिमेटेड टीवी शो को देखना पसंद करते होंगे. ये हमारे मनोरंजन का साधन हुआ करता था या है भी. लेकिन एक एनिमेटेड टीवी शो जिसकी शुरुआत बच्चों के मनोरंजन के लिए ही हुई थी, अब वह दुनिया भर में “भविष्य बताने वाली मशीन” के तौर पर पहचाना जाने लगा है. हम बात कर रहे हैं ‘The Simpsons’ की. उस मशहूर अमेरिकी शो की जिसने कई बार ऐसी घटनाओं की भविष्यवाणी कर दी है जो बाद में सच साबित हुई.
अगर आप सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक्टिव हैं तब आपने भी Simpsons से जुड़ी कुछ मीम्स जरूर देखी होगी. मौजूदा समय में भी इस सीरीज के कई सीन्स वायरल होते हैं जो वर्तमान की स्थिति से मिलते जुलते मालूम पड़ते हैं. अब जब हम 2025 में कदम रख चुके हैं, एक बार फिर The Simpsons की भविष्यवाणियों पर चर्चा तेज हो गई है. सवाल यह है कि क्या यह शो सिर्फ एक कॉइनसिडेंस है या वाकई इसकी स्क्रिप्ट में भविष्य छिपा होता है? आइए इसके बारे में विस्तार से बात करते हैं.
क्या है ‘The Simpsons’?
The Simpsons एक अमेरिकी एनिमेटेड सिटकॉम है, जिसकी शुरुआत 17 दिसंबर 1989 को हुई थी. इसे मैट ग्रोनिंग ने बनाया था और यह फॉक्स नेटवर्क पर प्रसारित होता है. यह शो स्प्रिंगफील्ड नाम के काल्पनिक शहर में रहने वाले सिम्पसन परिवार की कहानी है. उस परिवार में होमर, मार्ज, बार्ट, लिसा और मैगी रहते हैं. शो की खास बात है इसकी ह्यूमर के पीछे छिपी सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणी. यह न केवल अमेरिका की संस्कृति पर व्यंग करता है बल्कि कई बार आने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी भी करता नजर आया है. अभी भी इस शो के नए सीरीज आते रहते हैं. पिछले साल यानी 2024 के 18 मई को इसका 36वां सीजन रिलीज हुआ था. कुछ समय पहले ही फॉक्स नेटवर्क ने इसके लाइसेंस को रिन्यू करते हुए 4 साल और बढ़ा दिया है.
भारत को लेकर The Simpsons ने क्या भविष्यवाणियां की?
भारत में The Simpsons की कोई डायरेक्ट भविष्यवाणी नहीं रही है, लेकिन इसकी AI, टेक्नोलॉजी और ग्लोबल पॉलिटिक्स से जुड़ी बातें हमारे देश में भी असर डालती रही हैं. उदाहरण के तौर पर-
स्मार्टवॉच: 2010 से पहले ही शो में स्मार्ट वॉच जैसी डिवाइसेज दिखाई गई थीं. भारत में 2015 के बाद से स्मार्ट वॉच का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा.
AI और ऑटोमेशन: शो में 1994 में AI से चलने वाले रोबोट्स को दिखाया गया था. आज भारत में भी कस्टमर सर्विस, कस्टमर चैट और डेटा एनालिटिक्स में AI का तेजी से इस्तेमाल हो रहा है.
अहमदाबाद एयर इंडिया प्लेन क्रैश: हाल में गुजरात के अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया प्लेन क्रैश होने की घटना को लेकर भी इसकी एक फोटो वायरल हो रही है. जिसमें एयर इंडिया लिखा एक प्लेन बिल्डिंग से टकराया हुआ दिखाई देता है. हालांकि मौजूद जानकारियों के मुताबिक, The Simpsons के किसी एपिसोड में ऐसा नहीं दिखाया गया है. मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए कोई एआई की मदद से वैसी फोटो क्रिएट करके वायरल कर रहा है.
अमेरिका को लेकर The Simpsons की भविष्यवाणियां?
The Simpsons ने अमेरिका और वैश्विक स्तर पर जो सबसे चर्चित भविष्यवाणियां की हैं, वे हैं-
डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रपति पद पर वापसी
2000 में आए एक एपिसोड में ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति दिखाया गया था. यह भविष्यवाणी 2016 में सच हुई.
अब एक और भविष्यवाणी वायरल हो रही है — जिसमें 2024 में ट्रंप की वापसी दिखाई गई थी, और 2025 में उनकी बेटी इवांका ट्रंप के पॉलिटिक्स में आने की संभावना जताई गई थी. 2025 में यह बात फिर सुर्खियों में है.
महामारी की भविष्यवाणी
1993 के एक एपिसोड में “Osaka Flu” नाम की एक बीमारी दिखाई गई थी, जो एशिया से आती है और पूरे स्प्रिंगफील्ड (शो में दिखाया गया शहर) में फैल जाती है. कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों ने इस एपिसोड को याद किया और इसे एक भविष्यवाणी के तौर पर चिह्नित किया.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का खतरा
2012 में “Them, Robot” नामक एपिसोड में दिखाया गया था कि कैसे रोबोट्स लोगों की नौकरियां ले लेते हैं और आखिर में उनके खिलाफ खड़े हो जाते हैं. 2025 में, जब दुनिया की 41 फीसदी कंपनियां इंसानों की जगह AI को काम पर रख रही हैं, तो यह एपिसोड और भी प्रासंगिक हो गया है.
मार्स मिशन
2015 के एक एपिसोड में लिसा ने 2050 में मंगल पर कॉलोनी बनाने की योजना बनाई थी. एलन मस्क की स्पेसएक्स अब 2025 से मार्स मिशन की तैयारी कर रही है.
सेल्फ-ड्राइविंग कार्स
होमर (The Simpsons का एक किरदार) को एक बार एक बेकाबू सेल्फ-ड्राइविंग कार से जूझते हुए दिखाया गया था. आज 2025 में Waymo और कई दूसरी कंपनियों की रोबोटिक टैक्सी सर्विसेज कई शहरों में एक्टिव हैं और कई बार खराबी की खबरें भी सामने आ चुकी हैं.
कौन सी भविष्यवाणियां गलत निकलीं?
हाल ही में एक वायरल वीडियो ने दावा किया कि The Simpsons ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौत की तारीख भी बता दी है. 12 अप्रैल 2025. हालांकि यह दावा पूरी तरह झूठा है. The Simpsons की टीम और प्रोड्यूसर Matt Selman ने पुष्टि की कि यह क्लिप पूरी तरह AI से बनाई गई है और शो का हिस्सा नहीं है.
इसी तरह, 2024 में ट्रंप पर हुए एक हमले के दौरान भी एक फेक क्लिप वायरल हुई थी, जिसमें दावा किया गया कि शो ने यह पहले ही दिखा दिया था. लेकिन यह भी गलत साबित हुआ.
ये शुरू कब हुआ?
The Simpsons की पहली “भविष्यवाणी” मानी जाती है 1995 के एपिसोड “Lisa’s Wedding” में, जिसमें वीडियो कॉलिंग, स्मार्टवॉच और ऑटोमेटेड स्मार्ट होम जैसी टेक्नोलॉजी दिखाई गई थी. उस समय यह केवल कल्पना थी, लेकिन आज ये हमारे जीवन का हिस्सा हैं.
क्या The Simpsons वाकई भविष्य देख सकता है?
The Simpsons की स्क्रिप्ट को लिखने वाले लेखक कई बार कहते हैं कि यह सब “coincidence” है. लेकिन इतने सारे संयोग जब एक ही दिशा में इशारा करें तो सवाल उठना लाजमी है. 2025 में जब टेक्नोलॉजी, राजनीति और अर्थव्यवस्था कई उथल-पुथल से गुजर रही है, तो The Simpsons फिर से सुर्खियों में है. इसकी भविष्यवाणी को लेकर फिलहाल कोई कुछ नहीं कर सकता है. हां, इस बात से हम नजर नहीं फेर सकते हैं कि The Simpsons में दिखाई गई कुछ बातें बाद में जाकर सच हुए हैं लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि ये शो या इसके राइटर्स ने ऐसा कुछ सोचा होगा. हालांकि, यह तय है कि इस शो ने लोगों की नजर में खुद को महज एक कार्टून से कहीं ज्यादा साबित कर दिया है.
बढ़ रहा बुजुर्गों पर साइबर हमलों का खतरा, 9 महीने में 36 शिकार: परिजनों को दी जा रही है विशेष चेतावनी
15 Jun, 2025 02:18 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इंटरनेट की बढ़ती पहुंच ने भले ही हमारी जिंदगी को आसान बनाया हो, लेकिन इसके साथ ही साइबर ठगी का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. खासकर बुजुर्ग लोग, जिनकी डिजिटल समझ सीमित है, वे अब साइबर अपराधियों के लिए सबसे आसान शिकार बनते जा रहे हैं. गोवा पुलिस की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 9 महीनों में राज्य में 36 वरिष्ठ नागरिक ठगी का शिकार हुए हैं, जिनमें से 15 लोग ‘डिजिटल अरेस्ट स्कैम’ जैसी खतरनाक साजिश में फंसे. ऐसे में ठगों का पैंतरा आपको जानना जरूरी है ताकि आप अपने घर के बड़ों को ऐसे किसी भी गड्ढे में गिरने बचा सकें.
कैसे बनते हैं बुजुर्ग साइबर क्राइम के शिकार
बुजुर्गों का आसानी से विश्वास कर लेने वाली प्रवृत्ति, उनका अकेलापन, तकनीकी जानकारी की कमी और आर्थिक स्थिरता उन्हें साइबर अपराधियों के लिए ‘सॉफ्ट टारगेट’ बनाती है. अक्सर ठग खुद को बैंक अधिकारी, पुलिस या सरकारी एजेंसी का कर्मचारी बताकर डर का माहौल बनाते हैं और पीड़ित से पैसे ठग लेते हैं.
इस स्कैम में अपराधी खुद को पुलिस या CBI अधिकारी बताकर कहते हैं कि पीड़ित के नाम पर कोई अपराध हुआ है, और जेल से बचने के लिए तुरंत जुर्माना देना होगा. डर और शर्म के चलते कई पीड़ित शिकायत तक दर्ज नहीं कराते, जिससे अपराधियों के हौसले और बढ़ते हैं.
देश भर में चल रहा है ठगी का खेल
सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं, आम नागरिक भी बड़े पैमाने पर साइबर धोखाधड़ी के शिकार हो रहे हैं. बीते कुछ महीनों में गोवा पुलिस ने करोड़ों रुपये की ठगी से जुड़े दो बड़े मामलों का खुलासा किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने गोवा साइबर क्राइम पुलिस ने कर्नाटक के एक निवासी को गिरफ्तार किया, जो एक करोड़ रुपये से अधिक की साइबर ठगी में कथित रूप से शामिल था. यह मामला ओल्ड गोवा निवासी की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसमें पीड़ित ने भारी धनराशि की ठगी का आरोप लगाया था.
वहीं नवंबर में, बेंगलुरु निवासी कुमार उत्कलसर (उम्र 50) को गोवा पुलिस की साइबर क्राइम सेल ने 2.3 करोड़ रुपये की हाई-वैल्यू इनवेस्टमेंट फ्रॉड केस में गिरफ्तार किया था. इस मामले में शिकायत वालपई, सत्तारी के एक निवासी द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें बताया गया कि निवेश के नाम पर भारी रकम ऐंठ ली गई.
इन दोनों मामलों से साफ है कि साइबर ठग अब राज्य की सीमाओं से परे जाकर ठगी के नेटवर्क चला रहे हैं.
आप कैसे बच सकते हैं?
किसी अनजान कॉलर को OTP या बैंक जानकारी कभी न दें.
अगर कोई खुद को अधिकारी बताए और पैसे मांगे तो तुरंत कॉल काटें.
साइबर अपराध से जुड़ी किसी भी आशंका की स्थिति में www.cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें या 1930 हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें.
अपने बुजुर्ग परिजनों को डिजिटल जागरूकता दें, और समय-समय पर उन्हें सतर्क करें.
चीन को बड़ा झटका दे सकता है भारत, देश के पास मौजूद है रेयर अर्थ का अकूत खजाना
15 Jun, 2025 02:07 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Rare Earth: चीन ने कुछ दिन पहले रेयर अर्थ के निर्यात पर रोक लगा दी थी, जिससे पूरी दुनिया में इस एलिमेंट की कमी आ गई. गौरतलब है कि चीन के पास वर्तमान में पूरी दुनिया के रेयर अर्थ प्रोडक्शन का 90 फीसदी हिस्सा है. इस वजह से भारत भी प्रभावित हुआ और यहां भी इसकी कमी महसूस की जा रही है. सरकार इससे निपटने के लिए चीन से बात कर रही है. इसके अलावा भारत सरकार रेयर अर्थ को लेकर लंबी प्लानिंग कर रही है, जिसके तहत भारत ने जापान को निर्यात की जाने वाली रेयर अर्थ पर रोक लगाने जा रहा है. भारत रिजर्व के मामले में पांचवे नंबर पर आता है लेकिन इसका प्रोडक्शन बहुत ही कम है.
13 साल पुराने समझौते पर रोक
चीन के फैसले से सबक लेते हुए भारत अब रेयर अर्थ के मामले में आत्मनिर्भर होने की प्लानिंग कर रहा है. इसी के तहत पहला कदम उठाते हुए जापान को जाने वाली रेयर अर्थ पर रोक लगाने की योजना है. रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रेयर अर्थ सुरक्षा का काम देखने वाली कंपनी IREL को जापान को निर्यात करने वाले 13 साल पुराने एक समझौते को स्थगित करने को कहा गया है. इसके अलावा कंपनी को रेयर अर्थ का प्रोडक्शन बढ़ाने पर फोकस करने को कहा गया है.
प्रोडक्शन बढ़ाने में क्या है दिक्कत
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने IREL के अधिकारियों के साथ एक बैठक में आदेश दिया था कि देश में रेयर अर्थ का प्रोडक्शन बढ़ाया जाए. इसके बाद से ही IREL देश में दुर्लभ खनिजों को यहीं रखने और इसका प्रोडक्शन बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है. हालांकि इस प्रक्रिया में कई अड़चनें भी हैं जैसे कि भारत के पास इतनी तकनीक नहीं है जिससे रेयर अर्थ का प्रोडक्शन तेजी से किया जा सके. इसके अलावा देश में अभी इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी भी है. इसे देखते हुए IREL ने चार नए यूनिट बनाने का फैसला लिया है लेकिन उन्हें अभी तक इसकी स्वीकृति नहीं मिली है.
कैटेगरी
डिटेल
कुल भंडार (Reserve)
69 लाख टन (6.9 मिलियन टन)
वार्षिक उत्पादन
लगभग 2,900 टन
वार्षिक आयात
लगभग 53,748 टन (2023 का अनुमान)
प्रमुख आयात स्रोत
चीन, अमेरिका, जापान
प्रमुख खनन क्षेत्र
ओडिशा, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान
प्रमुख तत्व
सेरीयम, लैंथेनम, नियोडिमियम, प्रसीओडिमियम, डायसप्रोसियम, यूरोपियम, गैडोलिनियम
मुख्य उपयोग
इलेक्ट्रिक वाहन, डिफेंस सिस्टम, मोबाइल, सोलर पैनल, मैग्नेट, हाईटेक उपकरण
भारत में कहां कहां है रेयर अर्थ
भारत में रेयर अर्थ तत्व मुख्य रूप से समुद्री तटीय रेत और कुछ इनलैंड एरिया में पाए जाते हैं. ओडिशा के गंजम जिले (चाटरपुर), केरल के चवरा और अलप्पुझा, तमिलनाडु के कन्याकुमारी और मनावलाकुरिची, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम और विशाखापत्तनम के तटीय क्षेत्रों में मोनाजाइट रेत में ये एलिमेंट मौजूद हैं. इसके अलावा, मध्य प्रदेश के झाबुआ (अम्बा डोंगर), झारखंड के पूर्वी सिंहभूम और राजस्थान के बाड़मेर बेसिन में भी इनकी मौजूदगी पाई गई है.
कौन से एलिमेंट पाए जाते हैं
भारत में मिलने वाले प्रमुख रेयर अर्थ तत्वों में सेरीयम (Cerium), लैन्थेनम (Lanthanum), नियोडिमियम (Neodymium), प्रसीओडिमियम (Praseodymium), डायसप्रोसियम (Dysprosium), यूरोपियम (Europium) और गैडोलिनियम (Gadolinium) शामिल हैं. इनका उपयोग हाई टेक उपकरणों, इलेक्ट्रिक वाहनों और डिफेंस प्रोडक्ट में होता है.
टेक टाइकून Larry Ellison ने रचा इतिहास, $26 अरब की छलांग के साथ दूसरे सबसे अमीर शख्स बने
15 Jun, 2025 01:59 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
World’s real-time billionaires List 2025- दुनिया की अरबपतियों की लिस्ट में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. सॉफ्टवेयर कंपनी ओरेकल के संस्थापक और चेयरमैन लैरी एलिसन अब दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं. दो महीने पहले तक चौथे पायदान पर रहे एलिसन ने अब मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग और अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस को पीछे छोड़ दिया है. यह उलटफेर तब हुआ जब ओरेकल के शानदार तिमाही नतीजों के बाद कंपनी के शेयरों में जबरदस्त उछाल आया.
कमाई से बढ़ी कमाई, दो महीने में 66.8 अरब डॉलर की बढ़त
फोर्ब्स की ‘वर्ल्ड्स रियल-टाइम बिलियनेयर्स’ सूची के मुताबिक, 80 वर्षीय लैरी एलिसन की कुल संपत्ति अब 258.8 अरब डॉलर हो गई है, जिससे वे अब केवल टेस्ला प्रमुख एलन मस्क (410.8 अरब डॉलर) से पीछे हैं. खास बात यह है कि अप्रैल 2025 में जारी फोर्ब्स की स्थायी अरबपति सूची में एलिसन चौथे नंबर पर थे और उनकी नेटवर्थ 192 अरब डॉलर थी. यानी दो महीने में ही उनकी संपत्ति में 66.8 अरब डॉलर का उछाल आया है.
इस तेजी का मुख्य कारण ओरेकल के मजबूत तिमाही नतीजे रहे. कंपनी ने 13 जून को जो रिपोर्ट जारी की, उसमें 1.70 डॉलर प्रति शेयर की एडजस्टेड अर्निंग और 15.9 अरब डॉलर का रेवेन्यू दिखाया गया, जो वॉल स्ट्रीट के अनुमान से बेहतर था. इस रिपोर्ट के बाद ओरेकल के शेयर 200 डॉलर प्रति शेयर पर बंद हुए. निवेशकों को कंपनी की लंबी अवधि की ग्रोथ और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में उसकी भूमिका पर पूरा भरोसा दिखा.
AI की दौड़ में ओरेकल की अहम भूमिका
ओरेकल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के AI इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ‘स्टारगेट’ में भी अहम भागीदार है. इस परियोजना में OpenAI और सॉफ्टबैंक भी शामिल हैं. AI सेक्टर में ओरेकल की मजबूत पकड़ ने इसके शेयरों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है.
अब तीसरे स्थान पर मार्क जकरबर्ग हैं जिनकी संपत्ति 235.7 अरब डॉलर है, जबकि जेफ बेजोस (226.8 अरब डॉलर) चौथे स्थान पर खिसक गए हैं. पांचवें नंबर पर हैं वॉरेन बफे जिनकी संपत्ति 152.1 अरब डॉलर बताई गई है.
ब्लूमबर्ग की लिस्ट में थोड़ा अंतर
ब्लूमबर्ग बिलियनेयर इंडेक्स के मुताबिक एलिसन फिलहाल तीसरे स्थान पर हैं। इस सूची में एलन मस्क (368 अरब डॉलर) और मार्क जकरबर्ग (241 अरब डॉलर) पहले और दूसरे स्थान पर हैं. यहां एलिसन की संपत्ति 234 अरब डॉलर आंकी गई है, लेकिन फिर भी वे बेजोस से आगे हैं.